भारत एक विकसित राष्ट्र एवं वैश्विक गुरू के रूप में Publish Date : 05/08/2024
भारत एक विकसित राष्ट्र एवं वैश्विक गुरू के रूप में
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं इंजीनियर कार्तिकेय सेंगर
हम सभी नागरिक भारतीय होने पर गर्व का अनुभव करते हैं। यह महान देश निकट भविष्य में विश्व गुरु बनने की उत्कृष्ट इच्छा रखे हुए हैं और इसके साथ ही भारत को एक विकसित देश बनाने का दावा भी किया जा रहा है और इसे बनाने के लिए सभी कटिबद्व दिखाईं दे रहे हैं। इस दृष्टि से हमारे युवा वर्ग की भूमिका और दायित्व अधिक खास हो जाता है।
आज देश में सामाजिक और भौतिक विविधताएं तो हैं ही लेकिन आर्थिक विषमता भी बहुत अधिक दिखाईं दे रही है। ऐसे में हर युवा ऊंची से ऊंची उड़ान भरने के लिए स्वाभाविक रूप से आतुर दिखाई दे रहा है। अतः इस हलचल भरे माहौल में युवा वर्ग अपने भविष्य को सवांरने के लिए अपना घर बार छोड़कर, कोचिंग करने के लिए बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं और अभिभावकगण भी रुपया पैसा लगाकर अपने बच्चों को कोचिंग के साथ परीक्षा की तैयारी में आर्थिक मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
आशाओं और आकांक्षाओं की इस उठापटक के बीच यह युवाओं को कठिन परिस्थितियों में अधिक परिश्रम करने में लग जाते हैं। अपने सपनों को साकार करने के लिए धैपूर्वक और लगन के साथ कोशिश करते हैं। अब औपचारिक डिग्री की गुणवत्ता घटने के फलस्वरुप हर काम के लिए यहां तक की अगली कक्षा में प्रवेश या फेलोशिप के लिए भी कोई ना कोई परीक्षा अनिवार्यं हो गई है।
खस्ताहाल हो रही औपचारिक शिक्षा अपर्याप्त होती है। ऐसे में यदि कोचिंग केदो की झड़ी लग रही है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। मगर इसका लाभ वाले व्यापार में विस्तार के साथ ही इसके सुचारू संचालन के लिए जरूरी आधारभूत सुविधाओं का अभाव भी व्याप्त है। वस्तुतः व्यावसायिक कोचिंग का विशाल धंधा शिक्षा की घर दुरव्यवस्था को ही बयां करता है। विद्यालय की पढ़ाई से विद्यालय की परीक्षा की तैयारी और कोचिंग की पढ़ाई से व्यावसायिक परीक्षा की तैयारी।
यह आज हर अभिभावक और विद्यार्थियों की मानसिकता बनकर रह गई है। इस व्यवस्था के चलते आज मेधावी बच्चे भी विद्यालय की पढ़ाईं को छोड़ कोचिंग में एडमीशन ले रहे हैं। कोटा नगरी की व्यथा कथा विश्व प्रसिद्ध हो चली है। सरकारी शिक्षा के प्रति सरकार, समाज और विद्यार्थी सब का विश्वास बढ़ रहा है। इस टूटे भरोसे के बीच कोचिंग की वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था खूब फल फूल रही है।
ज्यादातर कोचिंग इंस्टिट्यूट में देखा गया है कि जो छात्र इंटर में पढ़ते हैं वह अपने कॉलेज में एडमिशन न लेकर कोचिंग में एडमिशन ले लेते हैं और उनका कॉलेज में नाम केवल लिखा होता है। वह परीक्षा देने के कॉलेज में आते हैं, केवल कोचिंग पर रहकर वह जो व्यावसायिक परीक्षा है उसकी तैयारी करते रहते हैं तथा बोर्ड के जब एग्जाम होने होते हैं तो वह कॉलेज में पहुंचकर अपनी परीक्षा दे देते हैं। इससे जाहिर होता है कि स्कूल और कॉलेज पर से छात्रों का विश्वास उठता जा रहा है।
आज कोचिंग की रोकथाम करने के बदले, प्रवेश परीक्षा पर जोर इसी विश्वास की पुष्टि करते हैं और घोषित करती है कि विद्यालय की पढ़ाई जैसे हो रही थी जारी रहेगी। यदि आगे पढ़ने पढ़ने की इच्छा है तो विद्यालय परीक्षा के अतिरिक्त इस नई परीक्षा को अनिवार्य रूप से पास करना ही होगा। विद्यालय की पढ़ाई प्रवेश परीक्षाओं के लिए सिर्फ प्रवेश मात्र रह गई है।
यह दुर्भाग्य है कि सरकार विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की बिगड़ती हालत को सुधारने के लिए तत्पर नहीं दिखाईं दे रही है वहाँ हर चीज को तब तक झूलती रहती है जब तक कि इसकी इंतिहा न हो जाए।
शिक्षा पर बाजार की भयंकर जकड़न दिन-रात बढ़ती जा रही है। सरकारी व्यवस्था अक्सर इस बात से बेखबर और उदासीन ही रहती है कि शिक्षा और कोचिंग संस्थानों में क्या और कैसे हो रहा है। शिक्षा के प्रति उदासीनता कारवाईंयाँ और युवा वर्ग की जिंदगी के साथ इस तरह का खिलवाड़ आत्मघाती और अक्षम अपराध है।
गैर कानूनी शिक्षा की दुकानों में और उनके आसपास विद्यार्थियों के रहने के लिए बने भी आए दिन हास्यपद होते रहते हैं और मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से निहित बुरे हालात में चलने वाले वे कोचिंग के व्यापार केंद्र देश में शिक्षा की दुर्गति की हकीकत बयां करते हैं। आज की जनसंख्या में युवा वर्ग के अनुपात में हो रही वृद्धि के साथ शिक्षा पर दबाव लगातार बढ़ रहा है।
ऐसे में शिक्षा नीति से क्रांति लाने के दावे के बावजूद दूर-दूर तक कोई राहत नजर नहीं आ रही है। यह जरूर है कि सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में निजी क्षेत्र का अभूतपूर्वं विस्तार हुआ है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि सरकारी पहल नदारद या ना काफी है ना तो सरकार की ओर से शिक्षा में पर्याप्त निवेश हो रहा है ना व्यवस्था ही ठीक हो पा रही है। क्योंकि शिक्षा देश के समाज के मानस निर्माण उत्पादकता तथा सृजनात्मकता के लिए महत्वपूर्ण है और देश के भविष्य को प्रभावित करती है।
लिहाजा इस दिशा में तत्काल ध्यान देना आवश्यक है दिल्ली में युवा जीवन की समय मौत की यह दास्तान शिक्षा के चरण का ही एक लक्षण है जो समूचे देश के लिए खेत का विषय है समाज और सरकार सबको इस पर सोचा होगा और आवश्यक कदम उठाने ही होंगे इस बात का भी हमें ध्यान रखना होगा कि जो हमारी शिक्षा व्यवस्था वर्तमान में है क्या उसमें कोई और अधिक सुधार किया जा सकता है जिससे भविष्य में होने वाली इस तरह की घटनाओं से हम युवा जीवन को बचा सके।
शिक्षा का उद्देश्य बच्चों का सर्वांगीण विकास करना है अर्थात इस प्रकार की शिक्षा दी जाए जिससे विद्यार्थियों का शारीरिक मानसिक, आर्थिक नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास हो सके। लेकिन क्या मौजूदा शिक्षा प्रणाली जो सिर्फ परीक्षा और अंकों पर केंद्रित है यह ऐसा संभव है। विद्यालय की औपचारिक शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं के बीच देश का युवा सिर्फ तैयारी करते रहने तक सीमित कर रह गया है।
प्रतियोगी परीक्षाओं में होने वाली धांधली और पेपर लिखा से मानसिक विकास तो नहीं, उल्टे उसे मानसिक तनाव जरूर हो रहा है स्वतंत्रता की इतने वर्षों बाद भी परीक्षाओं के खेल में व्यवहारिक ज्ञान और अजीव का के लिए आवश्यक कौशल कहीं दम तोड़ता जा रहा है। देश का एक बड़ा युवा वर्ग या तो इंटरनेट मीडिया में समय नष्ट कर रहा है या सरकार को पहुंचने में तमाम महान विद्वानों की धरती पर शिक्षा व्यवस्था की ऐसी दुर्गति अत्यंत चिंता का विषय है सरकार को समझना होगा कि बड़े-बड़े पुल सड़क और धार्मिक स्थलों के निर्माण करवाने से पर्यटन एवं आर्थिक गतिविधियां तो बढ़ेंगे लेकिन इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है शिक्षा व्यवस्था।
वैसे भारत सरकार की नरेंद्र सिंह मोदी सरकार ने तथा उत्तर प्रदेश में श्री आदित्यनाथ योगी की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था के सुधार के लिए कई कदम उठाई है। लेकिन इसके बावजूद भी अभी इसमें कई सुधार की आवश्यकता है। इसमें सुधार के लिए सरकार को जमीन हकीकत पर ध्यान देते हुए उचित कदम उठाने चाहिए तभी शिक्षा व्यवस्था के महत्व को और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।