एक जागृत राष्ट्र      Publish Date : 13/11/2024

                                   एक जागृत राष्ट्र

                                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

यदि हमारे मन में अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और भक्ति नहीं है, तो हम उसकी गौरवशाली संतान कैसे बन सकते हैं? हमारे साथी नागरिकों में पारिवारिक लगाव और आत्मीयता की भावना कैसे बलवती हो सकती है?  हमारे अंदर ये गुण कमजोर हुए हैं और परिणामस्वरूप हमारे बीच हर जगह जाति, भाषाओं, राज्य, कुछ संप्रदायों या कुछ पंथों के लिए आपसी झगड़े भी होते रहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने अपनी इस भावना कहीं खो दिया है कि हम सभी अपनी भारत माता की ही संतान हैं।

यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि हजारों सालों से यह हिंदू राष्ट्र है, लेकिन कालांतर में ऐसा वातावरण बना कि यह कहना पाप की तरह से लगने लगा। गलती से भी कोई ऐसा कह दे तो लोग कहते हैं कि “वह रूढ़िवादी है और उसका विवेक खत्म हो गया है।” अतीत में हमारी हार का मुख्य कारण हमारी आत्म-विस्मृति ही रहा है और आज भी यही बात कायम है। अगर हम इस ऐतिहासिक तथ्य को नज़र अंदाज़ कर दें तो हम कैसे जीत सकते हैं?

“सत्यमेव जयते” हमारे स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय नारा है। फिर इस नारे का क्या महत्व है? अगर हमारे राष्ट्र की पहचान हिंदू है, के इस तथ्य के स्थान पर कोई अन्य विचार स्थापित कर दें या इस तथ्य को पूरी तरह से नकार दें, तो यह राष्ट्रीय नारा हमारे अंदर कैसे शक्ति का संचार कर सकता है?

क्या आप उस व्यक्ति को स्वार्थी कहेंगे जो अपने शरीर को मजबूत बनाने के लिए व्यायाम करता है, अगर वह अपनी बुद्धि को तेज करने के लिए गहन अध्ययन करता है, और अपनी शारीरिक और बौद्धिक शक्ति को राष्ट्र के लाभ के लिए उपयोग करता है? क्या उस राष्ट्र को अदूरदर्शी कहेंगे जो मानव जाति के विकास में प्रभावी योगदान देने के लिए सभी प्रकार की शक्तियों को प्राप्त करने का प्रयास करता है? अगर कोई ऐसा कहता है, तो उसके लिए यही बेहतर है कि वह अपना दिमागी परीक्षण करवा ले! फिर हमें इस दृढ़ विश्वास के साथ अपने रास्ते पर आगे बढ़ना होगा कि “यह एक हिंदू राष्ट्र है।”

मातृभूमि की अवधारणा ही एकमात्र ऐसी इकाई है जो पूरे समाज को प्रेरित करती है। यह समाज हजारों वर्षों से जीवित है। हमने सभी विपत्तियों का बहादुरी से सामना किया है और अपना स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र बनाया है ताकि अतीत के गौरव को वापस लाया जा सके।

यह चुनौती इस समाज के प्रत्येक व्यक्ति के मन में प्रेरणा की एक श्रृंखला बनाने के लिए पर्याप्त है।

इसलिए हमें प्रतिदिन एक साथ मिलकर वर्तमान स्थिति पर गहन विचार करना चाहिए। हमें ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने होंगे जिनसे राष्ट्र की भक्ति और वीरता की ज्वाला प्रज्वलित हो सके। जिससे सभी मन, बुद्धि और भौतिक शक्तियाँ राष्ट्रीय भावना के एक सूत्र में पिरोई जा सकें।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।