अनाज में जिंक की कमी के चलते बढ़ता बीमारियों का खतरा

           अनाज में जिंक की कमी के चलते बढ़ता बीमारियों का खतरा

                                                                                                                                         डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 कृषाणु एवं गरिमा शर्मा

                                                                                 

जलवायु परिवर्तन के चलते अनाज में जिंक (जस्ता) की मात्रा तेजी से कम हो रही है, जिसका सीधा असर हमारी सेहत पर ही पड़ रहा है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के अध्ययन में दावा किया गया है कि कार्बन के अत्यधिक उत्सर्जन के कारण अनाज में जिंक की मात्रा कम हो रही है।

इसलिए होती है कमी

कार्बन डाई आक्साइड पौधों के लिए बहुत जरूरी है। ऐसे में जितना कार्बन उत्सर्जन अधिक होगा, यह पौधों की वृद्धि के लिए उतना ही बेहतर होगा। वर्तमान में पौधों की वृद्धि तो अच्छी हो रही है, लेकिन इससे अनाज के दानों की गुणवत्ता भी लगातार कम हो रही है।

जिंक की कितनी कमी है

                                                                 

रिपोर्ट के अनुसार, गेहूं, चावल, मक्का, जौ और फलियों में जिंक की कमी 5-11 फीसदी तक की दर्ज की गई है। यह तुलना 1983 से पहले के आंकड़ों से की गई है।

जिंक की कमी होने से डायरिया, मलेरिया तथा निमोनिया जैसी बीमारियों का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। जिंक हमारे शरीर के प्रतिरोधक तंत्र को भी दुरुस्त बनाए रखने में भरपूर मदद करता है।

शोधकर्ताओं के द्वारा भारत पर किए गए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1983 में देश में जिंक की कमी के शिकार लोगों का प्रतिशत 17 था, जो कि वर्ष 2012 में बढ़कर 25 फीसदी तक पहुंच चुका था। इसका मतलब यह हुआ कि इन तीन दशकों में 8.2 करोड़ और लोग जिंक की कमी के शिकार हुए।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गइ्र है कि वर्ष 2050 तक पांच फीसदी और भारतीय आबादी जिंक की कमी के चपेट में आ सकती है। वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन में खाद्यान्न के उपभोग को लेकर 30 सालों के एनएसएसओ के आंकड़ों, देश के विभिन्न हिस्सों में सात परिवारों के खानपान के पैटर्न का अध्ययन करने के बाद यह नतीजा निकाला है। सभी प्रमुख अनाजों जिसमें चावल, गेहूं, मक्का, जौ तथा फलियां शामिल हैं, कार्बन के उच्च स्तरीय उत्सर्जन से प्रभावित हो रही हैं। दक्षिणी भारत समेत देश के जिन हिस्सों में चावल का सेवन ज्यादा किया जाता है, वहाँ लोग जिंक की कमी के ज्यादा शिकार हुए हैं। वहीं शहरी आबादी में भी जिंक की कमी पाई जा रही है।

इस तरह हो सकता है इसका समाधान

जारी की गई इस रिपोर्ट में ही इस समस्या का समाधान भी सुझाया गया है। इस सुझाव अनुसार इस समस्या से निपटने के लिए भारत को केवल दो उपाय करने होंगे। एक तो कार्बन उत्सर्जन में निर्धारित लक्ष्य के अनुसार ही कमी लाई जाए। दूसरे, जिंक की कमी से निपटने के लिए राष्ट्रीय पोषण कार्यक्रम में जिंक को अलग से प्रदान स्थान प्रदान करना चाहिए।

शरीर का पोषक तत्वः

                                                      

जिंक हमारे शरीर के लिए जरूरी आठ सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है। यह शरीर में नहीं बनता है बल्कि भोजन से ही शरीर को प्राप्त होता है।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।