सफलता का मंत्र Publish Date : 02/07/2024
सफलता का मंत्र
डॉ0 आर. एस. सेंगर
गुरूकुल में शिक्षा प्राप्त करने के बाद शिष्य का विदा लेने का समय आया और वह अपने गुरू से आज्ञा लेने के लिए आया। गुरू जी ने उससे कहा कि वत्स यहां रहकर तुमने शास्त्रों का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लिया है, परन्तु जीवन के कुछ उपयोगी पाठ अभी शेष हैं, अतः तुम मेरे साथ आओ।
शिष्य गुरू के साथ चल पड़ा और गुरू उस शिष्य को वनों से दूर एक बस्ती में लेकर गए। बस्ती के समीप स्थित एक खेत के पर दोनों खड़े हो गये। उस समय एक किसान उस खेत में क्यारियां बनाकर उसमें लगे हुए पौधों को पानी दे रहा था। ऐसे में गुरू और शिष्य दोनों ही किसान की प्रत्येक क्रिया को ध्यान से देखते रहे।
इन दोनों को ही आश्चर्य इस बात का था कि इस पूरे प्रकरण के दौरान किसान ने एक बार भी आँख उठाकर उनकी ओर नही देखा। गुरू और शिष्य ने अब बस्ती की ओर जाने वाले दरास्ते को पकड़ लिया। बस्ती में पहुँच कर उन्होंने देखा कि एक लौहार भट्टी में कोयला डालकर उसकी आग में लोहे के टुकड़े को लाल कर रहा था।इस दौरान धौंकनी चलाना, लोहे के टुकड़े को उलटना एवं पलटना आदि समस्त कार्य यंत्रवत जारी रहे।
वह लौहार अपने कार्य में इतना अधिक दत्तचित्त था कि उसने गुरू और उनके शिष्य की ओर आँख उठाकर भी नही देखा। वह लोहे के उस पीस पर अपने हथौड़े से लगातार चोट करता रहा और उस टुकड़े को एक निश्चित आकार प्रदान करने में संलग्न रहा। अपने कार्य के अलावा उसे दुनिया की कोई परवाह नही थी।
इसके बाद गुरू अपने शिष्य को लेकर वापस आश्रम में आ गए। गुरू ने शिष्य की ओर आकृष्ट होते हुए कहा कि वत्स मेरे पास रहकर तुमने जो शास्त्रों का अध्ययन किया है, वह जीवन में तुम्हारे काम आएगा, परन्तु उससे भी अधिक काम आने वाली है तुम्हारा मनोयोग एवं तुम्हारी एकाग्रता। सत्य भी यही होता है कि ज्ञान का होना एक अलग बात है, जबकि एकाग्र होकर हुनर से कार्य को निरंतर करते रहना ही सफलता का मूल मंत्र होता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।