अपनी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण      Publish Date : 05/09/2024

                         अपनी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण

                                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि देश के स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत 7 अगस्त 1905 को टाउन हॉल कलकत्ता (अब कोलकाता) में आयोजित एक बैठक में हुई थी। इस ऐतिहासिक अवसर को याद करने और हमारी हथकरधा परंपरा का जश्न मनाने के लिए माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्षं 2015 में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरधा दिवस के रूप में घोषित किया गया। हवकरधा क्षेत्र ग्रामीण और अर्थ-ग्रामीण आजीविका का महत्वपूर्ण स्रोत है, जो कि लगभग 35 लाख से अधिक लोगों रोजगार को देता है और इनमें से 25 लाख से अधिक महिलाएं हैं। इस प्रकार यह क्षेत्र महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है। वस्त्र मंत्रालय के द्वारा देश भर में हथकरधा के क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की गईं है।

इसके सन्दर्भं में, मैं आपका ध्यान गत 28 जुलाईं 2024 को माननीय प्रधानमंत्री के ‘‘मन की बात’’ कार्यक्रम की ओर आकर्षित करना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने ग्रामीण नारीशक्ति को आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान करने में हथकरण क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डाला था। इसके सम्बन्ध में उन्होंने नये स्टार्टअप्स और उद्यमों की ओर भी सभी का ध्यान आकर्षित किया था, जो हथकरधा उत्पादों और सस्टेनेबल फैशन को प्रोत्साहित करने आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने नागरिकों से स्थानीय हथकरधा उत्पादों को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने का आग्रह भी किया था।

पिछले कुछ वर्षों में भारत का हथकरधा क्षेत्र निरंतरता और स्लो फैशन के प्रतीक के रूप में उभरा है। आज मैं मात्रा की अपेक्षा उत्पाद की गुणवत्ता को प्राथमिकता देने के महत्त्व पर अधिक जोर देना चाहता हूँ, क्योंकि हम हथकरधा के पुनरूत्थान का जश्न मना रहे हैं. इस अवसर पर मैं भारत के लोगों से हथकरधा के क्षेत्र में गति बनाए रखने को अप्रैल करता हूँ। हथकरधा बुनाई एक विरासत में मिली शिल्पकला है, जो स्लो, निरंतर और नैतिक फैशन के सिद्धांतों को मूर्तरूप देती है। पिछले दशक में लगातार सरकारी प्रयासों से फास्ट फैशन से लेकर स्थानीय स्तर पर उत्पादित वस्तुओं में उल्लेखनीय बदलाव हुआ है। प्रधानमंत्री गर्व से भारतीय हथकरधा पर बुने हुए कपड़े पहनते हैं, और विश्व स्तर पर उनको भी देते हैं कर क्षेत्र की सफलता में काफी हद तक उनका योगदान रहा है। समय आ गया है कि अधिक से अधिक लोग इस आंदोलन में शामिल हो। मैं इस क्षेत्र के उत्थान में कताई रंगाई और बुनकर के रूप में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता हूँ तथा उनके अमूल्य योगदान की सराहना करता हँ। मैं देशभर के पारंपरिक समुदायों और विशेषकर महिलाओं के योगदान को पूरी तरह से मान्यता और सम्मान प्रदान करता हँू, जिनके बिना हमारे हथकरधा क्षेत्र के उत्थान कल्पना करना भी असंभव है। अतः उनके इस योगदान को बनाए रखने और उसे बढ़ावा देने के लिए उनके साथ गरिमापूर्णं एर्वं सम्मानजनक व्यवहार को बनाए रखना भी जरूरी है।

‘‘मैं आपका ध्यान 28 जुलाई, 2024 को माननीय प्रधानमंत्री के ‘‘मन की बात’’ कार्यक्रम की ओर आकर्षित करना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान करने में हथकरघा क्षेत्र के महत्व पर प्रकाश डाला था। उन्होंने भारतीय नागरिकों से स्थानीय हथकरघा उत्पादों को लोकप्रिय बनाने का भी आग्रह किया था। पिछले कुछ वर्षों में भारत का हथकरघा क्षेत्र निरंतरता और स्लो फैशन के प्रतीक के रूप में उभरा है।’’

बुनाई कौशल, डिजाइन नवाचार और एंटर क्षमताओं में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू किए गए शैक्षिक कार्यक्रम और पहल इन महिलाओं को और अधिक सशक्त करती है। नई तकनीकों में निपुणता प्राप्त करके और आधुनिक वाहनों को एक्सप्लोर करके महिला बुनकर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बना कर समकालीन बाजारों को आकर्षित कर सकती है, जो उनके शिल्प की सस्टेनिबलिटी को सुनिश्चित करेगी। एमब्रीडरी और प्रिंटिंग द्वारा मूल्य संवर्धन के माध्यम से हथकरधा को बढ़ावा देने से पारंपरिक वस्त्रों में नई जान आती है तथा अद्वितीय और अत्यधिक वांछनीय उत्पाद तैयार होते हैं। एम्ब्रॉइडरी, सुई के काम से जुड़ी एक जटिल कला, जो हथकरधा कपड़ों में अधिक गहराई और विशेषता पैदा करती है। जरदोजी, करधा या चित्रकारी जैसी विभिन्न तकनीकों को शामिल करके कारीगर साधारण हथकरधा वस्त्रों को विस्तृत अद्वितीय टुकड़ों में बदल देते हैं। इससे न केवल सौंदर्य अपील बढ़ती है, बल्कि उत्पादों का बाजार मूल्य भी बढ़ता है, जिससे कारीगरों को बेहतर आर्थिक अवसर मिलते हैं।

हथकरधा उद्योग में प्रौद्योगिकी और नवाचार का एकीकरण बुनकरों के द्वारा अनुभव की जाने वाली कठिनाईंयों को कम करने, उत्पादकता को बढ़ाने और इस पारंपरिक शिल्प को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्णं कदम है। आधुनिक प्रगति ने हथकरधा बुनाईं सम्बद्व शारीरिक श्रम को काफी हद तक कम कर दिया है, जिससे यह पूरी प्रक्रिया अब अधिक एफिशिएंट होने के साथ ही कम श्रम वाली हो गईं है। कंप्यूटर एडेड डिजान (सीएडी) सॉफ्टवेयर बुनकरों को बुनाई शुरू करने से पहले उन्हें जटिल पैटर्न और रंग संयोजनों के सूयवस्थित प्रयोग हेतु सक्षम बनाता है। इससे न केवल समय की बचत होती है, अपितु त्रुटियों का जाखिम भी काफी कम हो जाता है और इससे उच्च गुणवत्ता वाले आउटपुट प्राप्त होते हैं।

राष्ट्रीयकरण दिवस (7 अगस्त) के उपलक्ष्य में इस वर्ष में सभी लोगों से दो प्रतिज्ञाएं लेने का आग्रह करता हूँ, पहली हम सभी हथकरधा उत्पादों के साथ सेल्फी लेंगे और उसे सेशल मीडिया पर साझा करेंगे और दूसरी हथकरधा को अपने परिधानों एवं दैनिक जीवन में शामिल करेंगे। प्रत्येक हथकरधा वस्तु अद्वितीय है, जिसे बेहद सावधानी एवं बारीकी के साथ बुना जाता है, जो इसके बनाने वाले के समर्पण के साथ ही साथ उसके शिल्प कौशल को भी प्रदर्शित करता है। हथकरधा उत्पादों का चयन करके हम न केवल अपनी पारंपरिक वस्त्रों की सुंदरता और विविधता को सम्मानित करते हैं, बल्कि कारीगरों की आजीविका में भी महत्वपूर्णं योगदान देते हैं।

हथकरधा उद्योग में गुणवत्ता, निरंतरता और तकनीक को प्राथमिकता देना अति महत्वपूर्ण है। हर किसी को क्षेत्रीय शिल्पकारों और पारंपरिक बुनाई करने वाले समुदायों का समर्थन करना चाहिए और उनके द्वारा बनाए कपड़ों की खरीदारी के प्रति जागरूक रहना चाहिए, जिससे इन्हें बनाने वाले लोग और यह क्षेत्र लाभान्वित होता है। हथकरधा वस्तुओं के निष्पक्ष व्यापार, रीजनल मैन्यूफैक्चरिंग, सस्टेनियलिटी और शिल्प कौशल इत्यादि पर ध्यान देने से इस आंदोलन को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी और हथकरधा बुनकरों को उनका हक मिल सकेगा। हथकरधा उद्योग का समर्थन करके हम न केवल एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए भी प्रयास करते हैं, और इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र के द्वारा निर्धांरित कई सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) 2030 को भी प्राप्त करते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।