शिक्षा का व्यवसायीकरण को रोकने की दरकार

                 शिक्षा का व्यवसायीकरण को रोकने की दरकार

                                                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

शिक्षा का व्यवसायीकरण तथा शिक्षा के क्षेत्र में प्रबद्ध व्यक्तियों का व्यावसायिक आचरण चिंतनीय है क्योंकि जिस व्यक्ति पर विशिष्ट क्षेत्र में शिक्षा को संभालने तथा व्यवस्थित करने का दायित्व है वही अपने दायित्व से विमुख दिखाई दे रहा है। जिसका खामयाजा प्रतिभाशाली छात्र-छात्राओं और उनके विभागों को भुगतना पड़ रहा है। उत्तरोत्तर महंगी होती जा रही शिक्षा से शिक्षा रूपी मंदिरों में जाने से पहले छात्र-छात्राओं को चिंतन करने हेतु विवस होना पड़ रहा है कि महंगी शिक्षा लेने के उपरांत भी क्या उनके द्वारा प्राप्त की हुई शिक्षा सार्थक होगी और यदि नहीं तो इतनी महंगी शिक्षा का औचित्य क्या है तथा शिक्षा भी क्या अमीरों की ही बपौति बनकर ही रह गई है।

                                                                     

निर्धन वर्ग के लिए शिक्षा का स्वप्न देखना भी बेमानी है, क्योंकि शिक्षा के व्यवस्थापक व्यापारियों से हाथ मिला चुके हैं जिनका कार्य अपना स्वार्थ सिद्ध करना भर ही रह गया है। छात्र चिल्लाए तो चिल्लाते रहे उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं है। भयावह स्थिति तो यह है कि सरकारी अनुदान से चल रही शिक्षण संस्थाओं में परंपरागत पाठ्यक्रमों में भी प्रवेश सरलता से सुलभ नहीं है, जिस पर शिक्षा का स्तर इतना उच्च नहीं है जितना होना चाहिए। शिक्षक एवं संबंधित कर्मचारियों की लड़ाई मात्रा सुविधाओं के लिए हैं।

शिक्षा का स्तर उठाने के लिए नहीं उच्च स्तरीय राजनीति तथा सुविधाएं जुटाना की नई से नई तकनीक के साथ तथा निजी संस्थाओं द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उच्च अधिकारियों से मिली भगत करके नए से नए रोजगार पर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए जी तोड़ मेहनत तथा उसे मेहनत के बदले छात्राओं की जमकर लुटंे किसी से छुपी नहीं है। बात-बात पर अर्थ दंड, अनुशासन के नाम पर अत्यधिक धन वसूली, छात्रों और अफवाहों का शोषण आदि इन संस्थानों में आम बात हो गई है, जिस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

                                                             

एक और तो जनता मंत्रियों के अनाप-शनाप खर्चों को देख रही है लेकिन वर्तमान सरकार मोदी सरकार में इस पर काफी अंकुश लगाया गया है और अधिक इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। सादगी से ही शिक्षा अच्छी हो सकेगी इस पर भी ध्यान देना होगा और दूसरी ओर शिक्षा के क्षेत्र में जितना अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया है, संभवत उतना अन्य किसी क्षेत्र में नहीं रह गया है। यदि गुरु सरीखे अधिकारियों का आचरण भी मुनाफाखोरी से ग्रस्त हो जाएगा तो देश की शिक्षा व्यवस्था का क्या हाल होगा? यह एक ऐसा प्रश्न है जो हर शिक्षाविद के सम्मुख मुंह बाय खड़ा हुआ है कि आखिर शिक्षा और गुरु की महत्ता भविष्य में कितनी रह जाएगी। इस पर शिक्षाविदों को भी सोचना होगा और शिक्षा का जो व्यवसायीकरण हो रहा है उस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है।

व्यवसायीकरण पर ध्यान देते हुए गुणवत्ता को बनाए रखना भी बहुत जरूरी है गुणवत्ता के लिए हमारे शिक्षाविदों तथा सरकार को आगे आना होगा, तभी हम देश को एक अच्छे छात्र दे सकेंगे।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।