जीवन का वास्तविक अनुभव Publish Date : 08/09/2024
जीवन का वास्तविक अनुभव
जिंदगी की वास्तविक समझ अनुभव से पैदा होती है। हम अपनी क्षमताओं का समुचित आकलन और नियोजन अनुभव करके ही कर सकते हैं। अनुभव किए बगैर न तो हम अपनी जिंदगी जी सकते हैं और न ही अपने अंदर समाई दिव्य क्षमताओं का परिचय पा सकते हैं। इस सबको जानने, समझने और सही नियोजन करने के लिए हमें उसी रूप में उन्हें महसूस करना चाहिए। हम आखिर हैं कौन और हमारे अंदर क्या है, जो बाहर फूटकर आना चाहता है? क्षमताएं अंदर सुप्त रूप में पड़ी रहती हैं। इन्हें तभी जाग्रत कर निर्दिष्ट कार्य में नियोजित किया जा सकता है, जब हम इन्हें गहराई से महसूस करेंगे। इन्हें हम जितना महसूस करेंगे, उनकी पहचान उतनी ही अधिक होगी। क्षमताओं को महसूस करना बौद्धिक व्याख्या नहीं है और कोई तर्क भी नहीं है कि यह ऐसा होगा या नहीं होगा। इनके बारे में तभी सार्थक रूप से बताया जा सकता है, जब इनकी बारीकियों को हम महसूस करेंगे। जीवन में असीम क्षमताएं समाई हुई हैं, परंतु ये सोई पड़ी हैं। ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जो इन दिव्य विभूतियों से वंचित होगा। सभी में ऐसी महान विभूतियां समाई हुई हैं कि उनके एक अंश उभरकर सामने आने पर मनुष्य कहां से कहां पहुंच सकता है। साधुवाद !
जीवनस्य वास्तविकबोधः अनुभवात् उत्पद्यते। अनुभवानन्तरं एव वयं स्वक्षमतानां सम्यक् मूल्याङ्कनं योजनां च कर्तुं शक्नुमः। अनुभवं विना न वयं स्वजीवनं जीवितुं शक्नुमः न च अस्माकं अन्तः दिव्यक्षमतां ज्ञातुं शक्नुमः। एतत् सर्वं ज्ञातुं, अवगन्तुं, सम्यक् योजनां कर्तुं च अस्माभिः तानि समानरूपेण अनुभूयितव्यानि। किन्तु वयं के स्मः, अस्माकं अन्तः किं च बहिः आगन्तुं इच्छति। क्षमताः अन्तः सुप्ताः सन्ति। एतानि तदा एव जागृत्य निर्दिष्टे कार्ये नियोक्तुं शक्यन्ते यदा वयं तान् गभीरं अनुभवामः। एतानि यथा यथा अनुभवामः तथा तथा तान् ज्ञास्यामः। भावनाक्षमता बौद्धिकव्याख्यानं न भवति तथा च स्यात् न वा इति तर्कः नास्ति। एतेषां सूक्ष्मतां यदा वयं अवगच्छामः तदा एव सार्थकरूपेण व्याख्यातुं शक्यन्ते। जीवनस्य अपारः सामर्थ्यः अस्ति, परन्तु सः सुप्तः एव अस्ति। न कश्चित् व्यक्तिः अस्ति यः एतेभ्यः दिव्यव्यक्तिभ्यः वंचितः स्यात्। सर्वेषु एतादृशाः महान् व्यक्तित्वाः वर्तन्ते यत् यदि तेषां कश्चन भागः उद्भवति तर्हि व्यक्तिः दूरं दूरं गन्तुं शक्नोति। धन्यवाद
The real understanding of life is born from experience. We can only do proper assessment and planning of our capabilities by experience. Without experience, neither can we live our life nor can we get to know the divine capabilities contained within us. To know, understand and do proper planning of all this, we should feel them in the same form. Who are we after all and what is there inside us, which wants to burst out? The capabilities lie dormant inside. They can be awakened and employed in the specified work only when we feel them deeply. The more we feel them, the more we will recognize them. Feeling capabilities is not an intellectual explanation and there is no logic that it will happen or not. They can be told meaningfully only when we feel their nuances. Life contains infinite capabilities, but they are lying dormant. There is no person who will be deprived of these divine virtues. Everyone has such great qualities that if a part of them emerges, a man can reach great heights. Thanks!