सूक्ष्मजीवों का विचित्र संसार

                              सूक्ष्मजीवों का विचित्र संसार

                                                                                                                                                                                         डॉ0 आर. एस. सेंगर  

                                                                        

आमतौर पर हम सभी इस तथ्य को अच्छी तरह से जानते हैं कि सूक्ष्मजीवों के अभाव में पर्यावरण की कल्पना भी नही की जा सकती। सूक्ष्मजीव जहां एक ओर मानव के सच्चे मित्र हैं तो दूसरी ओर यह मानव के दुश्मन भी सिद्व होते हैं, अर्थात कहने का तात्पर्य है कि सिक्के के दो पहलू हैं। वैसे तो सूक्ष्मजीवों की महत्वता कृषि, डेयरी, चमड़ा, खाद्य एवं कॉस्मेटिक आदि उद्योगों में है ही परन्तु पैट्रोलियम एवं धातु प्राप्ति तथा कीट और रोग नियंत्रण के दौरान भी सूक्ष्मजीवों का महत्वपूर्ण योगदान है।

    सूक्ष्मजीव इस सम्पूर्ण प्रकृति में सर्वव्यापी हैं और प्रत्येक जलवायु इनकी वृद्वि को प्रोत्साहित करती है। इन्हें भूमि, जल तथा वायु आदि किसी भी पर्यावरण से प्राप्त किया जा सकता है। ये छोट से छोटी दरार से लेकर प्राणियों के उदर (पेट) में बहुतायत में पाये जाते हैं। एक ग्राम मिट्टी में 50 लाख से अधिक सूक्ष्मजीवी हो सकते हैं। प्राणियों के शरीर एवं पेड़-पौधों में स्वयं को सुरक्षित पाकर सरलता से पनपते हैं, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि सम्पूर्ण जीव-जगत सजीव अथवा निर्जीव सूक्ष्मजीवों से पूर्णतया आक्ष्छादित हैं। हमें यह भी जान लेना अति आवश्यक है कि सूक्ष्मजीव एक अथवा बहुकोशीय और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखे जाने वाले जीव होते हैं, इन्हें अल्पविकसित पादप समुदाय में शामिल किया जाता है। सूक्ष्मजीवों को वैज्ञानिकों ने वायरस, रिकेट्रसिया, जीवाणु, यीस्ट, मोल्ड, शैवाल एवं प्रोटोजोआ आदि के समूह में वर्गीकृत किया है।

                                                                    

    सूक्ष्मजीवों के अनदेखें संसार की खोज का श्रेय हालैण्ड देश के निवासी वैज्ञानिक एन्टोनी ल्यूवेनहॉक को जाता है जिन्होने स्वनिर्मित सूक्ष्मदर्शी की सहायता से सूक्ष्मजीवों को देखा और उनका सचित्र विवरण प्रस्तुत किया। सूक्ष्मजैविकी के विस्तार में वैज्ञानिक राबर्ट कोच (रोग का रोगाणु सिद्वाँत) तथा लुई पाईश्चर (संस्थापक जीवाणु विज्ञान) जैसे महान सूक्ष्मजीव वैज्ञानिकों का योगदान अति महत्वपूर्ण है जिनके विद्यिार्थियों के द्वारा ही टायफाफईड की जाँच के लिए विडाल परीक्षण तथा सिफलिस की जाँच के लिए वाशरमेन परीक्षण की खोज की। सर एलेक्जेन्डर फ्लेमिंग के द्वारा आश्चर्यजनक दवाई पैनिसिलिन तथा अब्राहम वॉक्समैन के द्वारा स्ट्रेप्टोमाईसिन का आविष्कार कर इस दिशा में एक नई क्राँति का प्रादुर्भाव किया।

    उपरोक्त समस्त जानकारियों को ग्रहण कर हमारी उत्सुकता सूक्ष्मजीवों के प्रति बढ़ जाती है। अतः इनके बारे में आम-जीवन को प्रभावित करने वाले कुछ महत्वपूर्ण स्रोतों के माध्यम से संग्रहीत की गई जानकारियों का विवरण इस प्रकार हैं- मुख्यतया सूक्ष्मजीवों को प्रकृति में मृदा, वायु, जल तथा भोजन अधिक प्रभावित करते हैं।

मृदा सूक्ष्मजैविकीः- मृदा, पृथ्वी पर पाए जाने वाले खनिज लवणों एवं कार्बनिक पदार्थों की वह अबद्व अथवा अदृढ़ समह होती है जो कि पादप वृद्वि के लिए उपयुक्त माध्यम का कार्य करती है। मृदा यानी मिट्टी में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव बाह्य रसायनों का निर्माण करते हैं। उक्त रसायन ही मृदा कणों को आपस में बाँधें रखते हैं। सूक्ष्मजीव मृदा कणों की सतर या अन्तर कणों के रिक्त स्थान में निवास करते हैं। मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीव बैक्टीरिया नाइªोजन स्थिरीकरण जैसा महत्वपूर्ण काय करता है तथा कुछ बैक्टीरिया सल्फयुरिक अम्ल का निमार्ण कर अघुलनशील मृदा तत्वों जैसे- कैल्शियम फॉस्फेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट आदि को घुलनशीन अवस्था में परिवर्तित कर देते हैं। जिन्हें पौधें आसानी से उपयोग कर लेते हैं। एक   कृषि मित्र सूक्ष्मजीव शैवाल जो कि मृदा की ऊपरी सतह अथवा इस सतह के कुछ सेमी0 नीचे उपस्थित रहता है और कृषकों को अच्छी फसल की उत्पादकता सुनिश्चित् करता है। कवक-वर्गीय सूक्ष्मजीव मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्वि करते हैं।

                                                                               

वायु सूक्ष्मजैविकीः- वायु के माध्यम से ही हमारी पृथ्वी पर सजीवों का जीवन सम्भव है वास्तव में वायु सूक्ष्मजीवियों के लिए एक वाहक का कार्य करती है। वायु में सामान्यतः बैक्टीरिया, कवक आदि के बीजाणु, यीस्ट और अनेक रोगोत्पादक सूक्ष्मजीव उपलब्ध होते हैं। वायु में तैरती अवस्था में उपस्थित सूक्ष्मजीव मानव को कभी भी प्रभावित कर सकते हैं। रसोई में रखे भोजन में बदबू,  नालियों में बदबू, खमीरीकरण आदि जिन क्रियाओं का आभास हमें होता है, इन क्रियाओं को ऐसे अदृश्य जीव ही सम्पन्न करते हैं जिन्हें केवल सूक्ष्मदर्शी की सहायता से ही देखा जा सकता है। इसी प्रकार क्षय रोग, सेप्टिक शोथ रोट, एन्थ्रेक्स, निमोनिया, इन्फ्ुएंजा और खुले घावों में फैलने वाले रोग आदि वायु संचरण तथा वायु में उपस्थित सूक्ष्म जीवों के माध्यम से ही उत्पन्न होते हैं।

जल सूक्ष्मजैविकीः- आर्थिक, सांस्कृतिक और जैविक आधार पर जल प्रकृति का महत्वपूर्ण संसाधन है। जल की सतह पर तैरने वाले स्वपोषी, एक-कोशिका अथवा तन्तुमय सूक्ष्मजीव होते हैं। इनकी अधिकाँश जातियां रंग में हरी अथवा नीले रंग की होती है, जिससे पानी का रंग हरा दिखाई देता है ये जीव स्वपोषी होने के कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा जल में ऑक्सीजन का स्तर निरन्तर बढ़ाते रहते हैं। जल में मृदोपजीवी भी काफी अधिक मात्रा में उपलब्ध होते हैं जिनमें बैक्टीरिया एवं कवक समुदाय के सदस्य प्रमुख हैं। अशुद्व जल में कई प्रकार के वायरस भी पउये जाते हैं। घरों एवं कारखानों से निलने वाले जल में अर्काबनिक एवं कार्बनिक रसयान उपलब्ध होते हैं, जो सूक्ष्मजीवों की वृद्वि एवं जनन आदि को प्रोत्साहन करने में सहयोग प्रदान करते हैं। यह प्रदूषित जल मानव तथा अन्य जानवरों में अनेक प्रकार की बीमारियो जैसे- पेचिस, टायफायड तथा कॉलरा आदि को प्रसारित करते हैं।

                                                                

भोजन सूक्ष्मजीवीः- सूक्ष्मजीवों के लिए विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ एक उपयुक्त माध्यम सिद्व होते हैं। भोजन में कार्बनिक तथा अकार्बनिक तत्वों की प्रचुरता होती है, जिससे सूक्ष्मजीव सुचारू रूप से अपनी उपापचयी क्रियाओं को सम्पन्न करने में सक्षम होते हैं। इसके अतिरिक्त भोजन में उपस्थित नमी तथा खनिज आदि सूक्ष्मजीवियों की वृद्वि एवं विकास के लिए उपयुक्त साबित होते हैं। सूक्ष्मजीव भूमि, जल, वायु एवं मानव के द्वारा खाद्य सामग्री में प्रसारित होते हैं जो पादपों में विभिन्न प्रकार के रोगों के वाहक होते हैं तथा इनके बीजाणु फसल के पकने के बाद खाद्य सामग्रियों के साथ चिपक जाते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं। मांस, अण्ड़े, मछली, शक्कर तथा दूध आदि विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवों से संदूषित रहते हैं। विभिन्न खाद्य पदार्थों को नमक मिलाकर, छानकर, धोकर तथा उन्हें उच्च तापक्रम तथा अन्य प्रकार के इनके जैसे ही माध्यमों के द्वारा उपचारित कर परिरक्षित किया जाता है।

यह एक वास्तविकता है कि सूक्ष्मजीवियों का संसार बहुत ही विस्तृत है परन्तु ये मानव के साथ-साथ प्रकृति का भी एक अभिन्न अंग होते हैं और सदैव उनसे जुड़े रहते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।