जनता की आवाज़ ईश्वर की आवाज़ है Publish Date : 05/11/2024
जनता की आवाज़ ईश्वर की आवाज़ है
प्रोफेसर आर. एस. सेगर
विश्वव्यापी विचारधारा की पृष्ठभूमि में जब हम अपने कर्मों पर विचार करते हैं, तो हमें पता चलता है कि हमारा कर्म ही स्थायी है। हमारी सोच और विचारधारा ‘हिंदू’ है और हम इसे विकसित करना चाहते हैं। हिंदू विशेषताओं को स्थाई रखकर ही विश्व का कल्याण हो सकता है। बहुत से लोग पृथ्वी पर प्रचलित विभिन्न सामाजिक विचारधाराओं को हम पर थोपते रहते हैं।
इन विचारों को जबरदस्ती या दबाव से थोपना व्यर्थ है। स्वभाव और मानस की अनदेखी करके विदेशी विचारधाराओं को थोपने से भ्रम पैदा होगा, जिससे और अधिक प्रदूषण होगा।
हमारी शासन-पद्धति पंचायती रही है। इसका मूल घटक हमेशा से शहर/गांव रहा है। अपने शहर/गांव का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग स्थानीय निवासियों की आशाओं और आकांक्षाओं के संवाहक रहे हैं। हम इन जनप्रतिनिधियों का बहुत सम्मान करते रहे हैं। ‘जनता की आवाज ईश्वर की आवाज है’ यह हमारे इन जनप्रतिनिधियों के प्रति इसी आदर का प्रकटीकरण है, जिनका हम बहुत सम्मान करते हैं। यह हमारी राजनीतिक संरचना का आधार है।
यह एक ऐसी मान्यता है जो नीचे से शुरू होकर क्रम में ऊपर तक जाती है। हमारे प्रतिनिधि वास्तव में सामाजिक स्वभाव और संरचना को दर्शाते हैं। प्रतिनिधियों के इस समूह को राजनीतिक वर्ग, विभिन्न सामाजिक/धार्मिक संगठन या ट्रेड यूनियन माना जा सकता है। केंद्रीय शासन में उनका प्रतिनिधित्व अपनी विशिष्ट विशेषताओं के साथ सभी लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए एक उत्प्रेरक हो सकता है।
हमें जनप्रतिनिधियों के माध्यम से शासन व्यवस्था का व्यवस्थित संचालन और निगरानी करनी होगी। इससे विश्व का कल्याण होगा। इसके लिए हमें एक उच्च स्वाभिमान, उच्च मनोबल और शक्तिशाली शक्ति से युक्त राष्ट्र का निर्माण करना होगा। इस कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ करना होगा और इसे सर्वत्र करना होगा।
संगठन की मजबूती ही हमारे कार्य का आधार है। संगठन ही नहीं, ईश्वर का आशीर्वाद ही हमारे जीवन को प्रज्वलित और स्फूर्तिवान बनाता है। ईश्वर का अस्तित्व सृष्टि में आदि और मध्य में प्रत्यक्ष है और अंत तक प्रत्यक्ष रहेगा। उनकी शक्ति ही संपूर्ण प्रकृति को नियंत्रित करती है। इसी प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारा संगठित अस्तित्व ही हमारे सामाजिक जीवन का आधार है। शरीर के विभिन्न अंगों का शरीर के साथ सहजीवी संबंध होता है। इसी प्रकार हमें अपने राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रचार-प्रसार द्वारा राष्ट्र की सुंदर छवि बनानी होगी।
हमें एक-दूसरे का सम्मान करना होगा, टकराव या अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा से बचना होगा और सौहार्दपूर्ण संबंध विकसित करने होंगे। यह तभी संभव है जब हमारे पास एक सुसंगत, सुसंगठित, तेजस्वी और अनुशासित संगठन हो जो हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों के उपदेशों की विशालता को पूरी तरह से आत्मसात कर सके।
इस संगठन को अपनी सांसारिक शक्ति के बल पर दुनिया को सभी क्षेत्रों में हमारे राष्ट्रीय सितारों की बात मानने के लिए तैयार करना होगा, अब विश्व के सम्मुख यही एक मार्ग है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।