ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की खेती      Publish Date : 12/09/2024

ढींगरी (ऑयस्टर) मशरूम की खेती
डा. गोपाल 
परिचय रू प्रायः वर्षा ऋतु में छतरी नुमा आकार के विभिन्न प्रकार एवंम् रंगों के पौधों जैसी संरचनायें या आकृतियां अक्सर खेतों में, जंगलों में तथा घरों के आस पास दिखाई देती है जिन्हे हम मशरूम या खुम्ब कहते हैं। ये मशरूम एक प्रकार के फंफूद है जिसका उपयोग आदिकाल से हमारे पूर्वज खाने तथा रोगों की रोथाम के लिए प्रयोग करते रहे हैं। प्रकृति में लगभग 14 से 15 हजार तरह के मशरूम पाए जाते हैं। सभी प्रकार के मशरूम खाने योग्य नहीं होते हैं क्योंकि कुछ मशरूम जहरीले भी होते हैं। अतः बिना जानकारी के जंगली मशरूम को नहीं खाना चाहिए। इन्हीं मशरूम में ढींगरी प्रजाति के मशरूम पुरानी लकड़ी, सूखे पेड़ तथा पेड़ की बाहरी खाल पर बारिश के बाद देखे जा सकते हैं। इनकी पहचान करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है, क्योंकि इनका इंठल बहुत छोटा होता है तथा छतरी के एक किनारे से जुड़ा होता है। हमारे देश में मुख्यतः चार प्रकार के मशरूम की खेती की जाती है- बटन मशरूम, ढींगरी मशरूम, दूध छत्ता या मिल्की मशरूम तथा धान या पुआल मशरूम। हमारे देश की जलवाययु भिन्न-भिन्न प्रकार की है तथा ऋतुओं के अनुसार वातावरण में तापमान तथा नमी रहती है जिनको ध्यान में रखकर हम अलग-अलग समय पर विभिन्न प्रकार के मशरूमों की खेती कर सकते है। वैसे हमारे देश की जलवायु ढींगरी मशरूम के लिए बहुत ही अनुकूल है तथा वर्ष भर ढींगरी की खेती की जा सकती है। यह शिटाके मशरूम के बाद दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली मशरूम है। इस मशरूम में प्रोटीन की बहुतायत होती है तथा कई तरह के औषधीय तत्व भी पाए जाते हैं। ढींगरी मशरूम भी अन्य मशरूमों की तरह एक शकाहारी पोष्टिक भोज्य है तथा आने वाले समय में इसका उत्पादन निरंतर बढ़ने की संभावना है। आज ढींगरी की खेती हमारे देश के कुछ राज्यों जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर पूर्वी राज्यों में बहुतायत से हो रही है। ढींगरी मशरूम की कुछ विशेषताएं हैं जिसकी वजह से इसकी खेती भारत में ही नहीं अपितु विश्वभर में भी लोकप्रिय हो रही है। ढींगरी को किसी भी प्रकार के कृषि अवशिष्टों पर आसानी से उगाया जा सकता है, इसकी फसल चक्र भी 45-60 दिन का होता है और इसे आसानी से सुखाया जा सकता है। ढींगरी मशरूम में भी अन्य मशरूमों की तरह सभी प्रकार के विटामिन, लवण तथा औषधीय तत्व मौजूद होते हैं जैसे कि लोवास्टेटिन जोकि मनुष्य शरीर में कालेस्ट्रोल या ब्लड प्रेशर कम करने की क्षमता रखता तथा ढींगरी को वर्षभर सर्दी या गर्मियों में सही प्रजाति का चुन कर उगाया जा सकता है। आज हमारे देश में इसकी व्यावसायि खेती पश्चिमी, दक्षिणी तथा उत्तर पूर्व राज्यों में हो रही है। हमार देश की जलवायु इसकी खेती के लिए बहुत ही अनुकूल है। आन वाले समय में हमारे देश में भी इसके उत्पादन में वृद्धि की बहुत संभावनायें है।
ढींगरी उत्पादन करने की विधि:
जीगरी उत्पादन करने के लिए हमें उत्पादन कक्ष की जरूरत होती है जो बाँस, कच्ची ईटों, पॉलीथीन तथा पुआल से बनाऐ जा सकते हैं। इन उत्पादन कक्षों में खिड़की तथा दरवाजों पर जाली लगी होनी चाहिए। ये किसी भी साईज के बनाये जा सकते हैं जैसे 18 फुट (ल०) ग 15 फुट (चै0) ग 10 फुट (ऊं०) के कमरे में लगभग 300 बैग रखे जा सकते हैं। इस बात का ध्यान रखा जाए कि हवा के उचित प्रबंधन के लिए दो बड़ी खिड़किया तथा दरवाजे के सामने भी एक खिड़की होनी चाहिए। खिड़कीयों तथा दरवाजों पर बारीक लोहे की जाली लगी होनी चाहिए जिससे छोटे कीड़े व मक्खियाँ इत्यादि उत्पादन कक्षों में घुस नहीं जाये। उत्पादन कक्ष में नमी बनाये रखने के लिए एक एयर कूलर लगाया जा सके तो बेहतर होगा।


1. जलवायु
ढिंगरी मशरूम की खेती समान्य तापमान पर की जा सकती है। कवक जाल फेलाय के लिए 25-30° सेल्सियस तथा 80-90 प्रतिशत नमी की आवश्यकता होती है। पॉलीथिन हटाने के बाद फलन कक्ष में तापमान 20-25° सेल्सियस तथा नमी 85-90 प्रतिशत होनी चाहिए।
2. पौशाधार तैयार करना:
ढींगरी का उत्पादन साधारणतः किसी भी प्रकार के ऊपर लिखित फसल के अवशिष्ट का प्रयोग कर किया जा सकता है। इसके लिए यह जरूरी है कि भूसा या पुआल पुराना तथा सड़ा गला नहीं होना चाहिए। जिन पौधों के अवशिष्ट सख्त तथा लम्बे होते हैं उन्हें मशीन द्वारा लगभग 2 से 3 से.मी. साईज का काट लिया जाता है। कृषि अवशेषों में कई तरह के हानिकारक सूक्ष्मजीवी फंफूद, बेक्टीरिया तथा अन्य जीवाणु पाए जाते हैं। अतः सर्वप्रथम कृषि अवशेषों को जीवाणु रहित किया जाता है जिसके लिए निम्नलिखित कोई भी विधि द्वारा कृषि अवशेषों को उपचारित किया जा सकता है। 
(क)     गर्म पानी उपचार विधि: इस विधि में कृषि अवशेषों को छिद्रदार जूट के थेले या बोरे में भरकर गर्म पनी में (60-65° सेल्सिस) लगभग 30-45 मिनट उपचारित किया जाता है। उपचारित भूसे को ठंडा करने के बाद बीज मिलाया जाता है।
(ख)     पास्चुराईजेशन रू यह विधि उन मशरूम उत्पादकों के लिए उपयुक्त है जो बटन मशरूम की खाद पास्चुराईजेशन टनल में बनाते हैं। इस विधि में भूसे को गीला कर लगभग 4 फूट चैड़ी आयताकार ढेर बना दी जाती है। इसके लिए कम से कम 3 से 4 क्विंटल भूसे की जरूरत होती है। ढेरी को दो दिन के बाद तोड़ कर फिर से नई ढेर बना दी जाती है। इस प्रकार से लगनगार दिन बाद भूसे का तापक्रम 55 से 650 सेल्सियस हो जायेगा तथा अब मूसे का पास्चुराईजेशन टनल में मर दिया जाता है। टनल का तापमान ब्लोअर द्वारा एक समान करने के बाद उसमें बॉयलर से भाप देकर मूसे का तापमान 60-65 डिग्री से० के बीच लगभग चार घंटे रखने के बाद जब मूसा ठंडा हो जाए तब बीज मिला दिया जाता है।
(ग)    रासायनिक उपचार विधि रू गर्म पानी उपचार विधि को लघु स्तर पर अपनाना उचित है परन्तु बड़े स्तर पर यह अधिक खर्चीली साबित होती है। अतः विकल्प के रूप में रासायनिक विधि को अपनाया जा सकता है। रासायनिक उपचार विधि द्वारा माध्यम को उपचारित करने का तरीका निम्नलिखित है।
(क)    किसी सीमेंट के हौद या ड्रम में 100 लीटर पानी ले उसमें 7. 5 ग्राम कैलशियम व 120 मि.लि. फार्मेलीन मिलायें तथा उसमें 12 किलोग्राम भूसा भिगो दें। इस घोल को जूम में भिगोये गये भूसे पर उड़ेल दे तथा ड्रम को पॉलीथीन से ढक्कर उस पर वजन रख दें।
(ख)    लगभग 16 घंटे बाद, ड्रम से भूसे को बाहर निकाल कर साफ फर्श पर फैला दें ताकि भूसे से अतिरिक्त पानी निकल जाये। प्राप्त गीला भूसा बीजाई के लिय तैयार है।
उपरोक्त विधियों के इस्तेमाल हेतू यह सलाह दी जाती है कि गर्म पानी से उपचार विधि का प्रयोग उत्तम है क्योंकि रासायनिक विधि के द्वारा उपचार करने के दौरान मूसे में रासायन के कुछ अंश रहने की संभावना रहती है। जो कि बाद में खुम्ब में भी पाई जा सकती है।
3. बीजाई करना रू
ढींगरी का बीज हमेशा ताजा प्रयोग करना चाहिए जो 30 दिन से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिए। भूसा तैयार करने से पहले ही बीज खरीद लेना चाहिए तथा। क्विंटल सूखे मूसे के लिए 10 किलो बीज की जरूरत होती है। कई बार किसान भाई कम बीज डालते है जिससे माइसीलीयम के फैलने में ज्यादा समय लग जाता है। गर्मियों के मौसम में प्लूरोटम साजार काजू, प्लू. सेपीडस, प्लू, जामोर या प्लू. साईट्रीनोपीलीएटस को उगाना चाहिए। सर्दियों में जब वातावरण का तापमान 20 सेल्सियस से नीचे होतो प्लू. फलोरिडा, प्लू. आस्टेट्स का चुनाव करना चाहिए। बीजाई करने के दो दिन पहले कमरे को 2 प्रतिशत फार्मेलीन से उपचारित कर लेना चाहिए। प्रति 4 किलो गीले मुसे में लगभग 100 ग्राम बीज अच्छी तरह से मिलाकर पॉलीथीन की बीलियों (40-45 से.ल. ग  30-35 से.चै.) में भर देना चाहिए। पीथीन को मोड़कर बंद कर देना चाहिए या अखबार से भूसे को चमार कर देना चाहिए जिससे भूसे की नमी बनी रहे। पॉलीथीन को बकर बंद करना है तो उसमें लगभग 5 मि.मि. के 10-12 छेद चारों तरफ तथा पैन्दें में कर देना चाहिए जिससे बैग का तापमान 30 सासयस से ज्यादा बढ़ नहीं जाए।
4. फसल प्रबंधन रू
बीजाई करने के पश्चात् थैलियों को एक उत्पादन कक्ष में बीज फैलने के लिए रख दिया जाता है। बैगों को हफ्ते में एक बार अवश्य देख लेना चाहिए कि बीज फैल रहा है या नहीं। अगर किसी बैग में हरा, काला या नीले रंग की फंफूद या मोल्ड दिखाई दे तो ऐसे बैगों को उत्पादन कक्ष से बाहर निकाल कर दूर फेंक देना चाहिए। बीज फलते समय पानी, हवा या प्रकाश की जरूरत नहीं होती है। अगर बैग तथा कमरे का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने लगे तो कमरे की दीवारों तथा छत पर पानी का छिड़काव दो से तीन बार करे या एयर कूलर चला दें। इसका ध्यान रखना चाहिए कि बैगों पर पानी जमा न हो। लगभग 15 से 25 दिनों में मशरूम का कवक जाल सारे भूसे पर फैल जायेगा तथा बैग सफेद नजर आने लगेंगे। इस स्थिति में पॉलीथीन को हटा लेना चाहिए। गर्मियों के दिनों में (अप्रैल-जून) पॉलीथीन को पूरा नहीं हटाना चाहिए क्योंकि बैगों में नमी की कमी हो सकती है। अतः बैगों में लगभग 2 से.मी. के 8-10 गोल छेद ब्लेड द्वारा कर दिये जाते है जिससे की पहली फसल बिना पानी के छिड़काव से प्राप्त हो जायेगी तथा दूसरी फसल में पॉलीथीन को मोड़ दिया जाता है जिससे फसल ऊपर से भी प्राप्त की जा सके। पॉलीथीन हटाने के बाद फलन के लिए कमरे में तथा बैगों पर दिन में दो से तीन बार पानी का छिड़काव करना चाहिए। कमरे में लगभग 6 से 8 घंटे तक प्रकाश देना चाहिए जिसके लिए खिड़कियों पर शीशा लगा होना चाहिए या कमरों में ट्यूबलाईट का प्रबंधन होना चाहिए। उत्पादन कमरों में प्रतिदिन दो से तीन बार खिड़कियाँ खुली रखनी चाहिए या एग्जास्ट पंखों को चलाना चाहिए जिससे कार्बन डाइऑक्साईड की मात्रा 800 पी.पी.एम. से अधिक न हो। ज्यादा कार्बन डाईऑक्साईड होने से ढींगरी का डंठल बड़ा हो जायेगा तथा छतरी छोटी रह जाती है। बैगों को खोलने के बाद लगभग एक सप्ताह में मशरूम की छोटी-छोटी कलिकाएँ बनने लग जायेगी जो चार से पाँच दिनों में पूर्ण आकार ले लेती है
4. मशरूम की तुड़ाई करना रू
जब ढींगरी पूरी तरह से परिपक्व हो जाए तब इनकी तुड़ाई की जानी चाहिए। ढींगरी की छतरी के बाहरी किनारे ऊपर की तरफ मुड़ने लगे तो ढींगरी तोड़ने लायक हो गई है। तुड़ाई हमेशा पानी के छिड़काव से पहले करनी चाहिए। मशरूम तोड़ने के बाद डंठल के साथ लगे हुए मूसे को चाकू से काटकर हटा देना चाहिए। पहली फसल के 8-10 दिन बाद दूसरी फसल आयेगी। पहली फसल कुल उत्पादन का लगभग आधी या उससे ज्यादा होती है। इस तरह तीन फसलों तक उत्पादन ज्यादा होता है। उसके बाद बैगों को किसी गहरे गड्ढे में डाल देना चाहिए जिससे उसकी खाद बन जायेगी तथा इसे खेतों में प्रयोग किया जा सकता है। जितनी भी व्यवसायिक प्रजातियां है उनमें एक किलो सूखे भूसे से लगभग 700 से 800 ग्राम तक पैदावार मिलती है।
5. मशरूम की तुड़ाई करना रू
ढींगरी के फलन में अत्यधिक मात्रा में छोटे बीजाणु या स्पोर्स बनते है जिन्हें सुबह उत्पादन कक्ष में धुएँ की तरह देखा जा सकता है। इन बीजाणुओं से अक्सर काम करने वाले लोगों को एलर्जी हो सकती है। अतः जब भी ढींगरी तोडने उत्पादन कक्ष में प्रातः जाए तो खिड़की, दरवाजे इत्यादि दो घंटे पहले खोल देने चाहिए तथा नाक पर मास्क या कपडा लगाकर कमरों में जाना चाहिए। अगर उत्पादन कक्ष में एक तरफ की दीवार पर अंदर की तरफ हवा फेंकने वाला पंखा लगा दिया जाये तथा उसके सामने वाली दीवार पर फर्श से लगभग 20-30 से.मी. ऊँचाई पर एक पंखा लगा दिया जाये तथा फसल की तोड़ाई के लगभग दो घंटे पहले दोनों पंखों को चला दिया जाये तथा 99 प्रतिशत दीगरी के स्पोर्स या बीजाणु बाहर निकल जायेंगे।
6. भंडारण उपयोग रू
ढींगरी तोड़ने के बाद उसे तुरंत पॉलीथीन में बंद नहीं करना चाहिए, अपितु लगभग दो घंटे कपड़े पर फैलाकर छोड़ देना चाहिए जिससे की उसमें मौजूद नमी उड़ जाए। ताजा ढींगरी को एक छिददार पॉलीथीन में भरकर रेफ्रिजरेटर में दो से चार दिन तक रखा जा सकता है। ढींगरी को ओवन में या धूप में सुखाया जा सकता है। ढींगरी के विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे ढींगरी मटर, ढींगरी आमलेट, पकोड़ा या बिरयानी इत्यादि बनाई जा सकती है। सूखी हुई ढींगरी का प्रयोग भी सब्जी के लिए किया जा सकता है। इसलिए इसे थोड़ी देर गर्म पानी में डालकर प्रयोग किया जा सकता है। इसलिए इसे थोड़ी देर गर्म पानी में डालकर प्रयोग किया जा सकता है। ताजा ढींगरी का अचार तथा सूप भी बहुत स्वादिष्ट बनाया जा सकता है। 
आमदनी
ढींगरी का व्यवसाय एक लाभकारी व्यवसाय है जिसमें लागत बहुत कम लगती है। इसके लिए उत्पादन कक्ष कम लागत पर बनाए जा सकते हैं तथा फसल चक्र भी 40-50 दिन का होता है। एक किलोग्राम ढींगरी का लागत मूल्य लगभग 25 से 30 रू तक होता है तथा इसे सफेद बटन मशरूम की कीमत पर बाजार में आसानी से बेचा जा सकता है।