प्रखर देशभक्ति का प्रवाह चिरस्थायी होना ही चाहिए      Publish Date : 24/10/2024

               प्रखर देशभक्ति का प्रवाह चिरस्थायी होना ही चाहिए

                                                                                                                                                       प्रोफेसर राकेश सिंह सेंगर

पिछले एक हजार वर्षों में हमारे देश पर अनेक विपत्तियां आईं है, जिनका सामना कर सकने में हम देशभक्ति के भाव के कारण ही समर्थ हो सके। इस कालखंड में अनेकों बार कुछ समय के लिए व्यक्ति के मन में मातृभूमि के प्रति प्रखर प्रेम की ज्वाला प्रज्वलित होती रही है। ऐसे व्यक्तित्व के प्रभाव में अनेक लोग एक साथ आते हैं। समान क्षमता वाले पूर्ववर्ती के होने पर यह ज्वाला प्रज्वलित होती रहती है अन्यथा यह बुझ जाती है।

                                                        

यदि हम चाहते हैं कि हमारा देश सनातन, समृद्ध, गौरवशाली रहे तो हमें यह देखना होगा कि देशभक्ति की सनातन परंपरा होनी चाहिए, जिसको कभी किसी के द्वारा समाप्त नही किया जा सके। यह पूरे राष्ट्रीय जीवन का आधार है, यदि हम देशभक्ति की परंपरा बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं तो छोटी-मोटी समस्याएं हमें ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाएंगी। हमें यह दृढ़ विश्वास रखना चाहिए कि, वास्तव में देश के सनातन कल्याण के उद्देश्य से देशभक्ति का एक सनातन प्रवाह बनाने का हमारा निरंतर प्रयास है।

हमारा कार्य इतना महान और उच्च महत्व वाला है कि अतीत में किसी ने ऐसा नहीं किया। यदि किसी ने इसे शुरू किया, तो वह इसमें कभी सफल ही नहीं हुआ। यह सबसे आवश्यक है और हमें इसे करना है। यदि हम समाज में देशभक्ति का अवैयक्तिक सनातन प्रवाह बना सकें तो कोई समस्या या संकट नहीं होगा।

राष्ट्र की शाश्वतता की स्थापना का लक्ष्य प्राप्त करना तभी संभव है जब हमारे पास देश के हर गांव, शहर, कस्बे और हर जगह एकाग्र मन और सहज प्रवृत्ति वाले लोगों का समूह उपलब्ध हो। वे अपने स्नेहपूर्ण व्यवहार से आदर्शों का निर्माण करेंगे। यह बात हमारे मन में स्पष्ट और दृढ़ होनी चाहिए।

हम में से हर किसी को यह प्रतिज्ञा करनी होगी कि ‘मैं अपने देश के लिए अपना सर्वस्व, अपना जीवन, अपनी शक्ति, सब कुछ त्याग दूंगा तथा समाज के हित में अपना जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए, इस बारे में अपनी संस्कृति के आधार पर एक आदर्श स्थापित करूंगा, जिसमें अहंकार की भावना न रहे।’ इस दृढ़ विश्वास के साथ हमें आगे आना होगा।

हम जानते हैं कि इस उद्देश्य के लिए कौन से सद्गुणों की आवश्यकता है। हमें उन्हें समाज में प्रकट करने के लिए कठोर प्रयास करने होंगे।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।