बाढ़ की आपदा को अवसर में बदल दिया धीरेंद्र कुमार ने      Publish Date : 05/07/2024

               बाढ़ की आपदा को अवसर में बदल दिया धीरेंद्र कुमार ने

                                                                                                                                                                                     डॉ0 आर. एस. सेंगर

नदियों में प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ ने जब किसानों की कमर तोड़ दी तो बिहार के दरभंगा जिले के एक ही युवा किसान धीरेंद्र कुमार ने इस आपदा को नवाचार में अवसर में बदल दिया। जलीय कृषि की शुरुआत की और मखाना एवं कांटा रहित सिंघाड़े की खेती से बाढ़ का कलंक धो दिया।

अब तक 100 से अधिक किसान, इस मॉडल को अपना चुके हैं। बाढ़ और सूखे की मार से जो किसान खेती छोड़ मजदूरी के लिए दूसरे राज्य में चले गए थे लौटकर जल आधारित खेती कर रहे हैं। यह सब युवा हुआ नवोन्मेषी किसान धीरेंद्र कुमार की प्रेरणा से संभव हुआ है।

                                                             

प्रगतिशील नवाचारी तथा कृषि विज्ञान में पीएचडी कर चुके धीरेंद्र ने पिछले 6 वर्षों से कृषि में नए प्रयोग कर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। धीरेंद्र बताते हैं कि बाढ़ के दौरान खेतों में 10 से 12 फीट तक जल जमाव हो जाता था। लंबे समय तक पानी ठहरने से खरीफ में धान की फसल नष्ट हो जाती थी। ऐसे में खरीफ के विकल्प के लिए मखाना और सिंघाड़े की खेती उपयुक्त साबित हो रही है। किसान परिवार से होने के कारण खेती की चुनौतियों को समझा है।

वर्ष 2006 में 12वीं परीक्षा पास होने के बाद कृषि में ही कैरियर बनाने का लक्ष्य तय किया। खरीफ सीजन की फसलों को प्रति वर्ष बर्बाद होते देखा था। इससे दोहरी आर्थिक क्षति होती थी। एक पूरा सीजन खाली जाता और दूसरा धान की खेती से जो पैसा लगाते वह बाढ़ में डूब जाता था। वर्ष 2019 में मखाना अनुसंधान संस्थान, दरभंगा द्वारा विकसित मखाने के “स्वर्ण वैदेही” प्रभेद को आधा एकड़ खेत में प्रयोग के तौर पर खेती की। उसके बाद लगातार इसका क्षेत्रफल बढ़ता गया और आज मैं अच्छा खासा उत्पादन ले रहा हूं। उन्होंने बताया बिहार सरकार के उद्यान विभाग ने मखाना का बीज उनको उपलब्ध कराया था।

                                                                      

इस बीज का मखना विकास योजना अंतर्गत राजभर में वितरण किया जा रहा है। साथ ही देश के अन्य राज्यों में भेजा जाता है। धीरेंद्र अनाज के पुराने पर प्रभेद, जिनकी खेती काम हो रही या वे विलुप्त हो रहे हैं उनको भी संरक्षित कर रहे हैं। बेकार पड़ी बंजर जमीन पर बांस की खेती तथा श्रीअन्न की खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं तथा साथ ही जैविक तथा प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं।

किसानों से रासायनिक खाद और कीटनाशक का कम से कम प्रयोग करने की अपील भी करते हैं। स्वयं द्वारा बनाई जैविक खाद और कीटनाशक का फसलों में इस्तेमाल करते हैं। इसकी तकनीक भी किसानों को वह बता रहे हैं। इसका लाभ गांव के ही नहीं जिले के अन्य किसानों को भी मिल रहा है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।