यूजीसी ने बनाया नियम अपनी मातृभाषा में भी विद्यार्थी दे सकेंगे परीक्षा      Publish Date : 22/04/2023

                                                                               यूजीसी ने बनाया नियम अपनी मातृभाषा में भी विद्यार्थी दे सकेंगे परीक्षा

                                                                                                                                          डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा

                                                           

उच्च शिक्षा हासिल कर रहे विद्यार्थियों के लिए यू जी सी ने एक बड़ी राहत भरी खबर दी है, अब वह अपनी मातृभाषा में भी परीक्षा दे सकेंगे भले ही उनका पाठ्यक्रम अंग्रेजी भाषा में ही क्यों न तैयार किया गया हो। असल में उच्च शिक्षा तक सभी की पहुंच बढ़ाने में जुटे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण पहल की हैए जो काफी सराहनीय है यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों से अपने सभी विषयों को मातृभाषा या फिर स्थानीय भाषा में पढ़ाने को कहा है साथ ही कहा है कि कोई कोर्स भले ही अंग्रेजी माध्यम का है बावजूद इसके छात्रों को उसकी परीक्षा स्थानीय भाषा में देने की अनुमति भी दी जाए। 
माना जा रहा है कि इस पहल से उच्च शिक्षा के सकल नामांकन दर जी आई आर को बढ़ाने में मदद मिलेगी जो कि मौजूदा समय में करीब 27 प्रतिशत है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वर्ष 2035 तक इसे 50 प्रतिशत तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यूजीसी के चेयरमैन प्रोफेसर जगदीश कुमार ने विश्वविद्यालयों को इस संबंध में लिखे पत्र में इसे तेजी से अमल में लाने को कहा है साथ ही इससे जुड़ी रणनीति बनाने के लिए सुझाव भी मांगे हैं माना जा रहा है कि यूजीसी ने इसे लेकर उन सभी विश्वविद्यालयों को मदद देने की तैयारी की है जिनके पास विषयों को स्थानीय या फिर मातृभाषा में तैयार करने के लिए संसाधन नहीं है इस दौरान यूजीसी का सबसे ज्यादा फोकस राज्यों से जुड़े विश्वविद्यालयों और कालेजों पर है जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
यूजीसी ने विश्वविद्यालयों से यह मांगी जानकारी
.    अलग.अलग विषय की स्थानीय भाषाओं में उनके पास उपलब्ध अध्ययन सामग्री का विवरण।
.    ऐसी अध्ययन सामग्री जिसका स्थानीय भाषा में अनुवाद आवश्यक है।
.    संस्थान में मौजूद ऐसे शिक्षक और विशेषज्ञ जो अपने विषय से जुड़ी सामग्री का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद कर सकते हैं या फिर से उसे लिख सकते हैं।
भाषा की दिक्कत के चलते काफी छात्र शिक्षा से बना लेते हैं दूरी
यूजीसी से जुड़े अधिकारियों के अनुसार भाषा की दिक्कतों के चलते दूर.दराज या फिर ग्रामीण क्षेत्रों से संबंध रखने वाले बड़ी संख्या में छात्रए उच्च शिक्षा से दूरी बना लेते हैं। हालांकि, वैसे तो इसकी शुरुआती आठवीं कक्षा के बाद से ही दिखने लगती हैए जबकि 12वीं कक्षा तक आते.आते यह काफी कम हो जाती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 12वीं कक्षा में छात्रों का जी आई आर सिर्फ 50.7ः तक ही सिमटकर रह जाता है।
कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ कमाई योजना प्रारंभ होगी
उच्च शिक्षण संस्थान जल्द ही सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों की मदद के लिए पढ़ाई के साथ ही कमाई की योजना शुरू कर सकती हैए ताकि ऐसे छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखने में सहूलियत हो। यूजीसी ने इस संबंध में दिशानिर्देश जारी किए हैंए इनमें कहा गया है कि छात्रों के लिए ऐसे काम करने के लिए मानदेय घंटे के हिसाब से एक मुफ्त राशि के रूप में क्या होगा और यह अवधि प्रति महीने 20 दिन और प्रति सप्ताह अधिकतम 20 घंटे होगी। यूजीसी ने कहा है कि इसके तहत काम करने का अवसर छात्रों को कक्षा के बाद प्राप्त होगा।
आयोग ने कुछ सेवाएं सूचीबद्ध की हैए जिनमें शोध परियोजना में कार्यए पुस्तकालय से जुड़े कार्यए कंप्यूटर सेवा डाटा एंट्रीए प्रयोगशाला सहायक आदि शामिल आदि के कार्य में कमजोर वर्ग के छात्रों को लगाया जाएगाए जिसके साथ वह अपनी शिक्षा भी ग्रहण कर सकेंगे और कार्य करके कमाई भी कर सकेंगे।
भारत विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बना

                                   
भारत, वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में भारत की जनसंख्या 142.86 करोड़ हो चुकी है, जबकि चीन 142.57 करोड़ की जनसंख्या के साथ अब दूसरे स्थान पर खिसक गया है। 
अमेरिका, जनसंख्या के मामैैले में विश्व में तीसरे स्थान पर है, जिसकी जनसंख्या 34 करोड़ है। भारत अपनी सर्वाधिक बड़ी युवा आबादी को कुशल बनाकर स बड़ी आबादी की चुनौति को एक अवसर रूप में भी बदल सकता है।
संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, गत 15 नवम्बर को वैश्विक आबादी 8 अरब से अधिक हो गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा वर्ष 1950 से वैश्विक आबादी पर रिपोर्ट जारी करना आरम्भ किया गया था, और भारत अपनी 36.1 करोड़ आबादी साथ इस सूची में अब प्रथम स्थान पर आया है।

                                                     
वर्ष 2050 में होगी देश की जनसंख्या 166.8 करोड़ः संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक जनसंख्या सम्भावनाएं-2022 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 166.8 करोड़ तक पहुँच जाएगी जबिक चीन की जनसंख्या उस समय तक घटकर 131.7 करोड़ रह जायेगी। आकड़ों के माध्यम से ज्ञात होता है कि वैश्विक जनसंख्या वृद्वि की दर वर्ष 1950 के बाद सबसे निचले स्तर पर है।
    वर्ष 2020 में वैश्विक जनसंख्या की वृद्वि दर एक प्रतिश से भी कम दर्ज की गई थी, जबकि वर्ष 2022 में भारत में प्रजनन की दर 1.56 प्रतिशत रही थी।
उत्तर प्रदेश तथा बिहार में है सर्वाधिक युवाः संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन रपोर्ट 2023 के अनुसार भारत के राज्यों में आयु के लिहाज से आबादी का बंटवारा अलग-अलग है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे बड़े राज्यों में अधिकांश जनसंख्या युवा है, जबकि केरल एवं पंजाब में सबसे अधिक संख्या बुजुर्ग आबादी की है। 
भारत में जीवन प्रत्याशा महिलाओं में 74 प्रतिशत तो पुरूषों में 71 प्रतिशत है। वर्तमान में भारत की जनसंख्या, चीन से 29 लाख अधिक है।
अच्छे चरित्र निर्माण हेतु भौतिकता से बचे
आज कई अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैंए हालांकि उनकी चिंता अक्सर भौतिक उपलब्धियों को लेकर होती हैए परन्तु क्या वास्तव में बड़ी से बड़ी नौकरी के योग्य बना देना ही शिक्षा का मूल मकसद है। मौजूदा शिक्षा प्रणाली में प्राथमिक से लेकर उच्च विद्यालयों और महाविद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालय तक अध्ययन करते हुए छात्र 18 से 20 वर्ष व्यतीत करते हैं। 
जीवन के इन महत्वपूर्ण वर्षों के निवेश का लक्ष्य ज्ञान अर्जन होता हैए यह ज्ञानार्जन कुछ एक विश्व का होता है। आशा/अपेक्षा की जाती है कि उन विषयों का अध्ययन कर वे इस योग्य बन जाए कि अपना जीवन सुख पूर्वक बिता सकें। लेकिन दुखद सच्चाई है कि आज छात्र पढ़ते तो है परंतु ज्ञानोपार्जन नहीं कर पाते हैए अधिकांश तो भले बुरे को समझने का विवेक तक भी नहीं मिल पाता है।
हमारी भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य का संबंध व्यापारिक नहीं बल्कि सीखने सिखाने का होता था। पढ़ने-पढ़ाने के माध्यम से अध्यात्मिक संबंध स्थापित हो जाता था। एक ऐसे देश, जहां ऐसी परम्परा रही हो वहां वर्तमान समय में शिष्य दिनदहाड़े किसी शिक्षक को कम नंबर देने पर चाकू मार देते हैं या फिर किसी स्कूलध्कॉलेज में किसी छात्रा का शारीरिक शोषण किया जाता है। इस स्थिति के लिए हम किसको दोष देंघ् किताबी अध्ययन में छात्र व्यवहारिकए सार्थक और रचनात्मक ज्ञान ना के बराबर ही अर्जित कर पाते हैं। 
यदि पढ़ लिख कर भी कोई छात्र बेकार रह जाता है तो निरंतर मानसिक हिंसा का शिकार होता जाता है। फिर ऐसे में हम उससे क्या उम्मीद कर सकते हैं। चरित्र के  अभाव में किसी देश का समयक विकास नहीं हो सकता और देश के चरित्र का अर्थ है कि उसके नागरिकों का चरित्रए चरित्रवान नागरिक जब ज्ञानवान होते हैं तभी साहित्य और विज्ञान आदि क्षेत्र में उपलब्धियां प्राप्त कर पाते हैं। ज्ञानवान होना विद्योपार्जन के बिना असंभव है और विद्या का उपार्जन तभी संभव है जब छात्र उसकी प्राप्ति के लिए लगन शील रहें। वह सीखे, सुने और गुरू के द्वारा सुझाए गए मार्ग पर चलें। 
इसी प्रकार चरित्र निर्माण के लिए शब्द शिक्षा आवश्यक है इसके अभाव में चरित्रवान बनने की कल्पना नहीं की जा सकती। अतः जरूरत है कि अच्छी शिक्षा व्यवस्था की और छात्र एवं अध्यापक के मधुरतम संबंधों की। याद रखें चरित्रवान और ज्ञानवान नागरिक ही परिवार और समाज का दोहरा भार उठा पाने में सक्षम हो सकते हैं।