मूल्यवान है सम रहना Publish Date : 22/03/2024
मूल्यवान है सम रहना
डॉ0 आर. एस. सेगर
स्वयं से स्वयं का संवाद न होने के कारण ही बुराइयों का चक्र चलता रहता है। वह कभी नहीं रुकता। आदमी बुराई करता है, पाप का आचरण करता है। प्रश्न उठता है, वह पाप का आचरण क्यों करता है? श्रीकृष्ण ने इसका जो उत्तर दिया वह आज भी उतना ही मूल्यवान है, जितना उस समय मूल्यवान था। उन्होंने कहा-आदमी को पाप में धकेलने वाले काम और क्रोध रूपी शत्रु हैं।
क्रोध ज्ञान पर पर्दा डालता है। ऐसी माया पैदा करता है कि आदमी समझ ही नहीं पाता कि वह पाप कर रहा है। आदमी में मूढ़ता पैदा हो जाती है और तब वह जानते हुए भी नहीं जानता, देखते हुए भी नहीं देखता।
उसमें बुरे और भले का विवेक ही समाप्त हो जाता है और तब वह न करने योग्य कार्य भी कर लेता है। इसीलिए संत-महात्मा हमें ध्यान- अभ्यास के जरिये स्वयं को स्वयं से या स्वयं को परमात्मा से जोड़ने की सलाह देते हैं।
मनुष्य को जीवन में दुःशासन, दुर्योधन, जरासंध, कंस का योग मिले तब भी हंसना और युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, श्रीकृष्ण का योग मिले तब भी मुस्कुराना चाहिए। यानी सुख-दुख में सम रहना चाहिए। जीवन में आने वाली हर समस्या को ठोकर मार कर हटाते चलें, हवा से उड़ाते चलें, एक दिन सफलता के शिखर पर जरूर प्रस्थित होंगे।
कष्टों से क्या डरना है? जो जीवन को एक चुनौती मानते हैं वे हर परीक्षा में कामयाबी पाते हैं, सफलता उनके चरण चूमती है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार सहन करो, सफल बनो। श्रम करो, सफल बनो। सेवा करो, सफल बनो। संयम करो, सफल बनो। स्वभाव में रमण करो, सफल बनो।
गांधीजी के अनुसार- बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो। सकारात्मक सोच जीवन की सफलता का द्वार है। जीवन की सफलता के लिए जरूरी है- मस्तिष्क में आइस और जबान पर शुगर फैक्ट्री लगे। जो धैर्य, बुद्धि, संकल्प, श्रम की शक्ति से संपन्न होता है, वही सफलता के शिखर पर आरूढ़ हो सकता है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।