हरित फसलों के लाभ      Publish Date : 09/05/2024

                                  हरित फसलों के लाभ

                                                                                                                                        डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 रेशु चौधरी एवं आकांक्षा सिंह

किसान भईयों यदि अभी केला या धान की फसल लगाने में 45-50 दिन का समय बाकी है तो आपको तुरंत हरी खाद वाली फसलें लगा देनी चाहिए, इससे रासायनिक उर्वरकों की मात्रा में भारी कमी आती है और आपकी अगली फसल भी बहुत अच्छी होगी।

                                                                           

निरंतर बढ़ते रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरकता लगातार कम होती जा रही है। ऐसे में किसान इस समय हरी खाद का प्रयोग करके न केवल अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि इसके साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाया जा सकता है। आजकल गेहूं की फसल कट चुकी है। अगली फसल लगाने से पहले किसान हरी खाद को तैयार कर सकते है। जो किसान अब अगली फसल की खेती करने के इच्छुक हो, उन्हें इसकी तैयारी अभी से शुरू कर देनी चाहिए।

रबी फसलों की कटाई के बाद अगली फसल लगाने के बीच में किसानों को कुल 90 से 100 दिन का समय मिल जाता है। इस समय का उपयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए, क्योकि हमें पता है की केला की खेती में बहुत ज्यादा पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। अतः यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने का एक सबसे अच्छा तरीका है, खेत में हरी खाद का प्रयोग करना।

हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती से मिट्टी के पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के लिए की जाती है। इससे जमीन की उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही यह जमीन के नुकसान को भी रोकती है। यह खेत को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, जस्ता, तांबा, मैगनीज, लोहा और मोलिब्डेनम आदि सभी तत्त्व भी उपलब्ध कराती है। यह खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा को बढ़ा कर उस की भौतिक दशा को भी सुधारती है।

हरी खाद को अच्छी उत्पादक फसलों की तरह हर प्रकार की भूमि में जीवांश की मात्रा बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस से भूमि की सेहत ठीक बनी रह सकेगी। इस क्रम में आवश्यक है कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए अप्रैल मई माह मे सनई, ढैंचा, मूंग, लोबिया आदि में से किसी एक की बुवाई अपने खेतों में करे, बेहतर होगा कि, ढैंचा को ही प्राथमिकता प्रदान करें, क्योकि इसकी बढ़वार इस समय बहुत अच्छी होती है।

                                                                          

जिस मिट्टी का पी.एच. मान 8.0 के ऊपर जा रहा हो, उस मिट्टी के लिए ढैचा एक उपयुक्त खाद होती है। यह मिट्टी की क्षारीयता को भी कम करता है। जिन खेतों में मृदा सुधारक रसायन यथा जिप्सम या पायराईट आदि का प्रयोग किया जा चुका है और लवण निच्छालन की क्रिया सम्पन्न हो चुकी है, वहॉ ढैचा की हरी खाद लगाना चाहिये। हरी खाद के अन्दर वायुमंडलीय नत्रजन को मृदा में स्थिर करने की अच्छी क्षमता होती है एवं मिट्टी में रसायनिक, भौतिक, एवं जैविक क्रियाशीलता में वृद्धि के साथ-साथ केला की उत्पादकता फलों की गुणवत्ता एवं अधिक उपज  प्राप्त करने में भी सहायक होता है।

अप्रैल- मई माह मे खाली खेत मे पर्याप्त नमी हेतु हल्की सिचाई करके 45-50 किलोग्राम ढैंचा के बीज की बुवाई करते है, एवं जब इसकी फसल लगभग 45-60 दिन (फूल आने से पूर्व) की हो जाती है तो ढैंचा को मिट्टी पलटने वाले हल से मिट्टी मे ही दबा दिया जाता है। इससे केला  की रोपाई से पूर्व एक अच्छी हरी खाद तैयार हो जाती है। इसे मिट्टी मे दबाने के बाद 1 किग्रा यूरिया प्रति बिस्वा (1360 वर्ग फीट) की दर से छिडकाव कर देने से एक सप्ताह के अन्दर ही  ढैचा खूब अच्छी तरह से सड़ कर मिट्टी में मिल जाता है। इस प्रकार से खेत केला की रोपाई के लिए तैयार हो जाता है।

ढैचा के अन्दर कम उपजाऊ भूमि  में भी खूब अच्छी तरह से उगने की क्षमता होती। ढैचा के पौधे भूमि को अपनी पत्तियों एवं तनों से ढक लेते है, जिससे मिट्टी का क्षरण कम हो जाता है। इस तरह से मिट्टी में कार्बनिक एवं जैविक पदार्थों की अच्छी मात्रा भी खेत में एकत्र हो जाती है। राइजोबियम जीवाणु की मौजूदगी में ढैचा की फसल से लगभग 80-150 किग्रा० नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर स्थिर होती है। हरी खाद का प्रयोग करने से मिट्टी के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में प्रभावी परिवर्तन होता है, जिससे सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता एवं आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता में भरपूर वृद्धि होती है।

                                                                                            

हरी खाद मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए उम्दा और सस्ती जीवांश खाद होती है। हरी खाद का अर्थ उन पत्तीदार फसलों से है, जिन की बढ़वार जल्दी व ज्यादा होती है। ऐसी फसलों को फल आने से पहले जोत कर मिट्टी में दबा दिया जाता है। ऐसी फसलों का इस्तेमाल में आना ही हरी खाद देना कहलाता है।

हरी खाद खेत को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, जस्ता, तांबा, मैगनीज, लोहा और मोलिब्डेनम वगैरह तत्व भी मुहैया कराती है। यह खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ा कर उस की भौतिक दशा में सुधार करती है। हरी खाद को अच्छी उत्पादक फसलों की तरह हर प्रकार की भूमि में जीवांश की मात्रा बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस से भूमि की सेहत ठीक बनी रह सकेगी।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।