मन का उपचार      Publish Date : 21/11/2024

                                मन का उपचार

                                                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

किसी समय एक राजा ने एलान किया कि जो उसके राज्य का जो कोई उसकी शरारती बकरी को तृप्त करेगा, उसे आधा राज्य दिा जाएगा। शर्त यह थी की कोई भी व्यक्ति राजा की इस बकरी को दिन भर के लिए ले जाए और उसे खिलाए पिलाए और शाम को महल वापस लेकर आए। लेकिन महल वापस लाने पर बकरी के सामने घास डालने पर बकरी को घास खाना नहीं चाहिए।

लोग बकरी को चराने ले जाते, और उसे दिनभर घास खिलाते और सोचते कि बकरी का पेट भर गया है। लेकिन जब बकरी को राजा के पास लाया जाता और उसे घास दिखाई जाती, वह फिर से खाने लगती।

कई लोग असफल हुए, फिर एक बुद्धिमान ब्राह्मण ने यह चुनौती स्वीकार की। ब्राह्मण ने बकरी को जंगल में ले जाकर हर बार घास खाने पर उसे लकड़ी से मारने की युक्ति अपनाई। दिनभर इसी तरह चलता रहा और अंततः बकरी ने सीख लिया कि घास खाने पर सजा मिलेगी।

शाम को ब्राह्मण बकरी को लेकर राजदरबार पहुंचा और राजा से कहा कि बकरी अब पूरी तरह से तृप्त है। राजा के आदेश पर बकरी के सामने घास रक्खी गई, लेकिन बकरी ने घास को देखा तक नहीं। राजा ने ब्राह्मण की बुद्धिमानी पर उसे आधा राज्य देने का प्रस्ताव रखा।

इस पर ब्राह्मण ने कहा, ‘‘यह बकरी हमारे मन के जैसी ही है, और मन को विवेक रूपी लकड़ी से नियंत्रित करना ही इसका एकमात्र उपचार है।’’

राजा ने ब्राह्मण की शिक्षा को समझा और उसकी प्रशंसा की। मन को सही दिशा देने के लिए विवेक और अनुशासन अत्यंत आवश्यक है। मन को नियंत्रण में रखने के लिए, हमें उसे विवेक और अनुशासन की लकड़ी से मारना चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।