पौधा रोपण को एक रस्म अदायगी न समझकर उसका संरक्षण भी आवश्यक Publish Date : 04/09/2024
पौधा रोपण को एक रस्म अदायगी न समझकर उसका संरक्षण भी आवश्यक
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
देश में जब भीषण गर्मी पड़ती है तो उस समय हम सभी लोगों को पौधों की याद आने लगती है और पौधे लगाने की तरफ भी ध्यान जाता है और हम सभी अधिक से अधिक पेड़ लगाते भी हैं और उनकी संख्या अधिक होती तो शायद उनको भीषण गर्मी की मार से जूझना पड़ता है। जून की भीषण गर्मी के बाद बारिश आने पर सभी वृक्ष प्रेमी लोग गत वर्षाे की भांति पौधे रोपने लग जाते है, लेकिन हर बार की तरह ही इस बार भी उनमें यह दिलचस्प नहीं है कि उनके द्वारा रोपा गया पौधा, आने वाले ग्रीष्मकल से पहले ही बच पाता है या यह खत्म हो जाएगा।
यह सावधानी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इस बार भी पर्वतीय अंचलों के वनों में लगी आग चलते लाखों पेड़ जलकर राख हो गए हैं। इसके अलावा वन्य जीव, जड़ी बूटियां, घास, छोटे-छोटे पौधे और पक्षी आदि के विनाश का तो कोई आंकड़ा ही उपलब्ध नहीं है। हम लोगों के पास आज से प्रभावित भागों की जैव विविधता को बचाने के लिए लोगों ने कई पत्र अपनी राज्य सरकारों को सौंप दिए हैं। लेकिन बारिश आते ही सारे प्रयास ठंडे बस्ते में चले जाते हैं। अतः वन और पर्यावरण के प्रति इस घोर लापरवाही के बाद पेड़ उतने ही लगाने चाहिए जितना कि इंसान उनकी देखभाल करके उन्हें बचा सकता है।
जंगल के बीच में पेड़ लगाकर उन्हें भगवान के भरोसे छोड़ना समय और पैसा दोनों की बर्बादी होता है और यह 1 वर्ष नर्सरी में उगाए गए पौधों के प्रति भी अन्याय है। लेकिन जो लोग अपनी जिम्मेदारी और देखरेख में पौधारोपण कर रहे हैं, उनके द्वारा रोपे गए पौधे आग और सुखे दोनों से बच जाते हैं और सुरक्षित भी रहते हैं।
आंकड़ों के आधार पर यह भी कहा जा रहा है कि लगभग 73,000 प्रजातियों के 30.5 0 खरब पेड़ दुनियाभर में मौजूद है। लेकिन दूसरी तरफ पता चला है कि प्रतिवर्ष 15 अरब पेड़ विकास के नाम पर काटे जाते हैं और यह भी बताया जाता है कि इतने ही पौधों का रोपण भी किया जाता है। इसके आधार पर पता चलता है की प्रति व्यक्ति 400 से अधिक पेड़ धरती पर हैं, परन्तु यदि यह सच होता तो यह पेड़ इस भीषण तापमान को रोकने में मददगार हो सकते थे। दूसरी ओर भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में से 24.62% क्षेत्र में ही वन है, जबकि स्वस्थ पर्यावरण मानक के अनुसार 33.3 प्रतिशत क्षेत्र में पेड़ पौधे होने चाहिए थे। धरती पर कार्बन र्डाऑक्साईड को नियंत्रित करने में पेड़ पौधों के अलावा घास की भी अहम भूमिका होती है।
भारत के भूगोल में विविधता के कारण प्राकृतिक वन क्षेत्र में बहुत अंतर दिखाई देता है। वन स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के वन क्षेत्र में बेहतर सुधार हुआ है और इसके आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि यहां प्रति व्यक्ति 28 पेड़ है। अरुणाचल प्रदेश में 80 प्रतिशत वन क्षेत्र है, उत्तराखंड में 71 प्रतिशत और राजस्थान में 10 प्रतिशत से भी कम वन क्षेत्र हैं। इसलिए भारत की वन नीति के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक तिहाई क्षेत्र को वनों के अंतर्गत लाना पड़ेगा।
एक व्यक्ति को उसके सम्नूर्ण जीवन काल में 7 से 8 पेड़ों से प्रतिवर्ष 740 किलोग्राम ऑक्सीजन मिलती है। इस प्रकार यदि हर व्यक्ति एक वर्ष में सिर्फ पांच पेड़ लगाए और उनमें से 75 प्रतिशत भी बचा सके, तो धरती पर ऑक्सीजन की कमी नहीं होगी। ध्यान रहे, एक पौधा तभी पनपता है, जब उसे लगाते समय गड्ढे में कोई कीट न हो और यदि हो भी तो दवाई के छिड़काव के साथ खाद और मिट्टी मिलाकर पौधे लगाने चाहिए। पौधों का धूप से बचाव करने के लिए उसकी समय-समय पर सिंचाई बेहद जरूरी है। रोपण के समय गड्ढे के चारों ओर 50 से 100 सेंटीमीटर व्यास के घेरे में व्याप्त खरपतवार हटाए बिना पौधों की वृद्धि रुक सकती है। 18 से 24 महीने तक निराई और खाद का प्रयोग करना भी आवश्यक है। पेड़ आमतौर पर गीली जमीन पसंद करते हैं इसलिए इसका ध्यान नहीं रखेंगे तो रोपे गए पौधे जल्दी ही सूख जाएंगे।
अनुमान है कि वर्ष 2050 तक 25 खराब पेड़ ही बचे रहेंगे। इसके बाद तो फिर वैश्विक तापमान वृद्धि को कोई नहीं रोक पाएगा। इसलिए जरूरी है कि राज्य सरकार अपने नागरिकों के साथ हर स्तर पर पर्यावरणीय मानको को बनाए रखने के लिए उचित देखभाल के अनुसार ही पौधारोपण कराए। इसके साथ ही राज्यों को बिना सोचे समझे जंगल को रातों-रात काटने की प्रवृत्ति पर रोक लगानी पड़ेगी। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में जहां हर वर्ष करोड़ों पेड़ों का रोपण किया जाता है वहीं दूसरी तरफ लगभग 50 वर्षों से पाले हुए जंगलों को काटने पर भी विचार किया जा रहा है। उत्तराखंड में जहां हर रोज जंगल बचाने के लिए लोग एकत्र होते हैं, बावजूद इसके वहां से फिर भी यहां आए दिन हरे पेड़ काटने की शिकायतें मिलती रहती है।
लगभग यही स्थिति जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल असम मेघालय मणिपुर नागालैंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड आदि प्रदेशों में देखने को मिल रही है जहां विकास के नाम पर हर रोज लाखों पेड़ों की बलि दी जा रही है। यदि हम रोज पौधारोपण करें और हमारे सामने ही 50 या 60 साल पुराना जंगल काट दिया जाए तो समझना चाहिए कि हम आज जो पेड़ लगा रहे हैं पहले तो उसे आग से बचना मुश्किल होगा और यदि बच गया तो लगभग 50 वर्ष तक अपने जंगल के रूप में खड़ा होने के लिए इंतजार भी करना होगा।
अतः ज़रूरी हो गया है कि पुराने समय से जो पेड़ हमें ऑक्सीजन दे रहे हैं, उसके अलावा जो बी धरती के अंदर से जमकर पौधों का रूप धारण कर रहे हैं। उन्हें भी राज व समाज को मिलकर पौधारोपण की तरह महत्व देने की आवश्यकता है तभी हम अपने जीवन को सुरक्षित रख सकेंगे।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।