व्यवहार में संतुलन का होना आवश्यक      Publish Date : 24/08/2024

                            व्यवहार में संतुलन का होना आवश्यक

                                                                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

संसद का बजट सत्र समाप्त हो गया, लेकिन लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी का भाषण और सत्तारूढ़ गठबंधन के सांसदों, मंत्रियों और नेताओं के द्वारा दिए गए प्रत्युत्तर ने ऐसे अनेक प्रश्न उठाए हैं, जिनका उत्तर हमें तलाशना ही होगा। संसद में हमने कभी भी इस तरह के नरेटिव और परिदृत्य अब से पहले नहीं देखे। राहुल गांधी ने विपक्ष के नेता के रूप में जिस तरह का भाषण दिया वैसा पहले कभी सुना नहीं गया। हालांकि पिछले दो वर्षों की उनकी राजनीति पर गहराई से दृष्टि रखने वालों के लिए यह अपेक्षित है।

                                                                        

17वीं लोक सभा के बाद के लोक सभा में और बाहर उनके भाषणों और व्यकत्वयों में एक क्रमबद्धता है। वह भले विवेकशील लोगों को पसंद न आए या फिर पुराने कांग्रेसियों को भी स्वीकार नहीं हो, किंतु वह इसी तरह की भाषा बोलते रहे हैं। चूंकि विपक्ष के नेता के रूप में वह बजट पर चर्चा कर रहे थे, इसलिए स्वाभाविक ही मुख्य रूप से उनका फोकस इसी पर होना चाहिए था। इस समय उनके सलाहकारों, रणनीतिकारों और थिंक टैंक आदि की रणनीति नही है कि हर अवसर पर ऐसा भाषण या वक्तव्य देना है, जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा की छवि जनता में दागदार हो, ऐसे मुद्दे उठे जिनका सीधा-सीधा उत्तर देना कठिन हो और इसके लिए किसी सीमा को स्वीकार करने की जरूरत नहीं। सामान्य तथ्यागत विरोध आक्रामकता के साथ होना कोई चिंता का विषय नहीं होगा। स्थिति इससे बहुत आगे है।

भारत और भारत से जुड़े वैश्विक नैरेटिव समूह की स्थिति ऐसी है, जिसमें हमें ज्यादातर एकपक्षीय स्वर इतने प्रभावी रूप से सुनाई पड़ते हैं कि उनमें आसानी से सच समझना कठिन हो जाता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का लोक सभा भाषण इस मामले में सबसे ज्यादा निशाने पर है। अखिलेश यादव ने उस पर आपत्ति उठाते हुए कहा कि आप किसी की जति कैसे पूछ सकते हैं? राहुल गांधी ने कहा कि अनुराग ठाकुर ने उनको अपमानित किया है, लेकिन मैं इन लोगों की तरह नहीं हूं और मैं इन्हें क्षमा मांगने के लिए भी नहीं कहूंगा।

                                                                      

ठाकुर भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं, उनकी पार्टी सत्ता में है इसलिए कहा जा सकता है कि अति उत्तेजना और उकसावे के बीच भी उन्हें अंतिम सीमा तक संयम का परिचय देना चाहिए। दूसरे आप पर हमला करें और आप उसी भाषा में बोले तो फिर दोनों के बीच अंतर कठिन हो जाता है। किंतु नरेटिव की दुनिया में वर्चस्व रखने वाले समूह ने एक पंक्ति नहीं कहा कि राहुल गांधी ने अपने भाषण में सत्तारूढ़ पार्टी को उकसाने, उत्तेजित करने या चिढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। यहां तक कि वह बार-बार लोकसभा अध्यक्ष को भी परोक्ष रूप में कठघरे मे में खड़ा करते रहे हैं।

अध्यक्ष ओम बिरला के टोकने या आपत्ति करने पर उनका उत्तर होता था कि सर इसे कैसे बोलें या सॉरी सर, सॉरी सर, लेकिन यह उसी बात को सॉरी कहते हुए दोहराते भी रहे। अध्यक्ष के लिए भी उनको संभालना या रोक पाना असंभव हो गया है। यह पहली बार होगा जब संसद के अंदर विपक्ष के नेता ने सरकार को घेरने के लिए ऐसी उपमा दी, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक घसीटे गए। चक्रव्यूह के बारे में निश्चित रूप से कुछ गलत तथ्य दिए गए, किंतु ऐसा हो जाता है। बावजूद इसके उन्हें अपने पद के दायित्व का भान होना चाहिए था।

सत्तापक्ष हो या फिर विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा ही सर्वाेपरि है। आपका सरकार से राजनीतिक और वैचारिक मतभेद हो सकता है और उसे प्रकट करने का आपको अधिकार भी प्राप्त है। वैसे उसकी भी एक सीमा होती है कि हम विरोध करने के दौरान कहां तक जा सकते हैं। कभी भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को इस तरह राजनीतिक दल के हमले के साथ जोड़ा नहीं गया। आप कल्पना करिए इसका संदेश, देश के अंदर और बाहर क्या जाएगा। आंतरिक सुरक्षा हमारे देश में कितने नाजुक स्थिति में लंबे समय तक रहा है और बाहरी खतरे भी कितने बड़े हैं, इसका अनुमान उन सब लोगों को है जो थोड़ा बहुत भी सुरक्षा स्थिति पर    दृष्टि रखते हैं।

                                                                 

इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है जिसे कभी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। राहुल गांधी के भाषण को आधार बनाकर देश के अंदर उनके समर्थक तथा सरकार विरोधी सीमा के पार भी भारत के अनेक सुरक्षा या विदेश नीति संबंधी निर्णयों को आसानी से निशाना बनाएंगे। उनका खंडन करना भारत के लिए ज्यादा कठिन होगा।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बजट के पूर्व हलया परंपरा की तस्वीरें डालकर उन्होंने राजनीति का अपना जाति कार्ड को खेला। पिछले करीब 2 वर्षों से उनकी राजनीति में स्वयं को पिछड़ों दलितों का समर्थक तथा भाजपा को उनके विरुद्ध साबित करना सर्वाेपरि हो गया है।

परिणाम यह हुआ कि वित्त मंत्री ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में हलया परंपरा सहित कई तथ्यों का उल्लेख कर साबित कर दिया कि राहुल न केवल तथ्यात्मक रूप से तो गलत हैं बल्कि अपनी ही सरकार की परंपरा की उड़ा रहे है। इसी तरह सीतारमण के साथ खड़े अधिकारियों के बारे में भी कहा गया कि उनकी नियुक्ति राजीव गांधी सरकार के कार्यकाल में हुई थी। हालांकि राहुल गांधी ने बड़ी बुद्धिमत्ता से इस तस्वीर में से एक चेहरे हटा दिया जो वाकई पिछड़ी जाति का था। क्या सरकार की आलोचना व उसके विरोध के लिए संसदीय राजनीतिक मर्यादाओं की सीमा इस तरह लांघने और उनमें नौकर और प्रमुख पदों पर बैठे लोगों को निशाना बनाना किसी भी तरह से उचित है? प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह के साथ देश के वे शीर्ष उद्योगपतियों के हाथों भारत संचालन का सूत्र तो हम पर उत्तेजना पैदा होगी और दूसरी ओर से भी कुछ लोग सीमा उल्लंघन कर आपको उसी तरह प्रति हमले का शिकार बनाएंगे।

उन्होंने इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को भी नही छोड़ा। वह ऐसा प्रयास करते हैं। वह इतना कुछ बोलते हैं, कभी संघ प्रतिवाद करने नहीं आता सरकार से सहमत या असहमत होना, इसका विरोध करना यह सबका अधिकार है, पर इसके दूसरे पहलू को भी भी अपने चिंतन में लाना चाहिए। तथ्य और सत्य के आधार पर विरोध हो तो टिकाऊ होगा। हालांकि वर्तमान वातावरण में इसमें बदलाव की संभावना नहीं है, इसलिए देश के विवेकशील व्यक्तियों ने, जिनमें राजनेता भी शामिल हैं, जो कि मन से विचार करें कि किस तरीके से इसका प्रत्युत्तर दें तथा अपने व्यवहार से देश का वातावरण सकारात्मक शांत और संतुलित बनाए रखा जाए।

 लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।