
प्रेम की अनुभूति - शिक्षा का विषय Publish Date : 19/09/2024
प्रेम की अनुभूति - शिक्षा का विषय
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
हमारे देश की एक पुरानी प्रथा है कि विपत्ति के समय जब एक महिला किसी पुरुष को राखी भेजकर उसे अपना भाई बनाती है तो राखी प्राप्त वाला व्यक्ति उस महिला का भाई बन जाता था और फिर अपनी उस बहन की रक्षा अपनी जान देकर भी करता था। भाई-बहन के रिश्ते को स्थापित करने के लिए भाई-दूज या और भी ऐसे ही अनेकों पर्व हमारे देश में मनाए जाते है। यह शिक्षा ही है जो इन रिश्तों में शुद्ध प्रेम का बंधन स्थापित करती है।
हम इसी प्रकार के दूसरे विचारों को देखें तो हम क्या देखते हैं? एक लड़का जो किसी लड़की के साथ खेलता है और उसे बहन कहता है, बाद में उसे अपनी पत्नी बना लेता है। यही उनकी शिक्षा और विचारधारा है, इसलिए उन्हें यह पाप नहीं लगता है। हमारी शिक्षाएं इससे अलग हैं, शुद्धता और पवित्रता की शिक्षाएं हमारे दृष्टिकोण को एक आकार प्रदान करती हैं। हम मानते हैं कि महिलाएं देवी का रूप होती हैं। हमारे राष्ट्र के जीवन का आधार संस्कृति और शिक्षाओं से ही बना है।
इसलिए हमारा मानना यह हैं कि यह राष्ट्र उन लोगों का है जो इस भूमि को अपनी माता कहते हैं, भूमि का इतिहास राष्ट्र का इतिहास होता है। इस भूमि की संतानों का जीवन राष्ट्र का जीवन है। यदि किसी रीति-रिवाज या परंपरा ने भारतीय जीवन के इन शुद्ध विचारों को विकृत किया है, तो समाज को अक्षुण्ण रखने के लिए ऐसी विकृति को दूर करना भी अति आवश्यक है। इसलिए हमारा मिशन सांस्कृतिक है। हमारा कार्य सांस्कृतिक है क्योंकि इसका उद्देश्य राष्ट्रीय विचारों के आधार पर संस्कृति की उन्नति और समाज और राष्ट्र की उन्नति करना है।
इसलिए वर्ष 1925 में हमने जो सिद्धांत स्थापित किया था, वह आज भी उतना ही आवश्यक है। एक समाजवादी नेता ने अपने भाषण में कहा था कि समाजवादी भगवा ध्वज को फाड़कर रौंद देंगे। लेकिन किसी को भी रौंदने के लिए ताकत की जरूरत होती है और हमारी कलाइयों में भी बहुत ताकत होती है, जो हमारे ध्वज को ऊंचा रखती हैं। हिन्दू समाज को संगठित करना और उन्हें हिंदू होने का बोध करवाना ही अपने राष्ट्र की उन्नति का एकमात्र मार्ग है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।