वन सम्पदा की सुरक्षा आवश्यक है Publish Date : 27/09/2024
वन सम्पदा की सुरक्षा आवश्यक है
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
शास्त्रों के अनुसार चौरासी लाख यानियों में से 10 लाख योनियां वनस्पतिकाय होती हैं और वनस्पतियों में हर प्रकार के पेड़-पौधे, घास-फूस, फल-फूल और साग-सब्जी आदि सभी सम्मिलत होते हैं। हमारे ग्रन्थों में माना गया है कि वनस्पतियों में जीव होता है और हमारी यह मान्यता आदि काल से ही चली आ रही है। वनस्पति शास्त्र सम्पूर्ण रूप से एक अलग शास्त्र है और वनस्पतिशास्त्रियों का कहना है कि घास अपने गह पृथ्वी के पांचवें भाग तक फैली हुई है।
मानव के द्वारा प्रत्येक पेड़-पौधे, कंद-मूल और जड़ी-बूटियों को अपने हिसाब से नाम दिए गए हैं। इन सभी में सबसे निम्न प्रजाति घास को ही माना जाता है, जो सबसे अधिक काटी जाती है। इसी के सम्बन्ध में ही एक कहावत भी प्रचलन में है कि घास की तरह से काटा जाना, हालांकि अभी तक इस घास का पूरा मूल्यांकन नही हो पाया है। घास में कितनी शक्ति एवं ऊर्जा संचित होती है यह अभी मानव जान ही नही पाया है। गाय, भैंस, बैल, भेड़, बकरी, हाथी और घोड़ा जैसे बलशाली जानवर या पशु तो घास पर ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
यदि इन जानवरों को खाने के लिए घास नही मिलती तो मानव जाति का तो इतिहास ही बदल जाता। धरती पर पाई जाने वाली वनस्पति मानव जाति की जितनी सेवा कर पाती है उतनी कोई अन्प्य पदार्थ नही कर पाता है। प्रकृति के द्वारा इतनी विशाल वन सम्पदा दमानव को अकारण ही नही प्रदान की गई है। सम्पूर्ण मानव जाति के लिए यह अकूत सम्पदा एक बहुत ही आवश्यक पदार्थ है, परन्तु अपने स्वार्थ में अंधा होकर मानव अपनी इस दैवीय सम्पदा के विनाश पर उतारू है। आज ज्रगल काटे जा रहे है, जिसके चलते पहाड़ भी अब गंजे होने लगे हैं, जिसके परिणाम स्वरूप आज मानव को सांस लेने के लिए शुद्व वायु भी नही मिल पा रही है और अब लोग नाक पर पट्टी लगाने के लिए विवश हो गए हैं।
आखिर घास का इनता महत्व क्यों है?
मात्र 200 ग्राम घास में इतनी शक्ति होती है कि इस घास का सेवन कर एक मनुष्य 1.5 घंटे तक पैदल चल सकता है। आधा घंटे तक लकड़ी काटने और इन्हें चीरने का काम कर सकता है। एक 700 बीघा की हरी-भरी जमीन सूर्य के तापमान, अर्थात 2000 टन टी. एन. टी. के जितनी गर्मी को गहण करने में सक्षम होता है कि उससे एक अणु बम बनाया जा सकता है। इसी प्रकार भरी वर्षा के बाद नदियों में आने वाले पानी के वेग को घास ही राकने में सक्षम होती है और उसे बाढ़ में बदलने से रोकती है। घास ही इस वर्षा जल को अपने अंदर सोखकर हमारे भूजल स्तर में वृद्वि करती है।
अनाज की पैदावार होने के कारण ही मानव जाति जीवित रह पाती है और यह अनाज भी इस सम्पूर्ण वनस्पतिकाय का एक बीज ही होता है।
संसार की वानस्पाकि सृष्टि शुरूआत से ही निरंतर ही मानव जाति की सेवा करती आ रही है फिर भले ही चाहे मानव उसके साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें। यह उसके बारे में सदैव खामोश ही बनी रहती है। वैसे वर्तमान समय में आज विश्वभर में उसका मोल भी आंका जाने लगा है।
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हाल ही में इंडोनेशिया में यूनेस्को के तत्वाधान से 105 वनस्पतिशा़ियों का एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का सम्मेलन आयोजित किया गया था।
इस सम्मेलन में दिन प्रति दिन कम होती जा रही वन सम्पदा के प्रति चिंता व्यक्त की गई थी। इस सम्मेलन में जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, नीदरलैंड तथा भारत आदि 20 देशों से अधिक के वनस्पतिशास्त्रियों ने भाग लिया था। सम्मेलन में कनाडा के प्रतिनिधि के रूप में डॉ0 ब्लादीमीर क्रजीना ने कहा कि मनुष्य को सांस लेने के लिए शुद्व वायु की आवश्यकता होती है और हमारी इस आवश्यकता को पूरी करने में पेड़-पौधे और हरियाली एक विशेष भूमिका निभाती हैं।
दुनिया में प्रदूषण के फैलने का एक प्रमुख कारण है वन सम्पदा का निरंतर दोहन और यदि हमारी यह वन सम्पदा इसी प्रकार से नष्ट होती रही तो यह भी निश्चित् है कि हमारा सांस लेना भी दुश्वार होता जाएगा। असल में देखा जाए तो इसका अस्तित्व खतरे में डाल कर मानव अपना अस्तित्व ही खतरे में डाल रहा है। क्योंकि इस वन सम्पदा का मानव पास कोई विकल्प ही उपलब्ध नही है और न ही इसका कोई कृत्रिम उपाय है।
इस पर कई अन्य देशों के प्रतिनिधियों के द्वारा भी उनकी इस बात का समर्थन किया गया और कहा गया कि वन सम्पदा को संरक्षण मिलना ही चाहीए तथा अधिक से अधिक पेड़-पौधों का रोपण कर अपने ग्रह धरती को पुनः हरा-भरा बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। हमें अपनी इस वन सम्पदा का उपयोग केवल पशु-पालन तक ही सीमित कर देना चाहिए, क्योंकि यदि पशु नही रहे तो हमे दूध, दही, घी, श्रम, मांस और चमड़ा आदि नही मिल पाएगा और इसके साथ ही उनके गोबर से बनने वाली खाद और ईंधन भी नही मिल पाएगा।
वृक्षों के अंधाधुंध काटे जाने से सर्वाधिक नुकसान वायु शुद्विकरण का होगा और इससे वर्षा कम होगी, पर्यावरण संतुलन में बिगाड, पत्तों की खाद नही मिलेगी, धरती के कटाव में वृद्वि होगी और विभिन्न कीटों को खाकर हमारी फसलों की रक्षा करने वाले पक्षियों का आश्रय स्थल समाप्त हो जाएगा। ............................
लेख का शेष भाग कल -
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।