राष्ट्र के लिए समर्पण करना, एक कठोर साधना है Publish Date : 14/10/2024
राष्ट्र के लिए समर्पण करना, एक कठोर साधना है
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
यह बहुत ही आकर्षक और मनमोहक विचार है कि हम पूरे हृदय से समाज के दुखों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। यदि हम इस आकर्षण और आकर्षण के पीछे के वास्तविक कारण को नहीं समझेंगे तो हमारी स्थिति भी दूसरों की तरह निराशाजनक ही रहेगी।
हमारे इस कार्य के पीछे एक प्रभावी कारण है कि यह राष्ट्र हमारा है और कमजोर समाज से कभी सशक्त राष्ट्र का निर्माण नही हो सकता है, कई लोगों ने अलग-अलग तरीके से समाज सेवा की और वे कुछ समय बाद थक गए।
यह कहना व्यर्थ और घमंड है कि हमारे साथ ऐसा नहीं हो सकता। यह मान लेना गलत और आत्मप्रशंसा है कि हमारे जैसा कार्य पहले किसी ने नहीं किया। यह पहला कदम है जहां हम समस्याओं की फिसलन से बच सकते हैं, इसलिए इस पहलू पर विचार करना अति आवश्यक है।
निस्वार्थ चिंतन हमें राष्ट्र सेवा के लिए शक्ति देता है। सबसे जरूरी यह है कि एक ही काम को और भी जोश और उत्साह के साथ किया जाए। आप इस सरल तथ्य को आसानी से समझ सकते हैं।
ऐसे कितने व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने यह महसूस किया है कि भौतिक आकर्षणों से दूर रहकर आप ईश्वर के प्रति उच्चतम स्तर की भक्ति प्राप्त कर सकते हैं? शायद बहुत खोजबीन के बाद हमें कोई अपवाद मिल भी जाए, वरन् हमें आमतौर पर ऐसे मामले नहीं मिलते। लेकिन हमें इसके विपरीत कई उदाहरण मिल सकते हैं।
कई लोग भौतिक आकर्षण और सुखों से आसानी से विचलित हो जाते हैं, भले ही उन्होंने वर्षों तक खुद को एक साथ काम किया हो, एकांत का अनुभव किया हो, या वैराग्य की भावना को पोषित किया हो। यदि हम अपने काम पर प्रमेय लागू करते हैं तो हम यह गारंटी नहीं दे सकते कि हम अपने काम में दृढ़ संकल्प की स्थिति तक पहुंचने से पहले विचलित नहीं होंगे।
यह सोचना गलत है कि हमें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि जो आज तक नही हुआ वह कल भी नही होगा ऐसा आवश्यक नही है। इसलिए अपने राष्ट्र के कार्य के लायक हम बने रहें यह एक कठोर साधना है।
कार्य की दृढ़ता
हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वर्षों से काम कर रहे हैं। हमने कुछ लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास किया जिसके लिए हमारे सामने एक सुनिर्धारित योजना है। हम सभी अपने लक्ष्य पर पैनी नजर रखते हुए कड़ी मेहनत करते हैं।
सामान्यतः एक छोटी सी समस्या सभी के मन को विचलित कर देती है, जिससे कार्य की प्रक्रिया और आपसी स्नेह को भी गहरा धक्का लगता है। सहयोग और आपसी विश्वास की हमारी प्रवृत्ति कम होते हुए भी दूसरों की क्षमताओं पर संदेह करने लगते हैं।
लेकिन संघ इन सभी संकटों में फंसा नही, बल्कि निरंतर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता रहा, क्योंकि हम यह नहीं भूले कि दूसरे भी अच्छा काम कर सकते हैं। हमारे संगठन का ढांचा बहुत मजबूत है क्योंकी हम वास्तविकता पर विश्वास करते हैं, लेकिन हमने जो कुछ भी किया है वह अभी भी अधूरा ही है। ऐसा लगता है कि अभी भी नींव का काम पूरा नही हुआ है।
अंतर्निहित स्नेह की आवश्यकता
हमें अधिक से अधिक प्रगति प्राप्त करने की प्रेरणाओं के बीच अपनी कमियों पर भी विचार करना होगा। क्या हमने अपनी ऐसी कमियों को समझा है? क्या हमे इस बात से दुख होता है कि अपना काम अभी अधूरा है और बहुत कुछ परिवर्तन होना अभी बाकी है? हमे यह विचार करना होगा कि क्या हमें यह दृढ़ विश्वास हो गया है कि अहंकार रहित दृष्टिकोण, समन्वय की क्षमता और कार्य में अविचल आस्था के आगे सब कुछ गौण है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित रूप से जाने से ऐसा करने की आदत बन जाती है। यह कहना बिलकुल गलत है कि जिनके पास करने के लिए कुछ बढ़िया काम नहीं है वे ही शाखाओं में जाते हैं, बल्कि राष्ट्र का स्पष्ट विचार साकार करने की शक्ति अर्जित करने के लिए शाखा में जाते हैं।
वास्तव में हमें अपने जीवन को बदलना है और काम के लिए आवश्यक आस्था और विश्वास प्राप्त करना है। क्या इसे प्राप्त करने का कोई और स्थान उपलब्ध है?
काम करने की पर्याप्त गुंजाइश है। अपने मन में एक ही विचार आना चाहिए कि हमें उस मार्ग पर चलना चाहिए जो जीवन को उद्देश्य और आस्था के साथ व्यक्ति के समग्र विकास में आने वाली सभी बाधाओं को व्यवस्थित रूप से दूर कर सके।
अक्सर मन में कई विचार आते हैं। मगर कोई स्पष्ट चित्र प्रतिबिंबित नहीं होता कि वास्तव में हमें क्या चाहिए, एक भ्रम की स्थिति होती है। हम चुने हुए मार्ग पर से भी विश्वास खो देते हैं। सामान्यतः हम जीवन के भौतिक क्षेत्र में सुधार का लक्ष्य रखते हैं। हमें भोजन, कपड़ा और आवास की समस्याओं का समाधान करना होता है। फिर हम ऐसी चीजों के लिए निस्वार्थ भाव से काम करते हैं। अगर हम केवल भौतिक सुखों का लक्ष्य रखते हैं, तो हम अपनी जीवन शैली के विचार से कोई मूल्यवर्धन नहीं कर रहे हैं।
हमें अपने राष्ट्रीय जीवन को इस तरह से बनाना होगा कि यहां के लोगों का समूह सहज रूप से समाज की खुशियों की चिंता करे, बिना किसी बाहरी नियंत्रण के। यह तभी संभव है जब भारतीय संस्कृति के पोषण हर व्यक्ति के दिल में गहराई से समाहित हों।
मन में धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य के द्वंद को समझना होगा, स्वयं को रामादल में रखते हुए रावण को दल सहित संहार करना होगा और इस संहार में भी अपने मन में स्नेह की कमी नहीं होने देना होगा।
विजय का उत्सव आप मना रहे होंगे, बहुत बहुत शुभकामनाएं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।