केला प्रदूषण से लड़ने में होता है सहायक

                   केला प्रदूषण से लड़ने में होता है सहायक

                                                                                                                                                                    प्रोफेसर आर एस सेंगर

भारत विश्व का नंबर वन एक केला उत्पादक देश है। वैज्ञानिकों का दावा है केले के छिलके का उपयोग बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए किया जा सकता है। हमारे देश के बहुत से लोग रोजाना केले का सेवन करते हैं, लेकिन इस स्वादिष्ट फल को खाने के बाद इसका छिलका कचरे में फेंक दिया जाता है। ऐेस में कितना अच्छा हो कि अगर हमें केले के इस छिलके का कोई ऐसा उपयोग मिल जाए, जो इस कचरे को कम करने के साथ-साथ बढ़ती प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से निपटने में भी मदद कर सके। यदि हम केले के उत्पादन की बात करें तो धान गेहूं और मक्का के बाद दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली खाद्य वस्तु है। विश्व में केले का सबसे ज्यादा उत्पादन लगभग वार्षिक तीन करोड़ टन से अधिक भारत में ही होता है।

                                                                             

वैज्ञानिक केले के छिलकों पर कार्य कर रहे हैं, क्योंकि केले के छिलकों की मदद से पैकेजिंग के लिए उपयोग होने वाली बायोडिग्रेडेबल फिल्में बनाई जा सकती हैं, जो जीवाश्म ईंधन से बने प्लास्टिक की पैकेजिंग मैटेरियल का स्थान ले सकती हैं। इस बारे में अमेरिका की साउथ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा एक अध्ययन किया गया है, जिसके नतीजे सस्टेनेबल केमिस्ट्री एंड फार्मेसी जनरल में प्रकाशित किए गए हैं। कई वर्षों से इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता श्रीनिवास जाना स्वामी और उनके सहयोगी इस बात पर शोध कर रहे हैं कि कैसे केले और कैंडी के छिलके जैसे विभिन्न कृषि उत्पादों का उपयोग बायोडिग्रेडेबल फिल्म जैसी पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए किया जा सकता है, जो कि प्लास्टिक का स्थान ले सके।

आज बड़े पैमाने पर पैकेजिंग के लिए पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक का उपयोग ही किया जा रहा है असौर इसकी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक इसका लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहना है। यदि उपलब्ध आंकड़ों को देखा तो वर्तमान में बहुत कम प्लास्टिक को ही रिसाइकल किया जाता है। इसका अधिकांश हिस्सा ऐसे ही लैंडफिल में चला जाता है या इसे ऐसे ही खुले वातावरण में फेंक दिया जाता है और यह बेकार समझा जाने वाला प्लास्टिक माइक्रो प्लास्टिक के रूप में टूट कर स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर समस्या पैदा कर रहा है।

                                                                      

प्रोफेसर आर एस सेंगर ने बताया भारत में सबसे अधिक फल यदि कोई खाया जाता है तो वह केला है और केले का छिलका भी बहुत अधिक मात्रा में निकलता हैं, यदि इन छिलकों को रिसाइकल कर दिया जाए तो पर्यावरण को काफी हद तक सुरक्षित रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि केले के छिलके एक अच्छे और सस्ते विकल्प के रूप में सामने आए हैं। यह मुख्य रूप से लिगनोसेलुलोसिक से बने होते हैं, जो बायोडिग्रेडेबल फिल्म बनाने का एक मुख्य घटक होता है। जैविक कचरे के रूप में यह लिगनसैलूलोजिक्स युक्त कच्ची सामग्री बायोप्लास्टिक बनाने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है, क्योंकि यह हल्की और मजबूत होने के साथ-साथ आसानी से विघटित हो सकती है। इसमें हानिकारक केमिकल नहीं होते जिसकी वजह से यह सुरक्षित भी होती है।

प्रोफेसर  ने सेंगर बताया केले के छिलकों को एकत्र करके उनको चोकर में बदल दिया जाता है और फिर इस पाउडर से फाइबर निकालने के लिए एक रासायनिक प्रक्रिया की मदद ली जाती है और लिगनसैलूलोजिक्स सामग्री को अलग कर लिया जाता है। निकाले गए इन रेशों को ब्लीचिंग डिस्टेलिंग जैसी प्रक्रियाओं की मदद से एक पतली फिल्में बदल लिया जाता है। केले के छिलकों से बनी यह फिल्म मजबूत होने के साथ-साथ पारदर्शी भी होती है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है की मिट्टी में 21 प्रतिशत नमी होने पर यह फिल्म 30 दिनों में ही विघटित भी हो जाती है। पैकेजिंग सामग्री के लिए फिल्म में पारदर्शिता का होना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि उपभोक्ता भोजन की ताजगी का पता करने के लिए पारदर्शी पैकेजिंग को प्राथमिकता देते हैं। इसी तरह खाद्य उत्पादों की पैकेजिंग के लिए फिल्म का मजबूत और लचीला होना भी जरूरी होता है। केले के छिलके से बनी पैकेजिंग सामग्री इन मानको पर खरी उतररती है और इसके यही गुण बताते हैं कि बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए केले के छिलके एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं।

केले की कुछ खास बातें

                                                 

  • दुनिया भर में 1 से 50 देश में केले की 1000 से भी ज्यादा किस्में उगाई जाती है।
  • दुनिया भर में 150 देश में केले की 1000 से भी ज्यादा किस्में उगाई जाती है।
  • प्रतिवर्ष लगभग 3.6 करोड़ टन के आसपास केले के छिलकों को आमतौर पर फेंक दिया जाता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।