राष्ट्रीय स्वाभिमान की भाषा है हिंदी      Publish Date : 14/09/2024

                    राष्ट्रीय स्वाभिमान की भाषा है हिंदी

                                                                                                                                                      प्रोफेसर आर एस सेंगर

राष्ट्रीय अस्मिता तथा सांस्कृतिक स्वाभिमान की प्रतीक रही हिंदी ने स्वतंत्रता के आंदोलन में देश को एक सूत्र में पिरो दिया था। आज हिंदी न सिर्फ स्वाभिमान अपितु स्वावलंबन का पर्याय भी बन चुकी है और आत्मनिर्भरता का आधार हिंदी के मजबूत कंधों पर ही सशक्त हो सकता है। आज हिंदी दिवस के अवसर पर हम सभी लोगों को इसे और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता है। अब हम लोगों को हिंदी की ताकत को पहचानना होगा और इसे और आगे बढ़ना होगा।

                                          

समझे हिंदी की ताकत को

स्वाधीनता आंदोलन के दौरान राष्ट्रभाषा हिंदी का स्वाभिमान लोगों में समा चुका था, लेकिन आजादी के बाद संविधान में हिंदी की विचित्र स्थिति के कारण दुर्भाग्य से यह भाव पहले की अपेक्षा कमजोर ही हुआ। यद्यपि हमारे अर्ध सैनिक बल, रेलवे, बैंक, बीमा और केंद्र सरकार के विभिन्न निकायों एवं कार्यों आदि के माध्यम से हिंदी देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दे रही है लेकिन आर्थिक उन्नति और रोजगार के लिए हिंदी किस प्रकार से उपयुक्त है प्रायः ऐसे प्रश्न खड़े किए जाते रहे हैं।

हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि हिंदी सिनेमा, खबरों की इंडस्ट्री है तो देश के चार सर्वाधिक पठित अखबार हिंदी के ही हैं। इसी तरह देश के दो तिहाई चैनल हिंदी के हैं और सर्वाधिक देखे जाने वाले चैनलों में भी हिंदी के चैनल ही आगे है। कुल मिलाकर हिंदी सिनेमा और समाचार जगत में रोजगार की बड़ी संभावनाएं हैं। इसके अलावा विज्ञापन की दुनिया में खास तौर से कॉपी राइटिंग में भी हिंदी का ही बोलबाला है। फिर शिक्षक एवं अन्य क्षेत्र हैं ही।

अब केवल देश ही नहीं विदेश में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है। बीते दिनों भारत सरकार के प्रयास से इंजीनियरिंग तथा मेडिकल की पढ़ाई भी हिंदी में प्रारंभ कर दी गई है। पूरी दुनिया में लगभग 200 से अधिक विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाई जा रही है। केवल यही नहीं कोविड-19 के पश्चात दुनिया का चीन से भरोसा उठ जाने के कारण भारत में बड़ी संख्या में मल्टीनेशनल कंपनियों का प्रवेश होने वाला है। ऐसे में उनको वहां हिंदी साहित्य अन्य भारतीय भाषाओं में कंटेंट जेनरेशन के लिए कंटेंट राइटर की आवश्यकता भी होगी तो इस क्षेत्र में भी हिंदी भाषियों के लिए एक बड़ा अवसर आने वाला है। इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एप्स आदि में भी हिंदी की अपार संभावनाएं देखी जा रही हैं।

                                                        

प्रोफेसर राकेश सिंह सेंगर का महत्वपूर्ण योगदान रहा

प्रोफेसर आर एस सेंगर वर्तमान में सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में निदेशक ट्रेंनिंग प्लेसमेंट एवं विभागाध्यक्ष पादप बायोटेक्नोलॉजी संभाग कॉलेज ऑफ़ बायोटेक्नोलॉजी में एक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत है। प्रोफेसर आर एस  सेंगर ने अपनी नौकरी की शुरुआत वर्ष 1993 में गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्लांट फिजियोलॉजी, कॉलेज ऑफ बेसिक साइंस एंड ह्यूमैनिटीज से प्रारंभ की थी। उन्होंने वर्ष 2003 में सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में अपना योगदान देना प्रारंभ किया।

इस दौरान प्रोफेसर सेंगर ने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेको शोध पत्र प्रकाशित किए। वह अभी तक विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी की 6 किताबें प्रकाशित करा चुके हैं। जिनमें जैविक खेती एवं प्रबंधन, बायोडीजल उत्पादन के नवीन आयाम, जलवायु परिवर्तन एवं कृषि उत्पादन आदि है। डॉ0 सेंगर की प्रमुख हिन्दी रचनाए इस प्रकार से हैं-

1.   जलवायु परिवर्तन चुनौतियां एवं कुशल कृषि प्रबंधन।

2.   पर्यावरण प्रदूषण एवं पारिस्थितिकी तंत्र।

3.   बायोटेक्नोलॉजी के  नवीन आयाम।

4.   प्लांट फिजियोलॉजी अर्थात पादप कार्यकीय आदि।

इसके अलावा प्रोफेसर सेंगर अंग्रेजी में भी लगभग 8 किताबें प्रकाशित करा चुके हैं।

                                                               

प्रोफेसर सेंगर के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की हिंदी में प्रकाशित होने वाले विभिन्न पत्रकारों, समाचार पत्रों, शोध पत्रिकाओं में अभी तक 1160 लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा वह किसान जागरण वेबसाइट के माध्यम से 60,000 से अधिक किसानों तक किसानों के लिए उपयोगी लेख लिखकर भी पहुंचा चुके हैं।

प्रोफेसर सेंगर ने हिंदी में ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से किसान पाठशाला कार्यक्रम, फॉर्म स्कूल इन ईयर कार्यक्रम, आकाशवाणी रामपुर से वर्ष 1996 में शुरू किया था, जो धीरे-धीरे पूरे देश में फॉर्म स्कूल इन ईयर के नाम से जाने जाने लगा और कई रेडियो स्टेशन के माध्यम से अभी तक इस कार्यक्रम का प्रसारण किया जा रहा है।

प्रोफेसर सेगर ने दूरदर्शन पर हिंदी माध्यम में विज्ञान और कृषि को बढ़ावा देने के लिए सैकड़ो कार्यक्रम लिखे और उनका प्रसारएा भी कराया। इसके अलावा विभिन्न चैनलों के माध्यम से भी उनके इंटरव्यू हिंदी माध्यम में दिखाए जाते रहे हैं।

प्रोफेसर सेंगर ने पंतनगर विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी में प्रकाशित पत्रिका किसान भारती के संपादन का कार्य भी किया। इसके अलावा सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में  किसानपयोगी  पत्रिका कृषि दर्शिका पत्रिका का प्रकाशन वर्ष 2004 में प्रारंभ किया और इसी वर्ष हिंदी में किसान उपयोगी कृषि पंचांग को भी प्रारंभ कराया।

राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हिंदी की पत्रिकाओं में प्रोफेसर सेंगर के द्वारा लिखित नए लेखो को यूपीएससी तथा पीसीएस की परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों द्वारा काफी सराहा जाता रहा है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।