अफगानिस्तान में बंजर खेत और खाली पेट की स्थिति कैसे हो प्रबंधन

         अफगानिस्तान में बंजर खेत और खाली पेट की स्थिति कैसे हो प्रबंधन

                                                                                                                                                         डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील देशों में से एक अफगानिस्तान वर्षों से सुखे से जूझ रहा है, जिसके कारण कई गांव विस्थापित हो गए, तो कई बच्चे कुपोषण की समस्या से ग्रस्त हैं। देश के 34 प्रांतों में से तीन चौथाई हिस्से के निवासी लोग भयंकर सूखे का सामना कर रहे हैं, जबकि देश के कुछ हिस्से अभी भी इस समस्या से अछूते हैं।

                                                                         

  तालिबान से बहुत कम सहायता मिलने और अंतरराष्ट्रीय सहायता के लगातार कम होने के बावजूद भी इन लोगों को भरोसा है कि एक दिन पानी जरूर आएगा। कई लोगों को यह विश्वास है कि उनकी भूमि पहले की तरह हरी भरी हो जाएगी, लेकिन जहां तक नजर जा सकती है अभी रेत का एक मंजर ही दिखाई देता है। सुखे तटों पर मायूस नावें ठिटकी हुई है। शुष्क धरती के नीचे से यदि कभी कभार जो पानी निकलता भी है वह पानी खारा होने के कारण पीने लायक तो होता ही नही, इससे लोगों के हाथ भी फट जाते हैं। सुबह जब लोग सो कर उठते हैं तो देखते हैं कि उनके साथ का एक और परिवार गांव छोड़कर जा चुका है।

अगले गांव के सभी लोग नौकरी, भोजन एवं अन्य संसाधनों की तलाश में गांव छोड़कर चले गए। चखांसुर जिले के 40 परिवारों में से अब केवल चार परिवार ही बचे हैं, जिसमें 8 बच्चों के पिता अली इतने गरीब हैं कि कर्ज से खरीदे गए आटे से उनका परिवार अपना गुजारा कर रहा है। अली कहते हैं कि मेरे पास कोई ओर चारा नहीं है, मैं खुदा की रहमत की प्रतीक्षा कर रहा हूं, क्योंकि मुझे अपनी आने की उम्मीद है। 30 वर्षीय खंजर कुंचाई कुछ वर्षों पहले वापस स्कूल जाने की सोच रहा था, लेकिन अब हालात इतने खराब हो चुके हैं कि वह एक-एक दिन जीवित रहने के लिए भारी मशक्कत कर रहा है।

                                                                 

इस सम्बन्ध में मोंडो कहती है कि मैंने सुखे के दिनों में अपने दोनों बच्चे खो दिए जिनमें से एक बच्चे का गर्भपात करा दिया और दूसरा भूख से मर गया। मेरा 9 महीने का बच्चा हमेशा भूखा ही रहता है क्योंकि हम उसे दूध नहीं दे सकते। अस्पताल के पास मोंड़ो समेत अन्य कमजोर माताएं भूखे बच्चों को गोद में लिए खाना मिलने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। अफगानिस्तान में गर्म, शुष्क सर्दी के कारण जो बदलाव हुए हैं उनसे वहां रह रहे लोग पानी की एक-एक बूंद और खाने के दाने दाने के लिए तरस रहे हैं। 29 वर्षीय सुहराब काशानी कहते हैं कि हमारी इस जगह के साथ कई यादें जुड़ी है, क्योंकि यह जगह कभी हरी भरी भी रही थी। यहां हम बस पानी के इंतजार में अपने दिन-रात जैसे-तैसे कट रहे हैं।

                                                                  

इस शुष्क धरती के नीचे कभी कबार जो पानी निकलता भी है वह ख़ारा होने के कारण पीने लायक तो है ही नही और इससे लोगों के हाथ तक भी फट जाते हैं। देश के 34 प्रांतों में से तीन चौथाई हिस्से में लोग भयंकर सूर्य का सामना कर रहे हैं, जबकि प्रांतों के कुछ हिस्से इससे अब भी अछूते ही हैं। अब लोगों का मानना है कि हो सकता है इस जल संकट से वह उबर सकें, लेकिन जब तक वहां पर जल संरक्षण को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा तब तक शायद वह इस गंभीर समस्या से निजात नहीं पा सकेंगे।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।