भारतीय कृषिः कल आज और कल से समृद्धि होता किसान Publish Date : 26/07/2024
भारतीय कृषिः कल आज और कल से समृद्धि होता किसान
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
भारत में कृषि का इतिहास बहुत पुराना है। यह लगभग 1100 वर्षों की अवधि में विकसित हुआ है। हमारे धर्म ग्रंथो में भी इसका उल्लेख है कि हम सदैव कृषि प्रधान या कृषि प्रधान देश रहे हैं, भारत वर्ष 1950 तक भुखमरी के दौर में था। 1950 से 70 तक हमारे पास खाद्यान्न की कमी थी। 1970 से 2000 के बीच खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हो गई यानी हमारे देश में आबादी की तुलना में पर्याप्त भोजन उपलब्ध था। वर्ष 2000 के बाद से हम खाद्य सुरक्षा की स्थिति में आ गए। आज भारत दूसरे देशों को अनाज निर्यात या वितरित करने की स्थिति में है। निर्भरता से आत्मनिर्भर होने के सफर को यदि देखा जाए तो हमारे देश ने काफी प्रगति की है।
एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2050 तक हमारी आबादी 160 करोड़ हो जाएगी और हमारा वर्तमान खाद्यान्न उत्पादन 314 मिलियन टन है। हमें खाद्यान्न उत्पादन में हर साल चार गुना वृद्धि करनी होगी, तभी वर्ष 2050 तक अपनी 400 मिलियन टन की आवश्यकता पूरी कर पाएंगे। यह बात मैं सिर्फ भारत के लिए ही कह रहा हूं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार हमें लगभग 26 प्रतिशत बागवानी उत्पादों की फसल उत्पादन के बाद नुकसान का सामना करना पड़ता है। यदि हम इस 26 प्रतिशत को बचाने में सफल हो जाएं तो हमारा उत्पादन प्रभावित रूप से 26 प्रतिशत तक और बढ़ सकता है।
इस समय हमारा देश वैश्विक स्तर पर कृषि के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनकर उभरा है। आजकल भारत का 7.5 पतिशत हिस्सा है वैश्विक कृषि उत्पादन में। इसी प्रकार भारत की जीडीपी में 18 प्रतिशत योगदान कृषि उत्पादों का है। यदि हम निर्यात की तरफ देखें तो भारत विभिन्न कृषि उत्पादों का एक महत्वपूर्ण निर्यातक बन चुका है। मध्य पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप प्रमुख देश हैं जहां हमारे उत्पाद निर्यात होते हैं। इसके अलावा भारत में 50 प्रतिशत रोजगार कृषि क्षेत्र से जुड़े कारोबा से ही मिलता है। भारत में वैश्विक स्तर पर चार प्रतिशत मीठे पानी की उपलब्धता है। हमारे देश में सरकार द्वारा 23.58 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को 19 दिसंबर 2023 तक वितरित किए जा चुके थे।
सरकार कहती है कि कृषि वास्तव में युवाओं के लिए लाभकारी हो सकती है और सरकार ने यह मानते हुए कई कदम भी उठाए हैं। भारत में कई कृषि आधारित स्टार्टअप लॉन्च किए गए हैं और यह काफी प्रगति कर रहे हैं। यह युवाओं के लिए कृषि में रोजगार खोजने और क्षेत्र में सुधार करने का एक बड़ा अवसर बनकर सामने आया है। सरकार का उददेश्य किसानो की आय को दुगना करने का है। वह उर्वरकों के उपयोग की 20 प्रतिशत तक काम करना चाहती हैं और इसके साथ ही हमें पानी के उपयोग में 25 प्रतिशत तक की कमी लाना होगा। इसके जरिए मीथेन उत्सर्जन में लगभग 45 प्रतिशत कमी का लक्ष्य भी रखा गया है।
आम बजट में भी हमारे अन्नदाता को ही सबसे ऊपर रखा गया है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की सभी पुरानी योजनाओं को बरकरार रखते हुए, खेती कारोबार में व्यापक परिवर्तन के साथ किसानों के लिए कुछ नई सौगातो की भी घोषणा की गई है। खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ किसान कल्याण को ध्यान में रखते हुए सर्वाधिक फोकस खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने और जलवायु के रूप खेती के विकास पर किया गया है। कृषि क्षेत्र में अनुसंधान व्यवस्था की वृहद समीक्षा के साथ नए निवेश की बात कही गई है। इसके लिए सरकारी क्षेत्र के साथ निजी निवेशकों को भी आमंत्रित किया जाएगा।
वर्ष 2024 के आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अन्नदाता को प्रधानमंत्री की चार प्रमुख इच्छाओ में से एक बताया है और कहां है कि देश के आर्थिक विकास के लिए इन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि सरकार ने लगभग सभी प्रमुख फसलों के लिए एक महीने पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य एसपी की घोषणा की है, जो खेती की लागत से 50 प्रतिशत अधिक है। बजट में कृषि पर आधारित सारांश किसानों को खेती के वर्तमान तरीके से निकालकर प्राकृतिक खेती की ओर ले जाने का एक सराहनीय प्रयास है। परंपरागत खाद्यान्न फसले धन और गेहूं की अतिरिक्त देश के सभी क्षेत्रों में देश को आत्मनिर्भर बनकर अर्थव्यवस्था को गति देना समय की मांग है। इसलिए नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले बजट में कृषि एवं समृद्ध के क्षेत्र के लिए 152000 करोड रुपए आवंटित किए गए हैं, जो फरवरी में अंतरिम बजट के आवंटन से लगभग 25000 करोड रुपए ज्यादा है।
किसानों की आय एवं फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास के तहत बागवानी सहित 32 फसलों की 109 सर्वाधिक पैदावार वाली किस्में में जारी की जाएंगी, जो नई होने के साथ-साथ जलवायु के अनुकूल भी होंगी। अगले 2 वर्षों के दौरान एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके लिए सहायता राशि एवं प्रमाण पत्र देने के साथ-साथ उनके उत्पादों की ब्रांडिंग भी की जाएगी। इसका प्रबंधन कृषि वैज्ञानिक संस्थानों एवं पंचायत की देखरेख में किया जाएगा। बजट में दलहन एवं तिलहन की पैदावार बढ़ाकर किसानों के लिए अतिरिक्त आय के प्रबंधन के प्रयास पर फोकस किया गया है।
एक दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में केंद्र सरकार ने ईमानदारी से स्वीकार किया था कि तमाम प्रयासों के बावजूद किसानों की आय अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ पाई है। इसलिए कृषि में व्यावसायिक फसलों के उत्पादन के लिए तकनीक एवं नवाचार को प्रोत्साहित करने के साथ भंडारण एवं विपणन व्यवस्था को भी मजबूत बनाया जाएगा। सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन एवं सूरजमुखी जैसी फसलों की उपज बढ़ाने के लिए भी एक कार्मिक योजना बनाई जा रही है। आंतरिक बजट में आत्मनिर्भर तिलहन अभियान शुरू करने की बात कही गई थी, जिसे आगे बढ़ाया जाएगा।
6 करोड़ किसानो और उनकी जमीन का विवरण किया जाएगा एकत्र
कृषि में सूचना विषमता को दूर करने एवं किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के विकास का वादा किया गया है। प्रौद्योगिकी के माध्यम से कृषि क्षेत्र से मजबूत करने के लिए, राज्यों के सहयोग से डिजिटल सार्वजनिक और संरचना डीपी को लागू किया जाएगा। इसके तहत 3 वर्षों में किसानों और उनकी जमीन का विवरण जुटाना है। डीपी के जरिए इस वर्ष खरीफ फसलों का 400 जिलों में डिजिटल सर्वेक्षण किया जाएगा। इसके तहत लगभग 6 करोड़ किसान और उनकी जमीन के विवरण को एकत्र किया जाएगा।
सरकार अब फसलों और किसानों से जुड़े ब्यूरो का डिस्टलीकरण करेगी, जिससे डाटा का बेहतर उपयोग कृषि के विकास और किसानों के हित में किया जा सके। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर डीपी योजना के तहत चालू खरीफ सीजन में 400 जिलों में खरीफ फसलों का जिला डिजिटल सर्वे किया जाएगा। मौजूदा वित्त वर्ष में केंद्र सरकार की 6 करोड़ किसानों और उनकी जमीन के विवरण को रजिस्ट्री में दर्ज करने की तैयारी है। डीपी योजना अगले 3 साल में देशभर में लागू होगी योजना का पायलट प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में सफल रहा है और अब इसे आगे बढ़ा जाएगा। डिजिटल डाटा से न सिर्फ किसानों के लिए फसलों की बेहतर योजनाएं बनाई जा सकेंगी बल्कि फसलों के बीमा उत्पाद के अच्छे दाम दिलाने स्टार्टअप को बढ़ावा देने में भी मदद मिल सकेगी।
सरकार द्वारा 1064 करोड रुपए राष्ट्रीय ग्राम स्वरोजगार अभियान पर खर्च किए जाएंगे। 895 करोड रुपए थी 2023-24 में इस मद में राशि जो कि अब बढ़ा दी गई है। भारत में 74 साल में 6 गुना तक गेहूं का उत्पादन बढ़ा है। आजादी के बाद 1950-51 की बात की जाए तो इस दौरान देश में गेहूं का उत्पादन 5.5 करोड़ टन था, जो कि वर्ष 1980 में बढ़ते हुए 125 करोड़ टन हो गया और वर्ष 2023-24 में उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई और मौजूदा आंकड़ों की बात करें तो 32.8 करोड़ टन तक गेहूं का उत्पादन पहुंच चका है।
डीपीआई से किसानो को हर सरकारी योजना का लाभ मिलेगा, जिसमें एमएसपी के तहत खरीद फसल बीमा और कृषि ऋण आदि भी शामिल है। इसके अलावा किसानों को फसल संबंधी बेहतर सलाह भी मुहि़या कराई जा सकेगी। डीपी में मोटे तौर पर तीन चीज शामिल हैं, एग्री स्टॉक, कृषि और मिट्टी का प्रोफाइल मैप। एग्री स्टॉक के तहत किसानों की दृष्टि की जाएगी, जिसमें उनके आधारकार्डं जैसी एक यूनिक आईडी होगी, जिसमें उनकी जमीन और फसलों का पूरा विवरण दिया जा सकेगा।
विकसित भारत का लक्ष्य पाने के लिए जिन नौ सीटों का संतुलन सरकार ने बनाया है, उनमें खेत खलिहान और किसान को प्राथमिकता पर रखा गया है। फसलों का उत्पादन बढ़ाकर जहां किसानों को मजबूत किया जाएगा, वहीं बेहतर बाजार देने की मनसा से भंडारण क्षमता में भी वृद्धि की जाएगी। खराब मौसम और जलवायु परिवर्तन से खेती और बागवानी की फसलों को बचाया जाएगा। इसके लिए 32 फसलों की 109 किस्में लाई जाएगी। यही नहीं 400 जिलों में किसानों का पूरा विवरण भी डिजिटल किया जाएगा। महंगाई के लिए जिम्मेदार बन रही तिलहन और दलहन की खेती को मिशन के तौर पर लिया जाएगा, ताकि आने वाले वक्त में देश इन फसलों के लिए आत्मनिर्भर बन सके। खेती को उन्नत बनाने के लिए सबसे ज्यादा जोर शोध पर दिया जाएगा। प्रयास है कि ऐसी प्रजातियों की खोज हो सके जो किसानों को कम लागत पर अधिक उपज दे और आने वाले समय में भूमि की उर्वरा शक्ति में भी कोई कमी ना आए। कृषि ढांचा मजबूत करने के लिए 151851 करोड रुपए का बजट रखा गया है जो वर्ष 2023 और 24 के बजट की तुलना में 7637 करोड़ ज्यादा है। एमएसपी को लेकर बजट में कोई घोषणा नहीं की गई है। किसान सम्मान निधि बढ़ाने की अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
सब्जियों के लिए बनेंगे Cluster
मुख्य उपभोक्ता केदो के नजदीक बड़े पैमाने पर सब्जी उत्पादन क्लस्टर विकसित किए जाएंगे। उपज के संग्रहण भंडारण केदो से सीधे बाजार में भेजा जाएगा। इससे महंगाई पर अंकुश लगाने में भी सहायता मिलेगी, किसान उत्पादक संगठनों और सरकारी समितियों को इस काम की जिम्मेदारी दी जाएगी। वहीं इस क्षेत्र में स्टार्टअप को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
जलवायु परिवर्तन और मौसम की दुश्वारियां के बीच सब्जियों की बढ़ती कीमतों से परेशान लोगों को राहत दिलाने की चिंता भी इस आम बजट में देखी गई है। सब्जी उत्पादन एवं आपूर्ति श्रृंखला के बीच संमजस्य के लिए बड़े पैमाने पर सब्जी उत्पादन क्लस्टर विकसित किए जाएंगे। यह क्लस्टर ऐसी जगह के नजदीक होंगे जहां बड़ी संख्या में उपभोक्ता रहते हैं। मतलब जहां अधिक खपत होगी उसी के आसपास सब्जियों की खेती का प्रबंध किया जाएगा। सरकार को यह निर्णय हाल के वर्षों में सब्जियों की कीमतों में भारी वृद्धि के चलते लेना पड़ा है।
देखा गया है कि मौसमी सब्जियों का उत्पादन कम नहीं होता, फिर भी आपूर्ति संख्याओं में व्यवधान के चलते देश के एक हिस्से में अचानक कुछ सब्जियों की कमी हो जाती है। इस संकट से निपटने के लिए सरकार ने टमाटर एवं प्याज जैसी जल्द खराब होने वाली सब्जियों के संरक्षण, भंडारण एवं विपणन की व्यवस्था करने के लिए कइ अहम कदम उठाए हैं। बजट में जल कृषि की क्षमता बढ़ाने पर भी जोड़ दिया गया है। इसके तहत झींगा पालन के लिए न्यूक्लियस ब्रीडिंग सेंटर का नेटवर्क भी बनाए जाने की बात कही गई है।
गांव के लिए बनेगी सहकारिता नीति
सहकार से समृद्धि की ओर बढ़ते हुए केंद्र सरकार, सरकारी क्षेत्र को व्यवस्थित करने और ग्रामीण क्षेत्र का चौथा विकास के लिए नए राष्ट्रीय सहकारिता नीति बनाने जा रही है। आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया है कि इसके सहारे ग्रामीण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन होगा और इसका मसौदा तैयार किया जा रहा है।
राज्यों, केंद्र, मंत्रालयों एवं विभिन्न सरकारी समितियों के साथ अन्य हित धारकों से विमर्श के बाद जल्द ही नई नीति की घोषणा होगी। सरकार की योजना सभी जिलों में सरकारी बैंक और जिला दुग्ध उत्पादन की स्थापना करने की है। अभी देश में दो लाख पंचायत में एक भी सहकारी संस्था नहीं है, 2 लाख नई प्राथमिक कृषि ऋण समितियां बनानी है। अभी इनकी संख्या लगभग 10,0000 है, अगले 5 वर्षों में 26 का और निर्माण करना है। केंद्र में सहकारिता के लिए अलग मंत्रालय के गठन के बाद नई नीति का मसौदा तैयार करने के लिए समिति का गठन 2 सितंबर 2022 को अमित शाह के नेतृत्व में किया गया था, अब इसको और आगे बढ़ाया जाएगा।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।