महुआ का वृक्ष लगाए और अपनी आय बढ़ाएं      Publish Date : 17/07/2024

                           महुआ का वृक्ष लगाए और अपनी आय बढ़ाएं

                                                                                                                   प्रोफेसर आर एस सेंगर

महुआ को गरीबों की किसमिस भी कहा जाता है-

महुआ के पेड़ का नाम सुनते ही लोगों के मस्तिष्क में केवल एक ही बात आती है कि इस वृक्ष की सहायता से केवल शराब ही बनाई जा सकती है। जबकि इसके अलावा दूसरा इसका उपयोग नहीं किया जाता, लेकिन यह सच नहीं है। वर्तमान समय में भले ही खेत खलिहानों से लेकर जंगलों तक से महुआ के पेड़ लगातार गायब होते जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण है लोगों में जागरूकता की कमी का होना।

                                                                      

एक समय ऐसा था जब महुआ को गरीबों का किशमिश कहा जाता था, क्योंकि इसमें आशा से अधिक गुण पाए जाते हैं। इस सब के उपरांत भी अब किसानों ने महुआ की खेती करना ही बंद कर दिया है। महुआ एक उष्ण कटिबंधीय पेड़ है जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों और जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। हिंदी में महुआ संस्कृत में मधूक अंग्रेजी में इलुपा ट्री के नाम से जाना जाता है

महुआ का वृक्ष तेजी से बढ़ता है जो लगभग 20 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ सकता है। इसके पत्ते आमतौर पर साल भर हर रहते हैं इस औषधि प्रयोग में लाया जाता है। पुराने समय में शल्य क्रिया के दौरान रोगी को महुआ के रस का पान कराया जाता था। हड्डियों को जोड़ने के दौरान भी यह दर्द कम करने के काम आता था। आज भी गांव के कुछ इलाकों में महुआ का जमकर इस्तेमाल होता है। महुआ का एक बार पौधा लगा देने से आपकी तीन से चार पीढी तक इसके फायदे ले सकते हैं।

महुआ बहु उपयोगी है

                                                                       

महुआ भारत के सभी भागों में होता है और पहाड़ों पर 3000 फुट की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसकी पत्तियां 5 से 7 अंगुल चौड़ी 10 से 15 अंगुल लंबी और दोनों और नुकीली होती हैं। पत्तियों का ऊपरी भाग हल्के रंग का और पीठ भूरे रंग की होती है। हिमालय के तराई और पंजाब के अलावा उत्तर भारत और दक्षिण भारत में किसके जंगल पाए जाते हैं। यह स्वच्छंद रूप से उगता है पर पंजाब में यह शिव बाबू के यहां लोग इसे लगते हैं और कहीं नहीं पाया जाता है। इसका पेड़ ऊंचा और छतनार होता है और डालियां चारों ओर फैलते हैं यह पेड़ 30 से 40 हाथ ऊंचा होता है और यह सभी तरह की जमीन पर होता है इसके फूल फल बी लकड़ी सभी चीजें काम में आती है।

कैसी हो जलवायु

महुआ की खेती के लिए 800 से 1800 मिमी बारिश अच्छी मानी जाती है। यह 1200 मीटर ऊंचाई पर भी आसानी से उग जाता है। इसके लिए गहरी चिकनी मिट्टी रेतीली 2 मिनट मिट्टी ज्यादा सही मानी जाती है। लेकिन इसके पौधे हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकते हैं। महुआ का पेड़ पथरीली मटियार चुनेदार आदि जमीन पर भी आसानी से हो सकता है।

कैसे करें जमीन की तैयारी

जिस खेत या मैदान में इसके पौधे लगाने हो वहां पर 9’9 या 10’10 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदने चाहिए। लेकिन हर जगह इतने बड़े गड्ढे बनाने की जरूरत नहीं होती क्योंकि यह क्षेत्र और प्रकृति पर निर्भर करता है, इसलिए क्षेत्र विशेष को ध्यान में रखते हुए गड्ढे बनने चाहिए। यदि इसको अपने खेत की मिनट पर लगाया जाए तो अच्छा रहता है क्योंकि इससे अतिरिक्त उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता है और आपकी जो खत में फसल लेनी है उसमें भी ज्यादा नुकसान नहीं होगा।

कैसे करें नर्सरी तैयार

महुआ की बुवाई बीजों को गमलों में डालकर पौधे उगाए जा सकते हैं। इसके अलावा नर्सरी में भी पौधे तैयार कर गढ़ों में लगाया जा सकते हैं नर्सरी में पौधे तैयार करने के लिए रेतीली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। क्यारी में 20 मिलीमीटर मोटी की मिट्टी से भरना चाहिए इसके बाद उसमें जरूर के हिसाब से पानी डाल दें। लगभग 10 दिनों के बाद बीजों में अंकुरण आ जाएगा। बड़े होने पर वहां से निकलकर संबंधित जगहों पर रोपाई कर देनी चाहिए जहां पर अपने गड्ढे तैयार किए थे।

ऐसे करें कीटों का प्रबंध

महुआ के पेड़ में ज्यादा कीटों का हमला नहीं होता, लेकिन फरवरी से मार्च में शब्द ईटिंग कैटरपिलर नामक कीट सबसे ज्यादा पेड़ को नुकसान पहुंचता है। यह कीट पेड़ कितने की छाल को ऊपर से खा जाता है। पेड़ कमजोर होने लगते हैं और उनके उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है इसलिए समय पर इसका नियंत्रण कर लेना चाहिए।

रोग पर कैसे करें नियंत्रण

इस रोग से निपटने के लिए किसानों को चाहिए की तने से जालौर को हटा दें। इसके बाद गढ़ों में कपास को 0.06 प्रतिशत के घोल के साथ मिलकर हमले वाली जगह पर छिड़काव करें। इसके अलावा मोनोक्रोटोफास के घोल में भी इन रोगो के हमले से पेड़ों को बचाया जा सकता है।

फल फूल भी होते हैं उपयोगी

महुआ के फल के साथ ही फूल भी काफी उपयोगी होते हैं। फरवरी के बाद से फूल आना शुरू होने लगते हैं। इसके फूल सफेद और हल्का पीलापन लिए भी होते हैं जो खुशबूदार होते हैं। इसकी यह भी खूबी है कि इसके फूलों को तोड़ना नहीं पड़ता बल्कि रात के समय खुद से गिरते हैं। इन्हें लोग सूरज निकलने से पहले ही बीनने के लिए पहुंच जाते हैं। फूलों को इकट्ठा कर के उन्हें धूप में अच्छी तरह से सुखाया जाता है इसके बाद इस कारोबारी को बेचा जाता है।

बात अगर फल की करें तो May के तीसरे हफ्ते से June के आखिरी हफ्ते तक इनके फलों की तुड़ाई की जाती है। इसे कुछ लोग वही तो कुछ लोग गुल्लू या मोरिया कहते हैं। क्षेत्र विशेष के लोग अलग-अलग नाम से पुकारते हैं। इसके फल ऊपर से खोल के अंदर होते हैं जो समय के साथ पकने पर पीले हो जाते हैं। महुआ के फलों को निकालने के लिए उसके ऊपर के भाग को हटा दिया जाता है। जिसे बहुत सारे लोग शौक से खाते हैं। इसके बाद इन फलों को किसी पत्थर या लोहे के छोटे बांट से दो भागों में अलग कर दिया जाता है।

                                                                   

जिसे धूप में सुखाकर बेचा जाता है। इसी से महुआ का तेल निकलता है जो कई जगह के समान में इस्तेमाल किया जाता है। इसे आप गरीबों का किशमिश भी कह सकते हैं। महुआ के ताजा फूलों का रस निकालकर उसे बढ़िया ठोका लस्सी जैसे अनेक चीज बनाई जाती हैं। इसके रस से पूरी भी तैयार होती है। गांव में महुआ जैसे बहु उपयोगी पेड़ों की तादाद घटती जा रही है। जहां इसकी लकड़ी को मजबूत और टिकाऊ मानकर दरवाजे खिड़की आदि में इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन आज अधिक फायदा कमाने की फेर में महुआ के बैग गिने-चुने ही बचे हैं। अब नए पौधे काम ही लोग लग रहे हैं।

अगर किसान महुआ के बाग लगाए तो उन्हें कई साल बाद काफी फायदा होगा। इसकी वजह यह है कि इसमें फल के साथ-साथ फूल भी अच्छी कीमत पर बिकते हैं। साथ ही महुआ एक मजबूत पौधा है इसकी लड़कियों से फर्नीचर के अनेक सामान बनाए जाते हैं। वहीं इसका तेल कॉस्मेटिक चीजों को बनाने में इस्तेमाल होता है। यही वजह है कि इसकी लकड़ियों से अच्छी खासी कीमत किसानों को मिलती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।