पतन की पराकाष्ठा      Publish Date : 22/05/2023

                                                                                   पतन की पराकाष्ठा

                                                               कलेजे के टुकड़े ही अपने बुजुर्गों के टुकड़े.टुकड़े कर रहे हैं

नामः आर्यन                 उम्रः 21 वर्ष

आरोपः अपने माँ बाप की हत्या।

डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

    यह तो केवल एक बानगी भर है। मेरठ की पॉश कॉलौनी शास्त्री नगर में एक बेटे ने अपने ही माँ-बाप की हत्या कर दी और पुलिस के द्वारा की गई पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार कर लिया है।

    क्यों और कैसे के बीच यह वारदात अवसाद, माता-पिता का अलगाव, घरेलू हिंसा और बालमन पर पड़ने वाले प्रभावों की हैं और आर्यन के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ।

    कहा जा रहा है कि आये दिन के घरेलू क्लेश एवं हिंसा से परेशान आर्यन अपने पिता को सबक सिखाना चाहता था, जिसका परिणाम दोहरे हत्याकाण्ड़ के रूप में सामने आया है। वर्तमान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के युवाओं की मनोदशा में एक बड़ा परिवर्तन देखने में आ रहा है।

मनोवैज्ञानिकों की माने तो बच्चे वर्तमान में रोक-टोक, डाँट-फटकार और घरों के अन्दर होने वाले झगड़ों-टंटो को बर्दाश्त नही कर पा रहे हैं।

बच्चे अपने माता-पिता के बारे में कुछ सपने बुनते हैं और फिर वही बच्चे किन्हीं सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक कारणों से उनके विरूद्व हो जाते हैं। वेस्ट यूपी की कुछ हालिया घटनाएं ऐसी हैं, जहाँ बच्चों के द्वारा ही कहीं अपनी माँ का तो कहीं अपने पिता का कत्ल कर दिया गया।

मेरठ में इस प्रकार की पहली सनसनीखेज घटना वर्ष 2008 में प्रकाश में आई थी। जब मेडिकल थाना क्षेत्र स्थित प्रेम प्रयाग कॉलोनी में प्रियंका ने अपनी सहेली अन्जु के साथ मिलकर अपने माता-पिता की हत्या कर दी थी।

अन्जु एवं प्रियंका वर्तमान में इस हत्याकाण्ड़ के सिलसिले में आजीवन कैद की सजा भुगत रही हैं। इस घटना के अलावा भी कई अन्य बड़ी घटनाएं भी समय-समय पर सामने आती रही हैं। जिनमें बच्चों ने कभी प्रॉपर्टी, कभी विवाद एवं कभी मानसिक अवसाद के चलते अपने माता-पिता को मौत की नींद में सुलाया है।

मनोवैज्ञानिकों का कथन

निगेटिव इमोशंस भी करा देते हैं इस प्रकार के अपराध

    गुस्सा या एगेशन एक ऐसा इमोशन होता है, जिसका स्तर बहुत अधिक बढ़ जाए तो यह नफरत भी पैदा कर देता है। किसी के बारे में गलत अफवा उड़ाना, इमोशनली हर्ट करना, षड़यन्त्र करके नीचा दिखाना या नुकसान पहुँचाना आदि भावनाओं को बच्चा अपने मन में बिठा लेता है।

मण्ड़लीय मनोविज्ञान केन्द्र पर दो मामले अभी ऐसे आए हैं, जिनमें बच्चे अपने माता.पिता से बहुत नाराज हैं और उनके व्यवहार से परेशान होकर अब वे अपने माता-पिता से दूर रहने की बात कर रहे हैं।

-डॉ0 मनीषा तेवतिया, मण्ड़लीय मनोविज्ञान केन्द्र, मेरठ।

बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देने की आवश्यकता

    बच्चों में उनके हिंसक व्यवहार के संकेतों पर शुरू से ही ध्यान देने की जरूरत है। इनमें गलत भाषा का प्रयोग करनाए समझाने पर भी गुस्सा दिखाना और कोई भी बात समझाने पर चीजों को फेंकने लगना आदि आदतें शामिल हैं।

    बच्चों के असामान्य व्यवहारए हिंसक व्यवहार या हिंसक व्यवहार से सम्बन्धित व्यवहार के संकेतों को कदापि नजरअंदाज नही करना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि वे किसी मनोरोग से ग्रस्त हो रहे हों।

घरेलू हिंसा के मामलों में 15 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी

                                                              

    मेरठ जनपद में घरेलू हिंसा के मामलों में निरन्तर बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। इसके बारे में कानूनविद एवं समाज का मानना है कि युवाओं में संयम की कमी इसका एक बड़ा कारण है। ईगो के कारण छोटी-छोटी बातों को लेकर मनमुटाव शुरू हो जाता है। यही मनमुटाव आगे चलकर घरेलू हिंसा का रूप धारण कर लेता है।

आखिर घरेलू हिंसा क्या है

    ऐसा कोई भी आचरण अथवा व्यवहार जो किसी महिला या बच्चे को चोट पहुँचाता है या नुकसान पहुँचाता है और जो उसकी सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के लिए एक खतरा है, वह घरेलू हिंसा के दायरे में आता है। जबकि घरेलू हिंसा के लिए उत्तरदायी मुख्य कारणों में निम्न तथ्यों को शामिल किया जा सकता है-

  • दहेज का कम मिलना अथवा नही मिलना।
  • अपने माता-पिता के घर से धन-सम्पत्ति आदि लेकर आने से वधु का इंकार करना।
  • शादी के अवसर पर वधु के माता-पिता के द्वारा अपने किए हुए वायदों को पूरा नही करना।
  • विवाहेत्तर सम्बन्धों की शंका होना।
  • शादी पूर्व सम्बन्धों की शंका होना।
  • यौन उत्पीड़न का विरोध करना।
  • गर्भधारण में सक्षम नही होना।
  • पत्नि का यौन सम्बन्ध स्थापित करने में आनाकानी करना।
  • एक या अधिक कन्याओं को जन्म देना।
  • पति का बेरोजगार होना।
  • कार्यस्थल पर पति की विभिन्न समस्याएं।
  • महिलाओं के आगे बढ़ने से घर के अन्दर अपने आप को परम्परागत स्थिति में नही पाना।
  • महिलाओं के द्वारा नए फैशन के कपड़ों के पहनने पर एतराज करना।
  • पति के सम्बन्ध अन्य महिलाओं के साथ होना।
  • महिला का उन्मुक्त स्वभाव का होना।
  • पति का शराबी होना, घरेलू हिंसा से सम्बन्धित अकेला ही एक चौथाई मामलों के लिए उत्तरदायी है।
  • महिला संरक्षण अधिनियम का उद्देश्य घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाना है।

घरेलू हिंसा के निवारण के उपाय

  • आपसी बातचीत एवं समझौता।
  • एनजीओ आदि के माध्यम से समस्याओं का समधान करना।
  • किसी मनोवैज्ञानिक डॉक्टर की सहायता लेकर सम्बन्धित लोग अपने बीच के छोटे-छोटे मुद्दों को समाप्त कर सकते हैं। कोई समाधान नही मिलने पर सम्बन्धित थाने पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।

कानूनविद उवाच्

    मेरठ बार एसोयिएशन के महामंत्री विनोद चौधरी का कहना है कि जिले में 15 से 20 प्रतिशत की वार्षिक दर से घरेलू हिंसा में वृद्वि हो रही है। इसका प्रमुख कारण पति-पत्नि का एक दूसरे की भावनाओं को नही समझना और आपसी सामजस्य की कमी का होनाए जबकि एक.दूसरे के साथ की भावना अहम हैं।

    अधिवक्ता सिल्विया सिल्विया सैम्यूल का कहना है कि वर्तमान युग में महिलाएंए पुरूषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं। महिलाएं नौकरी के साथ ही गृहस्थी को भी संभाल रही हैं। ऐसे में पुरूष अपने को ऊपर एवं स्त्री को नीचे समझकर उसे दबाता है तो स्त्री उसे सह नही पाती हैं और अपने हक के लिए अदालत तक का रूख कर रही हैए इसी कारण से इन मामलों में वृद्वि देखी जा रही है। 

  डॉ0 सतीश बुडानियाए वरिष्ठ न्यूरो साइकियाट्रिसए मेरठ।

स्टार्ट-अप्स से रोजगार

                                                                              

    वर्ष 2002 में केन्द्र सरकार से मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप्स के माध्यम से सम्पूर्ण देश में 2,68,823 रोजगार के अवसर सृजित हुए। जिनमें सर्वाधिक रोजगार महाराष्ट्र में पैदा हुए। सम्पूर्ण देश में सृजित हुए रोजगार के अवसरों का विवरण कुछ इस प्रकार से है-

महाराष्ट्र           51,357

दिल्ली                 30,083

कर्नाटक            24,487

गुजरात                23,832

उत्तर प्रदेश             22,969

कम नमक खाने से उच्च रक्तचाप में होगी कमी

भोजन में नमक की कम मात्रा सेवन करने से उच्च रक्तचाप में भी सुधार हो सकता है। हाल ही में भारतीय लोगों पर किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। मेडिकल जनरल दा लैसेंट में प्रकाशित झारखंड के देवघर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने श्स्वाद संशोधन रणनीति के साथ नमक को कम करने की तकनीक को सामने रखा है।

इस तकनीक के मुताबिक भोजन में मसाले और जड़ी बूटी का इस्तेमाल बढ़ाने से स्वत: ही नमक की मात्रा में कमी आने लगेगी। इस तरह धीरे-धीरे नमक के सीमित होने से उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में लाया जा सकेगा।

भारत में हर चौथे व्यक्ति के उच्च रक्तचाप से ग्रस्त होने का अनुमान है। इनमें हार्ड अटैक, ब्रेन स्ट्रोक जैसे जोखिम होने की आशंका अधिक बनी रहती है।

अब भारतीय लोगों को अपने स्वाद में संशोधन करने की आवश्यकता है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि हल्दी, काली मिर्च और अदरक जैसी चीजों का उपयोग उच्च रक्तचाप की रोकथाम के लिए एक संभावित रणनीति हो सकती है। इसे भोजन की आदतों को बदलने में मदद मिल सकती है। नमक के सेवन में मामूली कमी समय के साथ उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है।

अन्नप्राशन से नमक का लगाओ

अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय व्यंजनों में कई प्रकार के क्षेत्रीय और पारंपरिक व्यंजन भी शामिल हैं। भारत में लोग नमक को पोषक तत्व कम बल्कि स्वाद के रूप में ज्यादा समझते हैं। नमकीन स्वाद वाली चीजों के प्रति संवेदनशीलता और इच्छा उनमें तब शुरू हो जाती है, जब 6 माह के शिशु का अन्नप्राशन होता है और जैसे जैसे वह बड़ा होता है नमक के साथ उसका लगाव भी बढ़ता जाता है।

गैर संचारी रोगों का जोखिम होगा कम

स्वाद संशोधन रणनीति के अनुसार अगर उच्च रक्तचाप नियंत्रण में आएगाए तो ना सिर्फ स्वास्थ्यए बल्कि कई अन्य स्थितियों में भी बदलाव होगा। इससे देश में सालाना 63% मौतों के लिए जिम्मेदारए गैर संचारी बीमारियों के जोखिम को कम किया जा सकता है और इससे बीमारियों पर होने वाला खर्च भी कम होगा। एम्स के वरिष्ठ डॉक्टर सुधीप भट्टाचार्य के अनुसारए “ष्स्वाद संशोधन” रणनीति को अलग.अलग अस्पतालों में नैदानिक परीक्षणों का उपयोग करके मान्य किया जाना चाहिए।

उच्च शिक्षा को ‘उत्साह’ प्रदान करने को तैयार है यूजीसी

                                                

    राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रभावी तरीके से लागू करने के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से विभिन्न प्रकार की कार्ययोनाएं बनाई एवं संचालित की जा रही हैं। इसी कार्यक्रम के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर उसमें उत्साह भरने के लिए एक नई पहल की गई है।

    यूजीसी ने उत्साह यानी ‘अंडरटेकिंग ट्राँसफार्मेटिव स्ट्रेटेजीज एण्ड एक्शंस इन हायर एजुकेशन’ नाम का एक पोर्टल तैयार किया है। इस पोर्टल के माध्यम से उच्च शिक्षा में किए जा रहे बदलाव और गतिविधियों का लेखा-जोखा निरंतर रक्षित किया जाएगा। युजीसी की ओर से की जा रही इन पहलों को लोगों तक पहुँचाने के साथ ही उच्च शिक्षण संस्थानों में इससे जुड़ी रणनीतिक पहल को भी इसके अन्तर्गत निगरानी में रखते हुए समय-समय पर मदद एवं मार्गदर्शन भी उपलब्ध कराया जाएगा।

10 महत्वपूर्ण कार्य करेगा उत्साहः यूजीसी की ओर से उत्साह के माध्यम से 10 महत्वपूर्ण क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है। इनमें बहुायामी और समग्र शिक्षा, डिजिटल अधिकारिता और ऑनलाईन शिक्षा, अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों में क्षमता का निर्माण, शासन और स्वायत्तता, प्रत्यायन और उत्कृष्टता, समतामूलक और समावेशी शिक्षा, भारतीय भाषाओं एवं भारतीय ज्ञान प्रणालियों का प्रचार और भारतीय शिक्षा का अन्तर्राष्ट्रीयकरण करना आदि प्रमुख हैं।

    यूजीसे के द्वारा इन समस्त बिन्दुओं पर सम्बन्धित कार्ययोजनाओं को इस पोर्टल पर अपलोड कर दिया गया है।

गतिविधियाँ जिन पर रहेगी खास नजर

बहुआयामी और समग्र शिक्षा- इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बहुआयामी डिग्री कार्यक्रम, अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट यानी एबीसी, शैक्षणिक कार्यक्रमों में एकाधिक प्रविष्टि एवं निकास और नेशनल हायर एजुकेशन क्वलीफिकेशन फ्रेमवर्क और करिकुलम एंड क्रेडिट फ्रेमवर्क पर कार्य किया जाएगा।

डिजिटल अधिकारिता और ऑनलाईन शिक्षा- कार्यक्रम के अन्तर्गत ओडीएल यानी ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग, ऑनलाईन कार्यक्रम तथा डिजिटल नोडल केन्द्र बनाएं जाएंगे।

कौशल विकास एवं रोजगार- कार्यक्रम के अन्तर्गत इंटर्नशिप, अप्रेंटिसशिप एम्बेडेड डिग्री प्रोग्राम एवं उद्योग संस्थान लिंकेज यानी शिक्षा व उद्योग को जोड़ने पर कार्य किया जाएगा।

अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता- कार्यक्रम के अन्तर्गत अनुसंधान और विाकस कार्यो पर विशेष जोर दिया जाएगा। इसके साथ ही इन दोनों क्षेत्रों में होने वाली प्रगति पर करीबी नजर रखी जाएगी।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों में क्षमता का निर्माण- कार्यक्रम के अन्तर्गत उच्च शिक्षण संस्थानों के विभिन्न संकायों में रिक्तियों की ट्रकिंग करना और संकाय सदस्यों की क्षमता निर्माण के सम्बन्ध में कार्य करना एवं निरन्तरत को बनाए रखने पर जोर देना रहेगा।

शासन और स्वायत्तता- इस कार्यक्रम के अन्तर्गत आईपीडी अर्थात संस्थागत विकास योजना के तहत कार्य किया जाना है। जिसमें संस्थानों से जुड़े विकास कार्यों की निगरानी भी की जाएगी।

प्रत्यायन और उत्कृष्टता- कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रत्ययन यानी इक्विटेबल और उत्कृष्टता अर्थात इंक्लुसिव एजुकेशन के क्षेत्र में कार्य किया जाएगा।

समतामूलक और समावेशी शिक्षा- कार्यक्रम के अन्तर्गत उच्च शक्षण संस्थानों में लैंगिक समानता और सोशियो इकोनोमिकली डिसएडवांटेज ग्रुप यानी पिछड़े वर्ग के युचाओं को समान शिक्षा में समावेशित किया जाएगा।

भारतीय भाषाओं एवं भारतीय ज्ञान प्रणालियों का प्रचार- कार्यक्रम के अन्तर्गत यूजीसी देश की समस्त भाषाओं के अन्तर्गत विभिन्न पा्यक्रमों को तैयार करा रहा है। इसके साथ ही इन पाठ्यक्रमों में भारतीय ज्ञान प्रणालियों को भी शामिल किया जा रहा है और इसकी शुरूआत भी की जा चुकी है। चौधरी चरण सिह विश्वद्यिालय के समेत अन्य विश्वविद्यालयों ने इसके अलग से विभाग बनाने भी आरम्भ कर दिए हैं।

 भारतीय शिक्षा का अन्तर्राष्ट्रीयकरण करना- इस कार्यक्रम के अन्तर्गत यूजीसी ने भारतीय और विभिन्न विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के मध्य शैक्षणिक एवं अनुसंधान के कार्यों के सहयोग में वृद्वि कर रहा है। इसके अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय मामलों के लिए कार्यालयों की स्थापना की जाएगी। इसके साथ ही विभिन्न उच्च शक्षण संस्थानों के उन पुरातन छात्रों को भी जोड़ा जाएगा जो देश एवं दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं।

लेखकः डॉ0 सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर के प्रोफेसर एवं कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाधक्ष हैं।