सब्जियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के द्वारा कीट प्रबन्धन

                    सब्जियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के द्वारा कीट प्रबन्धन

                                                                                                                                                                     डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्या है? कृत्रिम बुद्धिमत्ता कीट प्रबंधन की तकनीकी को आसान बनाता है। यह कंप्यूटर या मशीन द्वारा मानव मस्तिष्क के सामर्थ्य की नकल करने की क्षमता रखती है। इसमें अनुभवों से सीखना, वस्तुओं को पहचानना, भाषा को समझना और प्रतिक्रिया देना, निर्णय लेना, समस्याओं का हल करना तथा ऐसी ही अन्य क्षमताओं के संयोजन से मनुष्यों के समान ही कार्य कर पाने की क्षमता आदि शामिल हैं।

                                                              

कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक ऐसा सतत् अनुकरण है, जिसके द्वारा मशीनों में इंसानी बुद्धिमत्ता को स्थापित किया जाता है या उनके दिमाग को इतना उन्नत किया जाता है, कि वह मानव की तरह सोच सकें और काम कर सकें। यह खासकर कंप्यूटर प्रणाली में ही किया जाता है।

भारत की बढ़ती आबादी के साथ ही कृषि क्षेत्र हमारे देश की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख आधार है। अपनी इस बढ़ती आआदी की भूख और कुपोषण आदि समस्याओं का उन्मूलन करने हेतु सीमित प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादन में वृद्धि करके खाद्य सुरक्षा के समाधान की आज जरूरत है। परम्परागत सब्जियों की कृषि तकनीकी की अस्थिरता को देखते हुए सब्जियों में कीट प्रबंधन अंतर्गत सुधार की समय की आवश्यकता है, जो सुग्राही हो और जिनके माध्यम से अपने कृषक बन्धुओं का सर्वांगीण विकास किया जा सके।

वर्तमान समय में कृषकों का कृषि से पलायन चिंता का विषय बनता जा रहा है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी आधुनिक कृषि तकनीकी का कीट प्रबंधन के लिए समावेश करने की आवश्यकता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा कीटनाशी रसायनों की सीमित मात्रा से कीट प्रबंधन में आशातीत सफलता के साथ उत्पादन में अधिकतम वृद्वि देखी गई है। भारतीय कृषि जलवायु में क्षेत्रीय विविधता (15 प्रमुख जलवायु क्षेत्र) पायी जाती है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी कृषि योग्य भूमि भारत में मौजूद है। देश की आजादी के 75 वर्षों के बाद भी कृषि क्षेत्र में किसान आत्मनिर्भर नहीं हो सका है। जलवायु विविधता एवं कीटों की जनसंख्या, गतिशीलता को समान रूप से प्रभावित करती है।

इस प्रक्रिया में मुख्यतः तीन प्रक्रियायें

कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक ड्रोन, रोबोट, आदि के अंतर्गत कृत्रिम बुद्धिमत्ता अपनी उपयोगिता तापमान और नमी सेंसर, हवाई सिद्ध करते हुए जमीनी स्तर पर विस्तार कर चित्र और वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली रही है। (जीपीएस तकनीक), कंप्यूटर दृष्टि कैमरा और सेंसरों के साथ मिलकर काम करती है। यह वास्तविक समय में आंकड़े संग्रह करने की क्षमता प्रदान करती है। ये किसानों को समय से सूचित करने तथा स्थायी निर्णय लेने के लिए आंकड़े प्रदान करके सब्जियों की उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ावा हैं। भारत में वर्तमान कृषि प्रौद्योगिकी क्षेत्र के भाकृअनुप-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)।

पहला है सीखनाः जिसमें मशीनों के दिमाग में सूचना को डाला जाता है, और उन्हें कुछ नियम भी सिखाये जाते हैं, जिससे कि वो उन नियमों का पालन करके किसी दिए हुए कार्य को पूरा कर सकें।

दूसरा है विचारः इसके अंतर्गत मशीनों को आदेश दिया जाता है, कि वो इन बनाये गए नियमों का पालन करके परिणाम के तरफ अग्रसर हों, जिससे कि उन्हें अनुमानित या निश्चित निष्कर्ष प्राप्त हो सकें।

तीसरा विचार है, स्वतः-सुधार- कृत्रिम बुद्धिमत्ता के द्वारा वैज्ञानिक रूप से सत्यापित समाधान प्राप्त कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन क अनुमान है, कि वैश्विक फसल की पैदावार, प्रत्येक वर्ष कीटों और रोगों के कारण 20-25 प्रतिशत के बीच कम हो रही है।

इस विधि के द्वारा समय रहते सब्जियों के कीटों की सही-सही पहचान करके कीटों सब्जी की फसलों में लगने वाले हानिकारक कीटों का प्रबंधन में लगने वाली लागत को भली प्रकार से कम किया जा सकता है और हानिकारक कीटों को प्रारम्भिक अवस्था में ही नियंत्रित किया जा सकता है।

किसी भी कीट को समझने के लिए हानिकारक कीट से संबंधित जानकारी लेनी सही-सही पहचान की अत्यंत आवश्यकता हो तो उस कीट की सही-सही पहचान करने से ही सम्भव हो पाती है। पौधे में कीट की पहचान पारंपरिक रूप से देखकर की जाती है। हालांकि, यह कीटों की स्थिति खेत में नमी का स्तर, मृदा में उर्वरकों के स्तर, खरपतवार के प्रकार और उनके नियंत्रण सम्बन्धित जानकारियों का भी पता लगाया जा सकता है। यह विधि खेती के स्वरूप और उनमें आने वाली सारी समस्याओं का हल मोबाइल ऐप द्वारा बताने में समर्थ होती है।

कभी-कभी कीट सम्पूर्ण फसल को भी नष्ट कर देते हैं। ऐसे में कीट प्रबंधन हेतु 21वीं सदी के भारत में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोग से किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ देश में आने वाले भविष्य के खाद्य संकट की समस्या को भी दूर किया जा सकता है।

कीट प्रबंधन की अपरिमित संभावनाएँ

                                                            

सब्जियों में कीटों की पहचान और उनके नियंत्रण के सम्बंध में जानकारी के लिए किसानों को कीट विशेषज्ञों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके लिए जिला कृषि अधिकारी या कृषि विज्ञान केंद्र में जाकर कीटों के निदान की जानकारी कृषकों को लेनी पड़ती है। इसमें दौड़-धूप और बहुत समय लगता है। परिणामस्वरूप कीटों का समय रहते निदान नहीं हो पाता है। ऐसे में कृत्रिम बुद्धिमत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस तकनीकी के माध्यम से खेत में दूर बैठे किसानों को अपनी फसलों में लगने वाले कीटों के बारे में सही जानकारी मिल सकती है।

इसके द्वारा प्रारंभिक अवस्था में कीटों की सही पहचान कर उन्हें उन्नत तरीके से नियंत्रण के सभी उपाय सुगमतापूर्वक सुलभ हो सकते हैं। इस तकनीकी में हानिकारक कीटों के चित्रों, नाम-पत्र (लेबल) के साथ अनुकूल परिणाम को प्राप्त किया जा सकता है।

जलवायु संबंधी आंकड़ों को उपकरणों में अपलोड (डालना) कर सकते हैं। ये खेत पर संभावित कीटों के प्रकार की पहचान कर सकते हैं और प्रबंधन योजना को लागू करके कीटों के प्रकोप को रोक सकते हैं। एक किसान के लिए यंत्र (लर्निंग) महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए व्यक्तिगत, खरपतवारों, रोपण से लेकर सिंचाई और कटाई तक का प्रबंध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

ड्रोन के द्वारा कीटनाशकों का छिड़काव

                                                                             

फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव करने के लिए ड्रोन का उपयोग केवल आवश्यक मात्रा में कीटनाशकों सामान्य तौर पर कीटों की रोकथाम के लिये करना अधिक सुरक्षित और लागत प्रभावी है। जब इसका का उपयोग करते हैं, तो प्रदूषण और मिट्टी के लिए भी यह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ड्रोन तकनीक को लागू करके, खेतों और कृषि में न्यूनतम विषाक्त कीटनाशकों के प्रयोग द्वारा सब्जी फसलों की पैदावार में सुधार कर सकते हैं, जो दीर्घकालिक सफलता में नये आयाम को विकसित करेंगे।

रिमोट सेंसिंग तकनीक से लैस ड्रोन, कीटों के उत्पीड़न के संकेतों के लिए खेतों की पहरेदारी कर सकते हैं। उन्हें जैविक नियंत्रण एजेंटों की एक चोट देकर या कीटनाशकों का अत्यधिक लक्षित प्रतिपादन करके कीटों का नियंत्रण कर सकते हैं। छोटे क्षेत्रों में कीटों को नियंत्रित करने के लिए ड्रोन का उपयोग आसानीपूर्वक किया जा सकता है। ये एकीकृत कीट प्रबंधन कार्यक्रमों में विशेष रूप से ‘जैविक नियंत्रण’ का उपयोग कर कीटों पर हमला करने के लिए प्रभावी मार्ग प्रस्तुत करते हैं।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।