ज्वार में जिंक फोर्टिफिकेशन की उपयोगिता      Publish Date : 27/09/2024

                  ज्वार में जिंक फोर्टिफिकेशन की उपयोगिता                                                                                     

                                                                                                                                                                 प्रोफसर आर. एस. सेंगर 

“सस्य संवर्धन (एग्रोनोमिक फोर्टिफिकेशन) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें आवश्यक पोषक तत्वो, विटामिन और खनिज तत्वों की मात्रा को अनाजों में बढ़ने के लिए बुआई के समय मृदा में और फसलों पर दोनों की दूधिया अवस्था में पोषक तत्वों का छिड़काव करते हैं। इन तत्वों का छिड़काव करने से ये पौधे को शीघ्र ही प्र्राप्त होता है। और पोषक तत्वों की मात्रा में बढ़ोतरी होती है। ज्वार एक महत्वपूर्ण अनाज है, जो विभिन्न देशों मे उगाई जाती है। यह मनुष्य के लिए मुख्य भोजन और पशुओं के लिए चारे का महत्वपूर्ण स्रोत है। ज्वार को कम पानी की आवश्यकता होती है और सूखा सहन करने की क्षमता होती है। इस कारण देश कई क्षेत्रों में इसकी खेती करना संभव है।”

                                                           

ज्वार, भारत में सबसे अधिक पैदा किए जाने वाले व्यापक रूप  से उपलब्ध सूखायुक्त खाद्यान्नों में से एक है। यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी अच्छी पैदवार देती है। ज्वार में 10-12 प्रतिशत प्रोटीन वसा, विटामिन, खनिज और लवण होते हैं।

मानव शरीर में कई जैवक कार्या के लिए जिंक होता है वयस्क शरीर के सभी भागो में मौजूद होता है। इनमें अंग,  ऊतक, हड्डियां, तरल पदार्थ और कोशिकाएं शामिल होती है। मानव शरीर में 100 से आधिक विशिष्ट एंजाइमों और प्रोटीन की उचित मात्रा के लिए जिंक आवश्यक है। जस्ता अत्यधिक जहरीले मुक्त कणों के हानिकारक हमले से मानव और पौधों की कोशिकाओं को बचाता है। एक अनुमान के अनुसार विश्व की लगभग एक-तिहाई आबादी में जिंक की कमी पाई जाती है। दुनिया भर में 8,00,000 मौंते के लिए जिंक की कमी (डब्ल्यू.एच.ओ 2002) जिम्मेदार है। ज्वार के बीज और भूसे में जिंक की मात्रा को बढ़ाने के लिए सस्य संवर्धन (एग्रोनोमिक फोर्टिफिकेशन) एक अभूतपूर्व प्रयास है।

                                                             

        खरीफ 2015-16 में मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग, डा. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापाठ, अकोला में अखिल भारतीय समन्वित मृदा, पौधों में सूक्ष्म व द्वितीय पोषक तत्व और प्रदूषक तत्व अनुसंधान परियोजना पर सस्य संवर्धन (एग्रोनोमिक फोर्टिफिकेशन) पर निम्न प्रयोग आयोजित किया गया। एवं बीजोपचार अवश्य करें।

समय पर बुआई

  •   जुन के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह के मध्य 4-5 इंच वर्षा होने वर बुआई करें।
  • रेज्ड बैड प्लान्टर में, जो फरो ओपनर लगे रहते हैं। उनमें रिजर तथा मोल्ड बोर्ड के पंख की चैड़ाई कम या ज्यादा की जा सकती है, जिससे ऊंची क्यारी एवं नाली की चैडाई एवं गहरी कम या ज्यादा की जा सके।

फरो इरिगेटेड रेज्ड बैड पद्धति के मुख्य बिंदु

  • इस मशीन से दो बैड या क्यारियां बनती है। प्रत्येक बैड पर दो से तीन पक्ंितयां इस मशीन के द्वारा बोई जा सकती है।
  • इस विधि में 15-20 से. मी. गहराई एवं 45-60 से.मी. चैड़ी नाली बनाई जाती है।
  • ऊंची क्यारी की चैड़ाई 45-60 सें.मी. तथा ऊंचाई 10-15 सें.मी. रखी जाती है।
  • ऊंची क्यारी एवं गहराई कम या ज्यादा करने की व्यवस्था भी इस मशीन में होती है।
  • एक ऊंची क्यारी पर दो या तीन पंक्तियों की बुआई की जा सकती है। पक्तियों के बीच की दूरी 25-30 से. मी. रखते हंै।
  • कृषि विज्ञान केन्द्र, देवास (मध्य प्रदेश) द्वारा सोयाबीन फसल पर प्रदर्शन लगाये गये। सबसे पहले अप्रैल-मई में एक गहरी जुताई रिर्सिबल मोल्ड बोल्ड हल द्वारा कराई गई। फिर पहली वर्षा के बाद कल्टीवेटर चलाकर खेत को बुआई के लिए तैयार किया गया। पर्याप्त नमी की अवस्था में खेत की बुआई की गई।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।