सुसंगठित शक्ति ही एकमात्र रास्ता है      Publish Date : 29/09/2024

                        सुसंगठित शक्ति ही एकमात्र रास्ता है

                                                                                                                                                      प्रोफसर आर. एस. सेंगर

पवित्र हिंदू संस्कृति को व्यापक बनाने तथा अपने पूर्वाग्रहों से मुक्ति पाने के लिए स्वयं को एक राष्ट्र, एक जीवन के रूप में स्थापित करना समय की मांग है। हमें यह सीखना चाहिए कि अपने भविष्य की रक्षा के लिए शक्ति और क्षमता को पुनर्व्यवस्थित करना होगा। भ्रातृत्व की भावना पैदा करने के लिए हमें अपनी संस्कृति को पुनर्जीवित करना होगा तथा इसमें कुछ व्यवस्था की आवश्यकता है, जैसी 1925 में थी।

                                                                  

चूंकि आज विभाजनकारी शक्तियां अराजक हो गई हैं, इसलिए हमारा मूल सिद्धांत इन शक्तियों के विरुद्ध बहुत ही कुशलता और बुद्धिमत्ता से लड़ना है। यद्यपि विश्व छोटा हो गया है, ‘कृण्वन्तो विश्वं आर्य’ (सारी दुनिया सुखी हो), यही हमारा दर्शन रहा है, आज विश्व को इसी दर्शन की आवश्यकता है।

हमेशा मित्रता या घृणा की संभावना दिखाई देती, जिसका एकमात्र संभव उपाय शक्ति है। हमें अधिक शक्ति की आवश्यकता है, क्योंकि दुनिया छोटी हो गई है और इसलिए खतरा बढ़ गया है। अगर हमें पता है कि हमारे पड़ोसी हमारे पड़ोस में हैं, तो हमें एक मजबूत घर बनाना होगा। हमें एक शक्तिशाली और तेजस्वी राष्ट्र बनाना होगा, क्योंकि हमलावर हमारे पड़ोस में हैं। हमें इसकी ही आवश्यकता है और यह तीव्र देशभक्ति से संभव है, क्योंकि शक्ति की यही एकमात्र प्रेरणा है। जब तक दुनिया महान दर्शन के आधार पर एकजुट नहीं होगी, तब तक इसकी आवश्यकता रहेगी। हमारे पास ऐसा दर्शन है। लेकिन अगर हम कमजोर होंगे, तो कोई भी हमारे दर्शन को नहीं मानेगा।

                                                                      

 स्वतंत्रता सामाजिक जीवन की भावना के अस्तित्व पर आधारित संगठन की शक्ति पर निर्भर करती है। स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए उसी प्रकार के प्रयास करने की आवश्यकता होती है, जितना भी उसे प्राप्त करने के लिए करने पड़े हैं। किसी राष्ट्र का गौरव, सम्मान और समृद्धि उसकी संगठित शक्ति पर निर्भर करती है। संगठनात्मक कार्य को हर समय बदलने की आवश्यकता नहीं है।

इसलिए, डॉ. हेडगेवार जी ने कहा कि संघ का कार्य परिस्थिति के अनुसार नहीं बदलता है, यह उस अर्थ में परिस्थिति और उद्देश्य से परे है। कार्य किसी दबाव या कार्रवाई का परिणाम नहीं है, बल्कि यह हमारी भावना का परिणाम है। राष्ट्रीय जीवन का पालन करने के लिए हमारे समाज को हमेशा संगठित रखने के लिए इस कार्य की रचना की गई है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।