कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न Publish Date : 18/03/2024
कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
जल, जंगल और जमीन का करें संरक्षण : कुलपति एच0 एस0 सिंह
सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए सतत कृषि पद्धतियों विषय पर आधारित आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का दिनांक 16.03.2024 दिन शनिवार को समापन हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शाकुभरी विश्वविद्यालय सहारनपुर के कुलपति प्रोफेसर एच एस सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों को देखते हुए हम सभी लोगों का प्रयास यह होना चाहिए कि हम जल, जंगल और जमीन का संरक्षण करें। उन्होंने वैज्ञानिकों से आवाहन किया कि पहले हम लैंड टू लैब रिसर्च को प्राथमिकता दिया करते थे लेकिन अब समय की मांग है कि हमको किसानों के खेतों पर जाना होगा और उनकी आवश्यकता के अनुसार अपनी लैब में शोध कार्य करना होगा, उसके बाद ही किसानों को तकनीकी देनी होगी।
उन्होंने कहा कि किसानों एवं कृषि वैज्ञीनिकों के अथक प्रयास के फलस्वरूप ही आज हम खाद्यान्न संकट से बाहर निकलकर आ पाए हैं। लेकिन बढ़ती हुई जनसंख्या एक चुनौती है जिसके लिए वैज्ञानिकों का प्रयास यह होना चाहिए कि वह अब खाद्यान्न सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा पर भी उतना ही ध्यान दें। इससे लोगों को खाने के लिए हाइजीनिक अनाज मिल सकेगा और लोगों का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा।
कुलपति प्रोफेसर एच एस सिंह ने कहा कि यदि हमें 2047 तक विकसित भारत का निर्माण करना है तो इसके लिए हम सभी लोगों को आगे आना होगा और मिलकर नए एवं विकसित भारत का निर्माण करना होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के के सिंह ने कहा अब सुरक्षित पौष्टिक व किफायती उत्पादन और खाद्यान्न उपलब्ध कराने के साथ खेती को सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से लाभदायक बनाने के लिए टिकाऊ खेती को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए डिजिटल कृषि की बढ़ती उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए इसका समावेश करना होगा। उन्होंने कहा कि डिजिटल खेती एक क्रांति है जिसमें मशीन, जीपीएस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकों की मदद से भविष्य में खेती को बढ़ावा किया जा सकेगा।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के ए ङी जी इंजीनियरिंग डॉ के पी सिंह ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए अपने संबोधन में कहा कि भारत में जल का अंधाधुंध तरीके से दोहन किया जा रहा है। यहां पर 700 क्यूबिक फ्रेश वाटर प्रयोग किया जाता है जबकि अन्य देशों में इसकी मात्रा बहुत कम है।
भारत में वाटर की रीसाइकलिंग भी नहीं हो पा रही है। आज जरूर इस बात की है कि हम वाटर की रीसाइकलिंग करें। अपनी खेती में काम से कम रासायनिक खादों का प्रयोग करें। ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जैसी तकनीक का इस्तेमाल खेती में आने वाले दिनों में किया जाने लगेगा। अब भारत द्वारा रोबोट भी विकसित किए जा रहे हैं, जिससे आसानी से पेड़ों से फलों की तोडाई और खेत में निराई एवं गुड़ाई आदि का कार्य किया जा सके।
आलू अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम, के विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर आर0 के0 सिंह ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि आज टिकाऊ किसी प्रणाली पर ध्यान देने की आवश्यकता है और इसके साथ ही साथ उत्पादन बढ़ाने के अलावा मृदा के स्वास्थ्य पर भी पर्याप्त ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन कृषि प्रणाली टिकाऊ कृषि प्रणाली ही थी, जिसके अन्तर्गत हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया करते थे। अब हमें इस पर भी ध्यान देना होगा और अपनी खाद्यान्न सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा।
नाबार्ड के देवेंद्र श्रीवास्तव ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि नाबार्ड के द्वारा स्मार्ट फार्मिंग डिजिटल फार्मिंग तथा विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण और कृषि में किसानों की आय कैसे बढ़े, इसके लिए विशेष सहयोग किया जा रहा है। गांव में खेती के विकास और किसान की खुशहाली के लिए नाबार्ड सरकार की योजनाओं को पहुचाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहा है।
समापन सत्र में स्वागत भाषण, अधिष्ठाता डॉक्टर विवेक धामा तथा धन्यवाद प्रस्ताव और संचालन कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर डी0 बी0 सिंह के द्वारा किया गया। प्रोफेसर डी0 बी0 सिंह ने बताया कि इस कार्यक्रम में 370 से अधिक शिक्षकों, वैज्ञानिकों और छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया और इस दौरान छात्रों के द्वारा किए गए शोध कार्यों को प्रस्तुत भी किया गया।
समापन समारोह के दौरान छात्र-छात्राओं को उनके लोक और पोस्टर प्रेजेंटेशन के लिए सम्मानित किया गया। इस दौरान प्रोफेसर अवनी सिंह, प्रोफेसर आर0 एस0 सेंगर, प्रोफेसर एच0 एल0 सिंह, प्रोफेसर गजे सिंह, प्रोफेसर कमल खिलाड़ी, प्रोफेसर डी0 के0 सिंह, प्रोफेसर एल0 बी0 सिंह, प्रोफेसर विनीता, डॉ देश दीपक, डॉक्टर शैलजा कटोच, डॉक्टर आभा द्विवेदी, डॉ उमेश सिंह, प्रोफेसर बृजेश सिंह, प्रोफेसर विजेंद्र सिंह, प्रोफेसर बी0 आर0 सिंह, प्रोफेसर सुनील मलिक, प्रोफेसर दान सिंह, छात्राओं आकांक्षा और रजनी आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।