खरीफ सीजन की खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों के सुझाव

               खरीफ सीजन की खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों के सुझाव

                                                                                                                                                                       डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

खरीफ के सीजन के आरम्भ ही इसके लिए किसानों की तैयारियों में भी तेजी आने लगती है। खरीफ के सीजन की फसलों की बुआई माह जून और जुलाई के मध्य और इनकी कटाई सितम्बर से अक्टूबर के मध्य में की जाती है। से धान, मक्का, सोयाबीन, बाजरा, मूग, उड़द और कपास आदि फसलों की खेती की जाती है। हमारी आज की इस पोस्ट में ़खरीफ के सीजन की खेती के कुछ महत्वपूर्ण टिप्स एवं सुझाव इिए जा रहे हैं, जो कि इस सीजन में किसानों की खेती को सफल बनाने में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं।

फसल का चयनः खरीफ सीजन में फसलों का चयन करते समय किसानों को अपने क्षेत्र की मृदा, जलवायु और सिंचाई साधनों को ध्यान में रखना चाहिए। धान, मक्का एवं बाजरा के जैसी फसलें अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए अनुकूल होती हैं, जबकि मूगफली और सोयाबीन की खेती को कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी आसानी से किया जा सकता है।

खेत की तैयारीः इस सीजन की फसलों की बुआई करने से पूर्व खेत की गहरी जुताई करना आवश्यक है। खेत की गहरी जुताई करने से खेत में नमी का स्तर ठीक बना रहता है और खरपतवारों की वृद्वि पर भी अंकुश रहता है। किसानों को खेत की उपजा क्षमता को बढ़ाने के लिए हरी खाद एवं जैविक खादों का प्रयोग ही करना चाहिए।

बीज गुणवत्ताः किसानों को बुआई के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्रयुक्त करने चाहिए। इसके साथ ही बुआई करने से पूर्व बीजोपचार अवश्य करना चाहिए इससे कीट एवं रोगों से बचाव रहता है। प्रमाणित बीज का उपयोग करने से फसल के उत्पादन में अपेक्षित वृद्वि होती है।

सिंचाई का प्रबन्धनः खरीफ के सीजन में मानसून की अनिश्चितता को देखते हुए सिंचाई की अचित व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके साथ ही वर्षा जल संचय के लिए तालाब, चेकडैम और वॉटर हार्वेस्टिंग पिट का उचित स्थान पर निर्माण करना चाहिए। हालांकि सिंचाई के लिए डिप और स्प्रिंकलर पद्वति का उपयोग करने से सिंचाई के जल में बचत की जा सकती है।

खाद एवं उर्वरक का प्रयोगः खेत में उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना ही सर्वथा उचित रहता है। इसी के आधार पर संतुलित मात्रा में नाइटोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश आदि का उपयोग किया जाना चाहिए। मृदा की संरचना में सुधार करने के लिए जैविक खादों का प्रयोग अधिकतम करना ठीक रहता है।

खरपतवार नियंत्रणः सही समय पर की गई खरपतवारों की सफाई से फसल की वृद्वि अच्छी होती है। रासायनिक एवं यांत्रिक विधि दोनों ही प्रकार से खरपतवार का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। इसके लिए फसल की बुआई के आरिम्भक 20 से 30 दिन में खरपतवार का नियंत्रण करना आसान और जरूरी होता है।

कीट एवं रोग प्रबन्धनः फसलों में कीट एवं रोगों का समय पर नियंत्रण करना भी आवश्यक होता है। इसके लिए किसान अधिक से अधिक जैविक विधियों का उपयोग करें और रासायनिक कीट नियंत्रकों का संतुलित उपयोग ही करें। इसके साथ ही वह अपनी फसलों की निरंतर रूप से निगरानी करते रहें और रोगों एवं कीटों का उपचार उनकी प्रारम्भिक अवस्था में ही करें।

फसल विविधिकरणाः एक ही फसल को लेने के स्थान पर किसान फसलों के विविधिकरण पर ध्यान दें। पहले तो इससे खेत की मृदा की उर्वरता बनी रहती है और दूसरे यदि किसी कारणवश एक फसल खराब हो जाती है तो उसकी पूर्ति दूसरी फसल से की जा सकती है।

फसल बीमा योजनाः किसानों से अपील है कि वह फसल बीमा योजना का लाभ अवश्य ही प्राप्त करें। इससे प्राकृतिक आपदाओं के चलते होने वाले नुकसान की भरपाई काफी हद तक की जा सकती है। अतः किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत अपनी फसल का बीमा आवश्यक रूप से कराएं।

तकनीकी सलाहः विभिन्न कृषि विशेषज्ञों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों से किसान लगातार सलाह लेते रहें। इसके साथ ही किसान खेती के उन्नत तरीके और नवीन तकनीकों को भी समय रहते ही अपनाएं तो उन्हें इसका लाभ मिलेगा। इसके लिउ किसान कृषि मेलों और प्रदर्शनियों आदि में सक्रिय रूप से भाग लेते रहें तो उन्हें इनकी ताजा लानकारी मिलती रहती है।

यदि किसान इन सुझावों का पालन करते हैं तो उन्हें उनकी खरीफ का फसलों की उपज और उनकी गुणवत्ता में सकारात्मक सुधार देखने को मिलेगा, क्योंकि सही समय पर सही कदम उठाना ही सफल खेती का मूलमंत्र होता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।