जिमिकन्द अर्थात ‘गरीबों का मटन’की खेती की वैज्ञानिक विधि

        जिमिकन्द अर्थात ‘गरीबों का मटन’की खेती की वैज्ञानिक विधि

                                                                                                                                                 डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

                                                                               

परंपरागत खेती में जैसे- जैसे लागत बढ़ती और आमदन कम होती जा रही है वैसे- वैसे किसानों का गेंहू, धान और अन्य परंपरागत फसलों से मोहभंग होता जा रहा है।. अब किसान वैज्ञानिक विधि से सब्जियों की खेती कर रहे हैं और इससे किसानों की कमाई बढ़ रही है। खास बात यह है कि सब्जियों की खेती में किसानों को ज्यादा मुनाफा प्राप्त हो रहा है, क्योंकि सब्जी कम समय में ही तैयार हो जाने वाली फसल है। अगर किसान मौसम के अनुसार सब्जी की खेती करें, तो उन्हें बंपर पैदावार मिलती है और उनकी कमाई भी अच्छी होती है।

किसान जिमीकंद की खेती की शुरुआत अप्रैल के महीने से कर सकते हैं। जिमीकंद को यूपी-बिहार सहित कई राज्यों में ओल या सूरन के नाम से भी जाना जाता है। पहले जिमीकंद को जंगली पौधा माना जाता था। लोग घर के पीछे या बेकार पड़ी जमीन पर जिमीकंद रोपते देते थे, जिसे पर्व- त्योहारों पर जमीन से निकाल कर खाया जाता था। लेकिन अब, किसान व्यवसायिक स्तर पर जिमीकंद की खेती कर रहे हैं।

सिंचाई का देना होगा विशेष ध्यान

                                                              

कृषि के क्षेत्र में लम्बा का अनुभव रखने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय मेरठ के प्रोफेसर आर. एस. सेंगर बताते हैं कि अप्रैल माह के प्रथम और द्वितीय सप्ताह में ओल यानी कि जिमीकंद की खेती की शुरुआत की जा सकती है। विधान और कुसुम के साथ ही गजेंद्र प्रजाति ज़िमीकंद की सबसे अधिक मुनाफे वाली प्रजातियां मानी हैं। जिमीकंद की खेती के लिए किसानों को ऑर्गेनिक खाद और सिंचाई की उचित सुविधा करनी होगी। हालांकि जुलाई महीने से बारिश की शुरुआत हो जाती है, लेकिन इससे पहले किसानों को सिंचाई के लिए अन्य साधनों पर निर्भर रहना होता है।

बलुई दोमट मिट्टी है सूरन के लिए होती है बेस्ट

डॉ0 सेगर बताते हैं कि अप्रैल माह में बुवाई के बाद नवंबर के महीने में यह फसल तैयार हो जाती यानी कि आठ माह में यह फसल तैयार हो जाती है। सूरन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी रोपाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करनी होती है। जब खेत की मिट्टी से नमी हट जाए तो एक बार फिर रोटावेटर से खेत की जुताई कर देनी चाहिए। इसकी बुवाई के समय किसान जिमीकंद के टुकड़ों को दो-दो फीट की दूरी पर खेत रोपित कर सकते हैं। साथ ही 2 किलो के जिमीकंद को चार भागों में काटकर एक गड्ढे में मिट्टी से 1 इंच नीचे रोपित किया जाता है। इसका रोपण करने के बाद 20 से 23 दिन में पौधे का अंकुरण होने लगता हैं।

बुआई करने से पहले करें बीज का शोधन

                                                                         

डॉ0 आर. एस. सेंगर बताते हैं, कि जिमीकंद की खेती करने से पहले इसके बीज का शोधन करना चाहिए। बीज के शोधन के लिए एक ड्रम में 15 लीटर पानी में 30 ग्राम कार्बेंडाजिम को मिलाकर जिमीकंद के बीज को डाल दें। 10 मिनट के बाद बीज को निकाल लें। यह प्रक्रिया तीन बार करने से बीज का शोधन हो जाता है, जिससे उसमें रोग लगने का खतरा भी कम हो जाता है।

एक हेक्टेयर में 500 क्विंटल तक की पैदावार

डॉ0 सेंगर बताते हैं कि अप्रैल माह में इसकी बुवाई करने के बाद नवंबर में यह फसल तैयार हो जाती है। एक हेक्टेयर में लगभग 140 क्विंटल बीज का रोपण किया जाता है। जिससे 500 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त हो जाती है। नवंबर के महीने में लोग इसे खाना ज्यादा पसंद करते हैं। इसीलिए बाजारों में 40 रुपए प्रति किलो कि दर से यह आसानी से बिक जाता है क्योंकि इसे गरीबों का मटन भी कहा जाता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।