सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता को बढ़ाने वाली हिंदी भाषा विज्ञान और कानून की भाषा बने      Publish Date : 17/09/2024

सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता को बढ़ाने वाली हिंदी भाषा विज्ञान और कानून की भाषा बने

                                                                                                                                                            प्रोफेसर आर एस सेंगर

प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है लेकिन 14 सितंबर 2024 को हिंदी की 75वीं वर्षगांठ बनाई गई। यह वह दिन है जब वर्ष 1949 में संविधान सभा ने हिंदी को देवनागरी लिपि में संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। यह निर्णय स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण था। जहां भाषा की विविधता के बावजूद एक ऐसी भाषा को राजभाषा चुना गया, जो देश के अधिकांश लोगों के लिए सहज और सुलभ हो। तब से लेकर अब तक हिंदी ने अपनी भूमिका में अनेक परिवर्तन देखे हैं और देश की प्रमुख भाषाओं में से एक बनी हुई है।

पिछले 75 वर्षों में हिंदी ने न केवल एक भाषा के रूप में बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह वह भाषा है जिसने हमारे देश की आत्मा को प्रतिबिंबित किया है और स्वतंत्रता के बाद के भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को सुदन किया है। तकनीक और वैज्ञानिक प्रगति के साथ हिंदी ने परंपरा और आधुनिकता के बीच एक पुल का काम किया है। आज हिंदी न केवल भारत बल्कि अन्य कई देशों में भी पढ़ाई और बोली जाती है। हालांकि, हिंदी ने एक लंबी यात्रा तय की है लेकिन इसके सामने आज भी कई चुनौतियां विद्यमान हैं।

                                                            

भाषाई विविधता वाले इस देश में सभी भाषाओं को सम्मान और महत्व देना आवश्यक है। हिंदी को बढ़ावा देने के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी सहेजने और उनको भी संरक्षित करने की जिम्मेदारी है। लेकिन यदि हिंदी को और अधिक बढ़ावा दिया जाए तो सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से एकता को और अधिक सुधारण किया जा सकेगा।

विगत 75 वर्षों में हिंदी को राजभाषा के रूप में पूरी तरह स्थापित करने में कई चुनौतियां सामने आई। इनमें सबसे बड़ी चुनौति भाषाओं की विविधता है। भारत जैसे बहुभाषी देश में, जहां विभिन्न राज्यों की अपनी-अपनी अलग-अलग भाषाएं हैं, वहां एक भाषा को पूरे देश में लागू करना जटिल कार्य तो है ही, किंतु आज के समय में डिजिटल क्रांति के साथ हिंदी को एक नया मंच मिला है। इंटरनेट ने हिंदी को वैश्विक स्तर पर पहुंचा दिया है और युवा पीढ़ी हिंदी का उपयोग डिजिटल माध्यमों में कर रही है। इससे यह भाषा और अधिक सशक्त हो रही है, अब तकनीकी के क्षेत्र में भी हिंदी का उपयोग बढ़ रहा है।

इन 75 वर्षों में हिंदी को कानून की भाषा बनाना एक महत्वपूर्ण लेकिन चुनौती पूर्ण कार्य रहा है, इसके लिए संवैधानिक, कानूनी, प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर व्यापक बदलाव लाने की आवश्यकता है। साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के चलते भी आज हिंदी की उपयोगिता पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रही है और आने वाले समय में शायद यह एक सशक्त माध्यम के रूप में उभर कर सबके सामने आ सकेंगी।

                                                          

हमें विज्ञान और कानून की भाषा हिंदी को बनाने के लिए और अधिक ठोस कदम उठाने होंगे। इस दिशा में यदि हम लोग और अधिक ठोस कदम उठाते हैं तो यह भारतीय न्यायिक प्रणाली को और अधिक सुलभ और पारदर्शी बनाया जा सकता है। इससे न केवल हिंदी बल्कि भारतीय आम जनता को लाभ होगा, बल्कि यह लोकतंत्र को भी सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

हिंदी को कानून की भाषा बनाने के लिए कानूनी शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव आवश्यक होगा। वर्तमान में अधिकांश कानूनी पाठ्यक्रम और पुस्तकों का माध्यम अंग्रेजी है। हिंदी में कानूनी साहित्य पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विकास करना होगा। इसके साथ ही वकीलों और न्यायाधीशों और अन्य कानूनी पेशवारों को हिंदी में दक्षता प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षण देना होगा, तभी इसकी उपयोगिता बढ़ सकेगी।

नई शिक्षा नीति आने के बाद विज्ञान और तकनीक के युग में भी हिंदी की उपयोगिता बढ़ी है। आज ज्ञान का सृजन और प्रसार विज्ञान और तकनीक के माध्यम से ही हो रहा है। इन दिनों इन दोनों ही क्षेत्रों में अंग्रेजी का वर्चस्व है। भारत जैसे देश में, जबकि एक बड़ी जनसंख्या हिंदी में संवाद करती है तो यह आवश्यक हो जाता है कि विज्ञान और तकनीक से संबंधित ज्ञान भी इसी भाषा में उपलब्ध हो। हिंदी को विज्ञान की समृद्धि भाषा बनाना आवश्यक है क्योंकि यह समाज के समग्र विकास के लिए अनिवार्य है। इससे न केवल भाषा का विकास होगा बल्कि आम जनता को विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।

प्रौद्योगिकी हिंदी को विज्ञान और साथ ही तकनीकी की उन्नत भाषा बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। डिजिटल मीडिया के माध्यम से हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीक सामग्री का व्यापक रूप से प्रसारित किया जा सकता है। अनुवाद और सॉफ्टवेयर और भाषा की पहचान और तकनीक भी इस दिशा में मददगार साबित हो रही है। इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से भाषाई बाधाओं को दूर किया जा सकता है और जटिल तकनीक सामग्री को हिंदी में सॉल्व बनाया जा सकता है। भारत सरकार ने भी चिकित्सा विज्ञान और तकनीकी विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी में अधिक से अधिक पुस्तक लिखने के लिए विज्ञान को तथा लेखो को प्रोत्साहित किया है और आने वाले वर्षों में इस  क्षेत्र में अधिक से अधिक पुस्तके लोगों तक पहुंच सकेंगी।

                                                        

हिंदी विश्व  में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह भारत के अलावा नेपाल, फिजी, मॉरीशस, गुयाना और त्रिनिदाद आदि देशों में भी इसका प्रयोग होता है, लेकिन भारत की राजभाषा घोषित होने के 75 साल बाद भी हिंदी अभी तक संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं बन पाई है। हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए भारत को अन्य देशों से सहयोग और समर्थन प्राप्त करना होगा। विशेष कर उन देशों से जहां हिंदी का उपयोग होता है। हाल के वर्षों में भारत सरकार ने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्रालय ने कई बार इस मुद्दे को उठाया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दिया है। भविष्य में हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के लिए भारत की ओर से भी कूटनीतिक प्रयास करने होंगे। इसके लिए वित्तीय सहयोग के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी आवश्यक है यदि भारत अन्य हिंदी भाषियों के देश और वैश्विक शक्तियों का समर्थन जुटा पाने में सफल होता है।

यह संभव है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में उचित स्थान मिल सके। हिंदी को राजभाषा के रूप में पूरी तरह स्थापित करने में अभी भी कई चुनौतियां हैं, लेकिन यह निश्चित है कि हिंदी अपने सशक्त साहित्य समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और बढ़ते डिजिटल माध्यमों के साथ भविष्य में और अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। इसके लिए हम सभी लोगों को और अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए कि हिंदी भारत के प्रत्येक प्रदेश में जन-जन की भाषा बन सके।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।