विश्व में बढ़ती भुखमरी      Publish Date : 03/08/2024

                                     विश्व में बढ़ती भुखमरी

                                                                                                                                                                           प्रोफसर आर. एस. सेंगर

दुनिया का हर 11 व्यक्ति भुखमरी से जूझ रहा है बचने हेतु सतत कृषि प्रथाओं को बढ़ावा दें

                                                                              

दुनिया में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट ने हमारे सामने पुनः एक कठोर सच्चाई को उजागर किया है कि दुनिया का हर 11वां व्यक्ति भुखमरी से जूझ रहा है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास को यूनिसेफ विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा संयुक्त रूप से जारी रिपोर्ट द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2024 बताती है कि वर्ष 2023 में करीब 73.3 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर थे।

चिंता की बात है कि वर्ष 2019 की तुलना में इस संख्या में 15.2 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन बड़ी चिंता इस तत्व को लेकर होनी चाहिए कि पिछले तीन वर्षों से यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। रिपोर्ट की इस चेतावनी को भी गंभीरता से लिए जाने की आवश्यकता है कि दुनिया 2023 तक भूख को शून्य के स्तर पर ले जाने के लिए सतत विकास लक्ष्य से काफी पीछे रह रहे हैं। अफ्रीका या लैटिन अमेरिका के मुकाबले एशिया में भूख का सामना करने वाली आबादी का प्रतिशत बेशक इससे कम रहा है लेकिन यह दुनिया भर में भूख का सामना करने वाले आधे से ज्यादा लोगों का घर है।

                                                                              

इसलिए यह चिंताजनक है यह आंकड़े दर्शाते हैं कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा को लेकर हमारी नीतियों और योजनाएं अब तक पर्याप्त साबित तो नहीं हुई है। कोरोना महामारी, जलवायु परिवर्तन और क्षेत्रीय संघर्ष जैसे कर्म ने इस संकट को और भी गहरा कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार स्वस्थ आहार तक आर्थिक पहुंच की कमी भी एक गंभीर मुद्दा है, जिससे वैश्विक आबादी का करीब एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा प्रभावित हो रहा है।

जाहिर है कि भुखमरी केवल भोजन की कमी का ही नहीं बल्कि आसमानता से जुड़ा मुद्दा भी है जो काम आय वाले देशों में ज्यादा स्पष्ट दिखती है। इन देशों की 71.5 प्रतिशत आबादी स्वस्थ आहार के खर्च को वहन में सक्षम नहीं है जबकि उच्च आय वाले देशों में यह आंकड़ा मात्र 6.3 प्रतिशत है। इसके तहत बढ़ती खाद महंगाई, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक मंदी भी खाद्य सुरक्षा व कुपोषण के बढ़ाने की बड़ी वजह बनी हुई है।

चरम मौसमी घटनाएं जिस तरह उत्पादन पर असर डाल रही है, उसको देखते हुए पर्यावरण संरक्षण और सतत कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक समुदाय के मिलकर काम करने की जरूरत ज्यादा पड़ गई है। विश्व व्यापी समस्या बन चुकी भुखमरी से निपटने के लिए विकसित और विकासशील देशों के बीच सहयोग व संसाधनों का महत्वपूर्ण वितरण महत्वपूर्ण है। साथ ही खाद्य उत्पादन और वितरण की प्रणाली में सुधार की भी जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भोजन की पहुंच  हर जरूरतमंद तक आसानी से हो सके।

                                                                             

हमारे देश में 0 से 5 साल आयु वर्ग के 17 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले हैं तो वहीं 36 प्रतिशत बौने और 6 प्रतिशत कमजोर हैं। बच्चों में बौनापन, कमजोर और कम वजन कुपोषण के प्रमुख संकेत हैं। 26 जुलाई 2024 को लोकसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहां की जून 2024 के महीने में पोषण के आंकड़ों के अनुसार 6 वर्ष से कम उम्र के लगभग 8.57 करोड़ बच्चों की मैपिंग की गई, इनमें से 33 प्रतिशत आवेशित पाए गए और 17 प्रतिशत कम वजन वाले पाए गए तथा 5 वर्ष से कम उम्र के 6 प्रतिशत बच्चे कमजोर पाए गए।

महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अन्नपूर्णा देवी ने बताया कि सर्वाधिक बौनापन यूपी के बच्चों में है, यहां बौनेपन की दर 46.36 प्रतिशत है। लक्षद्वीप में यह दर 40.31 प्रतिशत है जबकि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बौनेपन की दर   44.59 और 41.61 प्रतिशत है।

 लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।