आखिर कैसे हो चरित्र निर्माण इन बातों पर रखे ध्यान Publish Date : 05/07/2024
आखिर कैसे हो चरित्र निर्माण इन बातों पर रखे ध्यान
प्रोफेसर आर एस सेंगर
वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं है। चारों ओर उलटफेर का बोलबाला है। चरित्र निर्माण की समस्या से हर कोई चिंतित दिखाई देता है। यह प्रक्रिया ऊपर से शुरू होकर नीचे तक पहुँचती है। लेकिन वास्तव में तस्वीर कुछ और ही है। शिक्षा से संपन्न वर्ग को अपने ऊपर डाली गई जिम्मेदारी की कोई परवाह नहीं है। उच्च पद के व्यक्ति चरित्र निर्माण के लिए अपना दिमाग नहीं लगाते हैं, ताकि बेदाग चरित्र का निर्माण हो सके।
अगर यही स्थिति रही तो समाज का उत्थान कैसे हो सकता है? राष्ट्र की प्रगति कैसे हो सकती है? राष्ट्र का कल्याण कैसे हो सकता है? सभी का कल्याण कैसे हो सकता है? शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन कैसे हो सकता है?
कामुकता और शारीरिक भावनाएँ बहुत तेज़ी से फैल रही हैं। ऐसे में छात्रों में चरित्र निर्माण की समस्या विशेष महत्व रखती है। लेकिन कोई भी इसकी परवाह नहीं करता। अगर हम ध्यान से देखें तो पाते हैं कि आजादी के 75 वर्षों बाद हमारी शिक्षा प्रणाली में उचित मूल्यों को शामिल करने के लिए कुछ विशेष प्रयास किए गए हैं। अन्यथा एजेंडे में कहीं भी राष्ट्रवाद की भावना नहीं दिखती, उन्हें राष्ट्र की स्थिति का कोई अनुभव नहीं है। वे राष्ट्रीय नेताओं की जीवनियाँ नहीं पढ़ते, वे महापुरुषों और उनके दर्शन के बारे में अनभिज्ञ हैं। यदि आप उनसे हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में पूछें तो उन्हें इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है, वे वहाँ से कोई रोमनचक घटना नहीं सुना सकते।
शिवाजी के इतिहास के वृत्तांत में पवनखिंड के युद्ध को ही लें। यह भक्ति और देशभक्ति से भरा एक मनमोहक प्रसंग है। जब मैं छात्रों के एक समूह को यह बता रहा था, तो मुझे कोई उत्साह, गर्व या रोमनच की अभिव्यक्ति नहीं दिखी। यह स्पष्ट था कि उन्हें इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था। उनमें से एक को इसके बारे में जानने की जिज्ञासा थी। जब मैंने पवनखिंड का एक प्रसंग सुनाया तो वह चकित होकर बोला कि हमारे इतिहास में भी ऐसे रोमनचक युद्ध हुए हैं! वह ग्रीस में थर्मोपाइल के युद्ध के बारे में जानता था, लेकिन पवनखिंड के बारे में कुछ नहीं जानता था।
यह जानकर दुख हुआ कि उन्हें हमारे अपने इतिहास की महान और गौरवपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी का घोर अभाव था। ये युवक राष्ट्रीय भवन की आधारशिला कैसे सिद्ध होंगे?
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।