सभी को अपनी आंतरिक भावना को जागृत करना चाहिए Publish Date : 16/10/2024
सभी को अपनी आंतरिक भावना को जागृत करना चाहिए
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
अक्सर यह अनुभव किया जाता है कि भौतिक सुखों पर आधारित सामाजिक संरचना पहले की तुलना में अब अधिक नियंत्रण को आमंत्रित करती है, लोग किसी शक्ति के गुलाम बनना पसंद करते हैं। हालांकि भोजन, कपड़ा और मकान जैसी भौतिक चीजों में प्रेम या स्नेह पैदा करने की कोई शक्ति नहीं है।
क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि यह सिद्धांत कि हमारा शरीर पांच तत्वों का सम्मिलित पिंड है और जीवन कुछ नहीं बल्कि एक मिलन का परिणाम मात्र है जो हमें निश्चित रूप से चार्वाक के इस निष्कर्ष की ओर ले जाता है कि ‘‘भस्मीभूतस्य देहस्य पुनर्जन्मं कुतः’’ अर्थात जलने के बाद शरीर का पुनर्जन्म असंभव है या ‘‘ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्’’ अर्थात उधार लो और आनंद लो।
पूर्ण भौतिकवाद केवल स्वार्थ को ही जन्म दे सकता है। यह बात अलग है कि कभी-कभी स्वार्थ टकराव या विरोध से भी बच सकता है, लेकिन यह निश्चित् है कि यह हमारे जीवन का एक नकारात्मक पक्ष है। पश्चिम के चिंतन में इस बात की कोई संतोषजनक व्याख्या उपलब्ध नहीं है कि समाज के विभिन्न वर्गों में परस्पर स्नेह क्यों होना चाहिए। भारतीय संस्कृति में इस विषय पर एक सकारात्मक सोच है, सम्पूर्ण समाज एक है। व्यक्ति उस शाश्वत आत्मा का एक अंश है, जीवन का प्रवाह एक है।
ये विचार परस्पर स्नेह उत्पन्न करते हैं। समाज की अखंडता का बोध दूसरों के प्रति स्पष्ट और स्वच्छ भावना को जागृत करता है जबकि राजनीतिक या आर्थिक व्यवहार परस्पर प्रेम उत्पन्न नहीं कर सकते। हमारे समाज में परस्पर समझ और स्नेह होना अत्यंत आवश्यक है इसलिए हमें समाज के प्रत्येक वर्ग के साथ स्नेहपूर्ण संवाद करने में सक्षम होना चाहिए। ऐसी एकात्म भावना जागृत होनी ही चाहिए। यह सांस्कृतिक परंपराओं की सहायता से ही संभव है।
यह बात थोड़ी सी अस्पष्ट लग सकती है, लेकिन थोड़े प्रयास से इसे आसानी से समझा भी जा सकता है। हिंदू संस्कृति के प्राचीन और अद्वितीय जीवन पद्धति के सिद्धांतों का पुनरुद्धार न केवल हमारे राष्ट्र के लिए बल्कि विश्व की वर्तमान परिस्थिति में मानव जाति के कल्याण के लिए भी बहुत आवश्यक है। जीवन के प्रति हमारा सांस्कृतिक दृष्टिकोण व्यक्तियों में परस्पर स्नेह और समझ पैदा करने की क्षमता रखता है। केवल इस संस्कृति में ही अपितु संपूर्ण जीवन पद्धति का संपूर्ण ज्ञान, जागरूकता और समझ है।
इसलिए युद्धों के परिणामस्वरूप पहले से ही खंडित हो चुके विश्व के सामने इस दृष्टिकोण को रखना अति आवश्यक है। यह आवश्यक है कि हम अपने देश को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने से पहले उसे एक आदर्श देश के रूप में स्थापित करें।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।