खतरनाक होती धुंध      Publish Date : 27/11/2024

                               खतरनाक होती धुंध

                                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

“वातावरण में छायी धुंध और प्रदूषण के चलते विभिन्न प्रकार के खतरनाक रसायन हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, और यह हमारे शरीर के अंगों और उनकी कार्यप्रणाली को ध्वस्त भी कर सकते हैं।“ 

वर्तमान समय में वातावरण में छाया वायु प्रदूषण अब बेहद गम्भीर सिथति में पहुँच चुका है। घने कोहरे और धुंध के चलते हालात अब काफी बिगड़ चुके हैं। इस स्थिति के कारण सांस लेने में काफी परेशानी आ रही है। वातावरण में उपस्थित इस धुंध का निर्माण वायु, धुएं से मिलकर होता है, जिसे स्मॉग भी कहा जाता है। स्मॉग मानव शरीर के प्रत्येक अंग पर अपना दुष्प्रभाव डालता है। आमतौर पर धुंध सर्दियों के मौसम में ही देखने को मिलती है। यह स्थिति वातावरण में जलवाष्प की उच्चतम सांद्रता और तापमान में होने वाले परिवर्तन के चलते उत्पन्न होती है।

                                                              

ऐसे में मानव जाति में इस धुंध के चलते विभिन्न समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। जब हम वातावरण में व्याप्त इस धुंध में सांस लेते हैं तो यह प्रदूषित कण हमारी नाक से होते हुए गले तथा फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं, जिसके कारण अस्थमा, ब्रोंकाईटिस, एलर्जी, सांसा का फूलना और खाँसी के जैसी विभिन्न समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

वातावरण में व्याप्त इस धुंध के कारण विशेष रूप से बच्चों, बजुर्गों और जो लोग पहले से ही सांस से सम्बन्धित समस्याओं से ग्रसित है, उन लोगों को अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

आंखों में संक्रमणः

                                                              

धुंध में शामिल प्रदूषक कणों और हानिकारक गैसों के चलते मानव के श्वसन तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। धुंध के दौरान वायुमंडल में धूल, धुएं के साथ अन्य प्रदूषक तत्वों की अधिकता होती है, जो हमारी आंखों में जलन और खुजली का कारण बन सकती है। इससे आंखों में लालिमा, सूजन और कभी-कभी धुंधला पन भी महसूस हो सकता है।

इसके साथ ही यदि प्रदूषण की समस्या गंभीर हो तो आंखों में संक्रमण का खतरा भी बढ़ सकता है। इसके अतिरिक्त अत्याधिक धुंध के सम्पर्क में लम्बे समय तक रहने से आंखों में दर्द और विजन की समस्या भी हो सकती है।

सर्दी एवं बुखार:

हाल ही में किए गए एक शोध के अनुसार, धुंध के दौरान वातावरण में संक्रमण फैलने वाले सूक्ष्मजीवों और बक्टीरिया आदि की संख्या भी बढ़ जाती है, जो सर्दी, बुखार और अन्य वायरल संक्रमणों के फैलने का कारण भी बन सकता है। धुंध के चलते शरी के कमजोर हो जाने के कारण संक्रमण तीव्र गति से शरी में प्रवेश कर विभिन्न रोगों का कारण भी बन सकते हैं।

त्वचा में जलन एवं सूजनः

धुंध में विद्यमान प्रदूषण और धूल के कण आपकी त्वचा पर भी बुरा प्रभाव डाल सकते हैं। लम्बे समय तक धुंध के सम्पर्क में रहने पर त्वचा में जलन, सूजन और खुजली होने के जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त प्रदूषण के कारण त्वचा पर दाग-धब्बे और मुहांसों की समस्या हो सकती है। ऐसे में यदि त्वचा की उचित तरीके से देखभाल नही की जाए तो इससे त्वचा के प्रकार में बदलाव भी हो सकता है।

बाहर निकलते समय उपाय:

धुंध के चलते मानव शरीर ऊपर अपेक प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। इससे बचने के लिए धुंध के दौरान घर से बाहर निकलने से बचना चाहिए। ऐसे में यदि घर से बाहर जाना बहुत आवश्यक है तो मॉस्क और चश्में का प्रयोग आवश्यक रूप से करना चाहिए। इसके साथ ही श्वसन से सम्बन्धित समस्याओं से बचने के लिए धुंध के दिनों में घर के अंदर ही रहना और स्वच्छ वातावरण में सांस लेना अच्छा रहता है।

मानसिक सेहत पर प्रभाव

धुंध का प्रभाव शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ आपके मानसिक स्वस्थ पर भी पड़ता है। लम्बे समय तक धुंध के सम्पर्क में रहने से मानसिक तनाव, अवसाद और चिंता के जैसी समस्याएं गहरा सकती हैं। धुंध के समय वातावरण में होने वाली कम रोशनी एवं दृश्यता की कमी से मानसिक स्थिति भी प्रभावित हो सकती है। इसके अतिरिक्त धुंध के कारण होने वाली सांस की कठिनाईयों औश्र शारीरिक असुविधाओं से मानसिक थकान भी हो सकती है।

दिल की धड़कन

विभिन्न शोधों में सामने आया है कि धुंध के दौरान वातावरण में विद्यमान हानिकारक प्रदूषक तत्व जैसे- कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य जहरीली गैसें रक्त संचार तंत्र को प्रभावित कर सकती हैं। इससे रक्तचाप बढ़ने, दिल की गति असामान्य और दिल से सम्बन्धित रोगों का खतरा भी बढ़ सकता है। विशेष रूप से जो लोग पहले से ही दिल के रोगों से पीड़ित होते हैं, वह धुंध से अधिक प्रभावित हो सकते हैं।   

   

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।