एक रक्तदान का अर्थ हैं दो से अधिक लोगों को जीवनदान      Publish Date : 15/06/2023

                                                            विश्व रक्तदाता दिवस पर विशेष

                                              एक रक्तदान का अर्थ हैं दो से अधिक लोगों को जीवनदान

                                                 

    रक्त, मनुष्य के शरीर में एक प्रकार कास जीवित ऊतक होता हैं, जिसमें लाल एवं श्वेत रंग की कोशिकाए एवं कणिकाएं, प्लेटलेट्स एव प्लाज्मा आदि तत्व होते र्हैं। इनमें रक्त की लाल कोशिकाएं हीमोग्लोबिन के माध्यम से शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक ऑक्सीजन को फेफड़ों के द्वार शरीर के प्रत्येक अंग तक पहुंचाने का कार्य करती हैं, चूँकि बिना ऑक्सीजन के जीवित रहना सम्भव नही है इसलिए ऑक्सीजन को प्राणवायु कहकर भी पुकारा जाता है।

    दूसरी ओर श्वेत रक्त कणिकाएं हमारे शरीर की विभिन्न रोगों से रक्षा करती हैं और हमारी रोग-प्रतिरोधक शक्ति में इजाफा करती हैं। रक्त कणिकाएं हमें किसी प्रकार की कोई चोट लगने के बाद बहने वाले रक्त को रोकने के लिए थक्का बनाने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

    प्लाज्मा एक प्रकार का तरल पदार्थ होता हैं जो हमारे रक्त की कोशिकाओं को अलग-अलग रखने में मदद करता है और प्लाज्मा के माध्यम से ही अनेक ऐसे पदार्थ जो ऊतकों का निमार्ण करते हैं, वे एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचते हैं। भोजन जैसे कि कार्बोाईड्रेट्स प्रोटीन एवं वसा आदि शरीर के विभिन्न अंगों तक प्लाज्मा के माध्यम से ही पहुँचते हैं, जिससे हमारे शरीर को ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

    केवल इतना ही नही, प्लाज्मा खून को जमने में सहायता करने वाले फेक्टर 8, फेक्टर 9 तथा फाईब्रिनोजन भी पाए जाते हैं और इसीलिए रक्त को जीवन का अमृत भी कहा है। इसी प्लाज्मा में कई एंटीबॉडी, इम्यूनोग्लोबुलिंस एवं हार्मोन्स आदि भी उपलब्ध रहते हैं।

    इतिहास का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि मानव को यह तो ज्ञात हो चुका था कि खून के अधिक बहने से मृत्यु हो जाती है, परन्तु खून को किस प्रकार से चढ़ाया जाए, इस बात की जानकारी उसे नही थी। एक व्यक्ति से खून लेकर, उसे किसी दूसरे व्यक्ति को कैसे चढ़ाया जाए, यह क्रिया दोनों व्यक्तियों के लिए जानलेवा हो सकती थी। रक्त को सफलतापूर्वक सबसे पहला कार्य डॉक्टर जेम्स ब्लेंडल के द्वारा वर्ष 1818 में किया गया। डॉ0 ब्लेंडल ने प्रसव के दौरान मरती हुई एक महिला को उसके पति का खून चढ़ाया था।

                                                                  

    वर्ष 1900 में कार्ल लैंडस्टेनर के द्वारा रक्त के अलग-अलग समूहों की व्याख्या की गई। यह चिकित्सा जगत में एक क्रॉन्तिकार परिवर्तन था और लोगों का जीवन बचाने में अधिक सुविधा का प्रादुर्भाव हुआ। वर्ष 1930 में लैंडस्टेनर को रक्त समूहों की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

    वर्ष 1937 में लैंडस्टेनर के द्वारा ही आरएच रक्त समूह की खोज भी की गई। इसीलिए लैंडस्टेनर को ‘फादर ऑफ ट्राँसफ्यूजन मेडिसिन’ भी कहा जाता है और उनके ही जन्मदिन 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।

    विश्व का प्रथम रक्तकोष अर्थात ब्लड बैंक वर्ष 1937 में अमेरिका के शिकागो शहर में स्थापित किया गया था। वर्ष 1943 में एसीडी (एसिड साइट्रेट डेक्सट्रोज) की खोज की गई, जो खून को जमने से रोकने एवं उसको कुछ अधिक दिनो तक बनाए रखने में सहायक था।

    भारत में प्रथम ब्लड बैंक कोलकाता (उस समय कलकत्ता) शहर में द्वितीय विश्व युद्व काल में स्थपित किया गया और वर्तमान समय में भारत में हजारों रक्तकोष स्थित हैं। अब एक व्यक्ति से लिए गए रक्त के अवयवों को अलग-अलग कर उस रक्त को कई रोगियों को दिया जाने लगा हैं और भारत में आज शासकीय एवं निजी दोनों ही प्रकार के रक्तकोष बेहतर कार्य कर रहे हैं।

    प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति रक्तदान कर सकता है जबकि दान किया गया रक्त आगामी 03 दिनों में उसके अन्दर दोबारा से बन जाता है। रक्त के देने वाले व्यक्ति को काई भी हानि नही होती है, अपितु उसे एकाणिक जीवन बचाने की खुशी एवं संतोष प्राप्त होता है। भारत में लगभग 05 करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता रहती है, जबकि इसे सापेक्ष मात्र 2.5 करोड़ यूनिट्स रक्त ही उपलब्ध हो पाता हैं। देश में लगभग 25 प्रतिशत पुरूष एवं 57 प्रतिशत महिलाओं में रक्त की कमी देखी जाती है। एक अनुमान के अनुसार, भारत में खून की कमी के चलते लगभग 1,200 लोग काल के गाल में समा जाते हैं।

    थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, सिकल केल एनीमिया, एप्लास्टिक एनीमिया और ब्लड कैंसर के रोगियों को बारम्बार खून की आवश्यकता रहती हैं। गुर्दे के रोग एवं डायलिसिस के अतिरिक्त दिन प्रतिदिन बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं के कारण भी रक्त की आवश्कता बढ़ती ही जा रही है।

    इसी कारण से बार-बार यह कहा जाता है कि प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति को अपने जीवन में कम से कम एक बार तो अवश्य ही रक्तदान करना चाहिए और यदि सम्भव हो तो उसे रिपीट डोनर के रूप में अपना पंजीकरण रक्तदान केन्द्रों पर कराकर प्रतिवर्ष एक बार रक्तदान अवश्य करना चाहिए। अपने परिजनों की याद या अपने जन्मदिन आदि अवसरों पर साल में एकबार तो अवश्य ही रक्तदान करना चाहिए।

    कहते है कि खून न तो बहाने के लिए है और न ही बेचने के लिए, यह तो केवल और केवल दान करने के लिए और किसी का जीवन बचाने के लिए है।

मजबूर नही मजबूत रक्तदाता

    रक्तदाता दो प्रकार के होते हैं, पहले वह जो किसी मजबूरीवश रक्तदान करते हैं, और जिन्हें रिप्लेसमेंट ब्लड डोनर कहते हैं, और दूसरे वह, जो एक सुदृढ़ मनोदशा या इच्छाशक्ति के साथ रक्तदान करते हैं, इन्हें वॉलंटियर ब्लड डोनर्स कहते हैं। रक्तदान को महादान कहा जाता है क्योंकि आपके द्वारा किया गया एक यूनिट रक्तदान चार लोगों के जीवन को बचा सकता है। अतः इस बार के विश्व रक्तदाता दिवस पर संकल्प लेकर एक मजबूत रक्तदाता बनें।

दिल्ली जैसे महानगरों के लिए है बड़ी परेशानी का सबब

                                                         

    इण्डियन रेडक्रॉस सोसायटी की डॉ0 बानश्री सिंह बताती हैं कि दिल्ली जैसे बड़े महानगरों के लिए रक्त की आपूर्ति अपने आप में एक बड़ी समस्या है। इसका कारण यह होता है कि ऐसे महानगरों में मरीजों की संख्या बहुत अधिक होती है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली का एम्स, जहाँ 08 से भी अधिक राज्यों के लोग अपना इलाज कराने के लिए आते हैं। इनमें में से जब किसी मरीज को रक्त की आवश्यकता होती है तो इन्हें इसके लिए अपने किसी रिश्तेदार अथवा मित्र की ही सहायता लेनी पड़ती है। हालांकि हरियाणा या किसी अन्य राज्य की स्थिति देखें तो यहाँ फिर भी किसी तरह से काम चल जाता है, परन्तु दिल्ली जैसे राज्यों के लिए तो यह परेशानी का सबब ही है।

रक्तदान से पूर्व नींद का पूरा होना आवश्यक

    चिकित्सक बताते हैं कि शहरी जीवनशैली में पूरी नींद न ले पाना एक समस्या बनती जा रही है, जबकि यह आवश्यक है कि रक्तदान से पूर्व रक्तदाता ने एक अच्छी नींद ली हो और ठीक इसी प्रकार से शराब आदि का सेवन कर लेने के कम से कम 48 घण्टे बाद ही रक्तदान करना चाहिए।

2.50 लाख ग्राम पंचायतों में किया जाएगा रक्तदान

    ळाल ही में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के द्वारा सभी राज्यों को पत्र लिख 14 जून-2023 को सभी ग्राम पंचायतों में रक्तदान शिविरों के आयोजन के लिए कहा है। पत्र में मंत्रालय ने आगे कहा है कि इस कार्यक्रम के दौरान पंचायतों के सरपंच लोगों को जीवन में आगे भी रक्तदान करने का संकल्प भी दिलाएंगे। 

कौन कर सकता है रक्तदान

    18 से 65 वर्ष की आयु का कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति, जिसका हीमोग्लोबिन 12.5 प्रतिशत से अधिक एवं उसका वजन कम से कम 45 किलोग्राम हो ऐसा कोई भी व्यक्ति रक्तदान का पात्र होता है। इसके साथ ही रक्तदान के लिए जरूरी शर्तों में यह भी है कि रक्तदाता किसी दवाई का सेवन लम्बे समय से न कर रहा हो। उसे हाल ही में किसी प्र्रकार की कोई चोट न लगी हो, कोई ऑपरेशन न हुआ हो और उसे रक्त से सम्बन्धित अन्य कोई रोग भी न हो।

रक्तदान का महत्व

    मानव रक्त को किसी भी कृत्रिम विधि से नही बनाया जा सकता। एक स्वस्थ्य व्यक्ति के शरीर में 5 से 6 लीटर रक्त उपलब्ध रहता है और वह प्रति 90 दिन या तीन महीनों के बाद रक्तदान करने का पात्र होता है। रक्त में लाल रक्त कणिकाएं, प्लेटलेट्स, प्लाज्मा एवं क्रायोप्रोसिपिटेट अलग कर उपयोग किए जाते हैं। इनमें प्लाज्मा 24 से 48 घण्टे, लाल रक्त कणिकाएं तीन सप्ताह और प्लेटलेट्स एवं श्वेत रक्त कणिकाएं कुछ ही मिनटों में दोबार से बन जाती हैं।

                                                  

रक्तदान के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • देश में लगभग 3300 ब्लड बैंक हैं जिनमें से 1100 राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण सोसायटी (नाको) के अन्तर्गत कार्य कर रहे हैं। इनमें से सभी ब्लड बैंक रक्त की 78 प्रतिशत आपूर्ति स्वैच्छिक रक्तदाताओं के माध्यम से प्राप्त करते हैं।
  • देश में लगभग 80 से 90 लाख यूनिट रक्त दान के माध्यम से ही प्राप्त होता हैं करीब एक लाख थैलेसीमिया के मरीज है, जिन्हें प्रति माह दो से चार यूनिट रक्त की आवश्यकता पड़ती है।
  • यदि दिल्ली-एनसीआर की बात की जाए तो यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 40 हजार यूनिट रक्त एकत्र किया जाता है।
  • 36 हजार यूनिट रक्त एकत्र करने पर पिछले वर्ष केन्द्र की ओर से मध्य प्रदेश राज्य को प्रथम पुरस्कार भी दिया गया।
  • रक्त दान करने से रक्तदाता को कोई हानि नही होती है, अपितु यह दिल के दौरे सहित कई अन्य बीमारियों से भी व्यक्ति को बचाता हैं।
  • रक्तदान करने से रक्त में आयरन के स्तर को संतुलित बनाए रखने में भी मदद मिलती हैं

1.5 करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है प्रतिवर्ष देश में

    रक्त की प्रत्येक बून्द में जीवन होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के द्वारा इस वर्ष रक्तदाता दिवस की थीम खून दो, प्लाज्मा दो और जीवन साझा करो रखी है। अमेकिन रेड क्रॉस (एआरसी) के अनुसार लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी) रक्त का एक प्रमुख अवयव होती हैं, जिसका निर्माण बोन मैरो में होता है।

    मानव रक्त की दो से तीन बून्दों में 100 करोड़ से अधिक लाल रक्त कोशिकाएं होती है जो रक्त को लाल रंग प्रदान करने के साथ ही मानव जीवन का मुख्य स्रोत भी होती हैं।

    चक्र को पूर्ण कर लेने के बाद शरीर में इनका निर्माण होता है। ऐसे में इसे व्यर्थ न जाने दे और रक्तदान के माध्यम से किसी के साथ जीवन को साझा करे।

रक्तदान करने में विकसित देशों के लोग आगे

    विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सम्पूर्ण विश्व में लगभग 1850 करोड़ यूनिट्स का वार्षिक रक्तदान किया जाता है। इसमें से 40 प्रतिशत रक्त का दान उच्च आय वाले देशों से आता है। इन 40 प्रतिशत देशों में दुनिया की 16 प्रतिशत जनता निवास करती हैं वहीं कम आय वाले देशों में 54 प्रतिशत ब्लड ट्रॉन्सफ्यूजन 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में होता है।

वहीं विकसित देशों में सबसे अधिक रक्त 60 वर्ष से अधिक की आयु वर्ग के लोगों को चढ़ाया जाता है। इन देशों में बुजुर्ग लोगों में ब्लड ट्रॉन्सफ्यूजन की दर सबसे अधिक 70 प्रतिशत होती है।

रिश्तेदारों पर निर्भरता

                                                        

    विश्व के सम्पन्न देशों में प्रति एक हजार की आबादी पर रक्तदान करने की दर 31 है, मध्यम आय वाले देशों में यह 16, कम मध्यम आय वाले देशों में 6 और कम आय वाले देशों में यह दर 5 हैं वर्ष 2008 से 2018 के बीच 1.07 करोड़ स्वैच्छिक रक्तदाताओं की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई हैं। 79 देशों में 90 प्रतिशत रक्त स्वैच्छिक रक्तदाताओं से तो 54 देशों में अपने रिश्तेदारों से ही रक्त लिया जाता हैं।

33 प्रतिशत रक्तदाता महिलाएं

    दुनियाभर में किए जाने वाले समस्त रक्तदान में से लगभग 33 प्रतिशत रक्तदान महिलाओं के द्वारा किया जाता हैं रक्तदान के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करने वाले 113 देशों में से 15 देशों में महिला रक्तदाताओं की संख्या मात्र 10 प्रतिशत ही है।

रक्त का जीवन चक्र

आरबीसी - 45 दिन

प्लेटलेट्स  - 05 दिन

प्लाज्मा   - जीवनभर 

अस्वीकरणः लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने मौलिक विचार हैं।