ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की फसल में लगने वाले कीट और रोग

        ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की फसल में लगने वाले कीट और रोग

                                                                                                                                                                                              डॉ0 आर. एस. सेंगर

                                                                                 

वर्तमान में देश के कई क्षेत्रों में किसानों के द्वारा ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की खेती की जा रही है। ऐसे में किसान ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन प्राप्त कर सके। इसके लिए कृषि विभाग की और से किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की गई है। किसान कल्याण तथा कृषि विभाग के अनुसार जायद में मूंग एवं उड़द की फसल पर कीटों और रोगों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन फसलों का औसत उत्पादन दस क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है, जबकि कीटों एवं रोगों से बचाव करने पर इसके उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि की जा सकती है।

किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के अनुसार कम लागत और अंतर-फसल के रूप में विभिन्न किसानों के द्वारा अतिरिक्त आय के के लिए की जाने वाली मूंग एवं उड़द की फसलें मिट्टी की उर्वरकता में सुधार करने में भी सहायक होती हैं। कम अवधि में पकने वाली ये दलहनी फसलें 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण भूमि में करती हैं और कटाई के बाद 1.5 टन कार्बनिक पदार्थ को खेत में छोड़ जाती है। जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।

मूंग एवं उड़द की अधिकतम पैदावार के लिये भूमि का उचित प्रबंधन, प्रारंभिक खरपतवार नियंत्रण, संतुलित उर्वरक का उपयोग, क्रांतिक अवस्था में सिंचाई, समय पर कीट रोगों का प्रभावी नियंत्रण तथा समय पर कटाई आदि कारक काफी लाभदायक सिद्व होती है।

मूंग और उड़द में कीटों का नियंत्रण कैसे करें

                                                                          

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ बीमारियां महामारी की स्थिति में मूंग एवं उड़द की उपज में गंभीर नुकसान का कारण बनती है। मूंग-उड़द की फसलों में अधिकतर सफेद मक्खी, फली छेदक इल्ली, माहू तथा बिहार रोमिल इल्ली का प्रकोप अक्सर देखा जाता है।

पत्तीभक्षक या इल्ली वर्गीय कीटों की रोकथाम के लिये लैम्बडासाइटेलोथ्रिन 10 ईसी का 0.5 मिलीलीटर, क्विनोल्फॉस 25 ईसी का 2.5 मिलीलीटर या फेनवेलरेट 20 ईसी का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से उपयोग कर इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।

मूंग एवं उड़द फसलों में माहू या सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीटों का प्रकोप होने की स्थिति में 2 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का प्रति लीटर पानी में उपयोग कर 15-15 दिनों के अंतराल में करें या थियामेथोक्साग 25 डब्ल्यूपी का 0.3 ग्राम लीटर या नीम तेल 5 प्रतिशत का 50 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करना लाभप्रद सिद्व होता है।

मूंग-उड़द में लगने वाली बीमारियों का नियंत्रण

                                                                       

कृषि वैज्ञानिक डॉ0 सेंगर ने बताया कि मूंग एवं उड़द की फसलों में बीमारियों का शीघ्र पता लगाना एकीकृत रोग प्रबंधन के दृष्टिकोण से बीमारियों को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिये काफी महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने बताया कि मूंग उड़द में पीला मोजेक, सकॉस्पोरा, पर्णदाग, एन्थक्नोज तथा भभूतिया आदि रोग प्रमुख रूप से लगते है।

पीला मोजेक, सफेट मक्खी द्वारा फैलता है। इसके नियंत्रण के लिये मैलाथियान 50 ईसी का 2 मिलीलीटर या ऑक्सीडेमेटोन मिथाइल 25 ईसी का 2 मिलीलीटर का छिडकाव 15-15 दिनों के अंतराल में करना फायदेमंद होता है।

फफूंद से होने वाले रोग अल्टेरनारिया या सर्काेस्पोरा के नियंत्रण के लिए जिनेव 80 डब्लूपी या जिरम 80 डब्लूपी का 2 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी का 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लूपी के साथ डाइथेन एम-45 का 2 ग्राम प्रति लीटर का आवश्यकतानुसार छिड़काव करना किफायती होता है। भभूतिया रोग के लक्षण दिखाई देने पर सल्फर 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने से रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।