सफलता का मंत्र

                                        सफलता का मंत्र

                                                                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर

वर्तमान में गुरूकुल में शिक्षा ग्रहण करने के बाद शिष्य की विदायी का समय आया जो वह अपने गुरू से आज्ञा लेने पहुंचा। गुरू ने कहा ़‘‘वत्स यहां रहकर तुमने शास्त्रों का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लिय, किंतु जीवन के कुछ उपयोगी पाठ शेष हैं। अतः तुम मेरे साथ आओ’’। शिष्य भी गुरू के साथ चल दिया तो गुरूजी उसे जंगल से दूर एक बस्ती में लेकर पहुंचे और बस्ती के समीप एक खेत के पास दोनो खड़े हो गए।

खेत में किसान क्यारियां बनाकर पौधों को पानी दे रहा था। गुरू तथा शिष्य दोनों ही किसान के इस कार्य को बड़े ध्यान से देखेते रहे और आश्चर्य की बात तो यह रही कि किसान ने एक बार भी आंख उठाकर उनकी ओर नही देखा।

                                                                          

इसके बाद गुरू एवं शिष्य ने बस्ती की ओर जाने वाला रास्ता पकड़ा। बस्ती पहुंचकर उन्होने देखा कि कि एक लुहार भट्टी में कोयला डालकर लोहे को लाल होने तक तपा रहा था। भट्टी की धौंकनी को चलाना, लोहे को उलटन पलटना, उसके सारे कार्य यंत्रवत चालित थे और इस कार्य में लुहार इतना व्यस्त था कि उसने गुरू और शिष्य की ओर देखा तक नही और वह तप्त लोहे के खंड़ पर हथौड़े से बार करता रहा, उसे एक निश्चित् आकार प्रदान करता रहा। अपने काम के अतिरिक्त मानों उसे दुनिया की कोई परवाह ही नही थी। इसके बाद गुरू तथा शिष्य दोनों ही वापस अपने आश्रम में आ गए।

अब गुरू ने अपने शिष्य को ज्ञान देते हुए कहा कि वत्स मेरे सानिध्य में तुमने जो शास्त्रों का अध्ययन किया है वह अब जीवन के क्षेत्रों में तुम्हारे काम आएगा, परन्तु उससे भी कहीं अधिक काम आएगी तुम्हारी एकाग्रता और तुम्हारा मनोयोग। यह अपने आप में सत्य भी है कि ज्ञान का होना एक आश्चर्य की बात है, परन्तु एकाग्रता के साथ अपने हुनर से कार्य करते रहना ही सफलता का मूल मंत्र होता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लां0ट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्व0विद्यालय मेरठ।