हाथ से लिखी जाने वाली चिट्ठियों का महत्व      Publish Date : 30/07/2024

                            हाथ से लिखी जाने वाली चिट्ठियों का महत्व

                                                                                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

खो गईं हैं वह चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे, “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श छोटों को प्यार” पर खत्म होते थे और बीच में लिखी होती थी “जिंदगी”

किसी नन्हें के आने की “खबर”, “माँ” की तबियत का दर्द और पैसे भेजने की “अनुनय” या “फसलों” के खराब होने की वजह।

                                                                              

कितना कुछ सिमट जाता था एक छोटे से “नीले से कागज में” जिसे कोईं नवयौवना भाग कर अपने “सीने” से लगाती और “अकेले” में अपनी आंखो से आंसू बहाती थी। “माँ” की आस थी तो “पिता” का संबल थी, बच्चों का भविष्य थी और गाँव का गौरव हुआ करती थी ये “चिठ्ठियां”।

“डाकिया चिठ्ठी” लायेगा और कोई बाँच कर इसे सुनायेगा, देख-देख चिठ्ठी को कई-कई बार छू कर चिठ्ठी को अनपढ भी उसमें लिखेे“एहसासों” को पढ़ लिया करते थे।

                                                               

अब तो “स्क्रीन” पर अंगूठा दौडता हैं और अक्सर ही दिल तोड़ता है। “मोबाइल” का स्पेस भर जाए तो यह सब कुछ दो मिनट में “डिलीट” कर दिया जाता है।

सब कुछ “सिमट” गया है केवल इस 6 इंच के यंत्र में, जैसे “मकान” सिमटकर रह गए फ्लैटों में, जज्बात सिमट गए “मैसेजों” में, “चूल्हे” सिमट गए गैसों में और इंसान सिमट गए पैसों में।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।