गौ माताएं भूमि का पोषण करती हैं      Publish Date : 15/11/2024

गौ माताएं भूमि का पोषण करती हैं

प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

कुछ लोग कहते हैं कि गायों की संख्या बढ़ने से मनुष्यों के लिए उन्हें भोजन देना मुश्किल हो जाता है । यह तर्क उचित नहीं है, ऐसा इसलिए है क्योंकि गायें केवल मनुष्यों के दिए भोजन पर जीवित नहीं रहती हैं। दरअसल गायें फसल कटने के बाद बचे हुए पौधों को खाती हैं; फसल सड़ने के बाद बची हुई भूसी भी खाती हैं।  प्राचीन काल में एक तिहाई भूमि केवल गायों के चरने के लिए खाली रखी जाती थी, जहाँ कोई फसल नहीं उगाई जाती थी। इस प्रथा के पीछे वैज्ञानिक सोच थी। एक कारण यह था कि गायों के चरने के लिए छोड़ी गई भूमि पर गायों के खाने के लिए भरपूर घास होती थी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि भूमि की उर्वरता हमेशा बनी रहती है ।

प्रथम विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों ने दिल से यह निश्चय किया कि उन्हें खाद्यान्न और फसलों के मामले में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होना है। इसके लिए उन्होंने अपनी पूरी जमीन पर खेती की। शुरू में तो फसल की गुणवत्ता में कुछ सुधार हुआ, लेकिन समय के साथ जमीन की कमी स्पष्ट रूप से देखी गई। उन्हें गायों के चरने के लिए कुछ जमीन छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। दुर्भाग्य से अपने यहां चरने के लिए छोड़ी गई जमीन पर खेती की जा रही है। जानवरों को जंगलों में जाने से रोका जा रहा है क्योंकि जंगल समाप्त किए जा रहे हैं । घास और चारे की कमी की आड़ में, बेबुनियाद औचित्य के साथ गायों को सड़क पर भटकने के लिए छोड़ा जा रहा है। यह सब बहुत अनुचित और अप्रिय भी है।

अमेरिका जैसे देशों में कृत्रिम खादों के अत्यधिक उपयोग से भूमि की प्राकृतिक शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। लेकिन, गहन अध्ययन से उन्हें पता चल गया कि गाय और बैलों का गोबर फसलों को बढ़ाने में सहयोगी होते है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखता है तथा उस भूमि में उत्पन्न अनाज और सब्जियां मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।

इस कारण विश्व के अनेक देश गाय के गोबर की खाद का अधिक उपयोग करने लगे हैं और कृत्रिम खादों से बचने लगे हैं। हमे अपनी पृथ्वी माता की उर्वरकता और पोशकता बनाए रखने के लिए गो माता का संरक्षण करना ही होगा।अच्छा संकेत यह है कि धीरे धीरे ही सही लेकिन अपने देश में भी गो आधारित कृषि का प्रचलन बढ़ना प्रारंभ हो गया है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।