जुलाई से सितंबर के बीच करें सतावर की औषधीय खेती      Publish Date : 17/08/2024

                 जुलाई से सितंबर के बीच करें सतावर की औषधीय खेती

                                                                                                                                                                डॉ0 सुशील शर्मा एवं मुकेश शर्मा

एक एकड़ में होगा 5 लाख का मुनाफा, इंटरनेशनल मार्केट तक इसकी जबरदस्त डिमांड

                                                                         

यदि किसान भाईं मेडिकल प्लांट की खेती से अच्छी आमदनी करना चाहते हैं, तो जुलाई से लेकर सितंबर तक का महीना आपके लिए काफी बेहतर चॉइस वाला सिद्व हो सकता है। बाज़ार में क़रीब 1000 रूपए प्रति किलो के भाव से बिकने वाले सतावर की रोपाई इन्हीं दिनों में की जाती है। सतावर की खेती की सबसे अच्छी बात यह होती है कि इसकी डिमांड राष्ट्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक लगातार बनी रहती है।

ऐसे में इस फसल के उत्पाद को अच्छी कीमत पर बेचने की समस्या का सामना किसानों को नहीं करना पड़ता है,। गौर करने वाली बात यह है कि पश्चिम चम्पारण ज़िले के कुछ किसान सतावर की खेती से बेहद अच्छी कमाई कर रहे हैं. और सभी किसानों को उनकी सलाह है कि इस सीजन में वे भी सतावर की खेती ज़रूर करके देखें।

सतावर की रोपाईं करने का समय जुलाई से सितंबर तक उत्तम

                                                                                

ज़िले के मझौलिया प्रखंड के रुलहिं गांव निवासी कृषक रमाशंकर बताते हैं कि सतावर की रोपाई जुलाई से सितंबर माह तक की जाती है। इसकी रोपनी जड़ या बीजों द्वारा की जाती है। इसकी व्यावसायिक खेती करने के लिए, बीज की तुलना में इसके जड़ों को अधिक श्रेष्ठ माना जाता है।

इसकी रोपाई करने के लिए पहले मिट्टी को 15 सेमी. की गहराई तक अच्छी तरह खोदा जाता है, इसके बाद जड़/कदो को एक फीट की दूरी पर लगाया जाता है, अर्थात क्यारी से क्यारी दो फीट तथा पौधे से पौधे की दूरी भी दो फीट ही रखनी चाहिए। हालांकि सतावर की फसल 18 महीने में तैयार हो जाती है, लेकिन इसे पूरी तरह विकसित होने तथा कंद के इस्तेमाल लायक होने में कुल 3 वर्षों का समय लगता है।

प्रति एकड़ 5 लाख रुपए तक का होता है मुनाफा

                                                                      

किसान रमाशंकर के अनुसार, सतावर की खेती करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है। सतावर के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। शुरुआत में सप्ताह में एक बार और जब पौधे बड़े हो जाएं तो महीने में एक बार हल्की सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। गौर करने वाली बात यह है कि पौधा रोपण करने के बाद जब इसके पौधे पीले पड़ने लगे, तो इसकी जड़ों की खुदाई कर लेनी चाहिए।

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो, किसानों को प्रति एकड़ 350 क्विंटल गीली जड़ें प्राप्त होती हैं, जो सूखने के बाद 35 से 50 क्विंटल ही रह जाती हैं। हालांकि सतावर की खेती में प्रति एकड़ 80 हजार से 1 लाख रूपए की लागत आती है जबकि, यदि मुनाफे की बात करें तो यह प्रति एकड़ 5 लाख रुपए तक का हो जाता है।

बाज़ार की नहीं है समस्या

                                                                 

अच्छी बात यह है कि सतावर को आयुर्वेदिक दवा कंपनियों को डायरेक्ट बेचा जा सकता है. या फिर आप इसे हरिद्वार, कानपुर, लखनऊ, दिल्ली, बनारस जैसे बड़े बाजारों में बेच सकते हैं। विशेष बात यह है कि यदि आप बेहतर क्वालिटी की 30 क्विंटल जड़ें भी बेचते हैं, तो आपको 6 से 7 लाख रुपए की आमदनी बड़ी आसानी से हो जाएगी। केवल इतना ही नहीं, यदि भाव और पैदावार कम हो, तब भी 4 से 5 लाख रुपए तक की आमदनी होना तय है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।