कृत्रिम बुद्विमत्ता यानि एआई का नया चमत्कार      Publish Date : 05/07/2023

                                                        कृत्रिम बुद्विमत्ता यानि एआई का नया चमत्कार

एम्स समेत दिल्ली के तमाम बड़े अस्पतालों ने कृत्रिम बुद्विमत्ता (एआई) पर आधारित उपचार के ओर बढ़ाए कदम। अस्पतालों के अलग-अलग विभागों में इसके आरम्भिक नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं। एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के द्वारा लकवाग्रस्त 50 मरीजों पर इसका ट्रॉयल किया तो इन मरीजों को ठीक होने में मात्र एक महीने का समय लगा, जबकि सामान्य तौर पर ऐसे मरीजों को ठीक होने में आठ महीने का समय लग जाता है।

एम्स अब इस सुविधा के विस्तार की दिशा में कार्य कर रहा है। इसी प्रकार ब्रेन स्ट्रॉक के मरीजों की पहिचान करने में भी विभिन्न एआई बेस्ड मशीन सहायक बनकर उभरी हैं। मरीज के पूरे शरीर का स्कैन कर इस प्रकार के मरीजों का सफल प्राथमिक उपचार किया जा रहा है।

                                                    

इस प्रकार के यन्त्रों को दूर-दराज के क्षेत्रों में भी भेजा जा रहा है, जिससे विशेषज्ञ चिकित्सकों के बिना भी जांच सम्भव हो सकेगी। एम्स ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ मिलकर यह रोबोटिक यन्त्र तैयार किया है। इसके कुछ घटक कृत्रिम बुद्विमत्ता (एआई) पर आधारित हैं।

यह यन्त्र मरीज की आवश्यकता के आधार पर हाथों की कलाई एवं अंगुलियों का व्यायाम करवाता है और इसके साथ ही यह आवश्यकता के अनुसार व्यायाम की गति कम या उसे त्रज करने में भी सक्षम है।

इस डिवाइस का ट्रॉयल न्यूरोलॉजी विभाग में भर्ती 50 मरीजों पर किया गया, और इसके एक माह के बाद ही इन मरीजों के हाथ काम करने लगे। विश्व स्तर पर विभिन्न कम्पनियाँ नैनो रोबोटिक यन्त्र तैयार कर रही हैं, जो मानव शरीर के सूक्ष्म हिस्सों की सर्जरी करने भी सक्षम होगी। अभी तक दिल्ली के एम्स, सफदरजंग और दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट आदि में ही इस रोबोटिक मशीन का उपयोग किया जा रहा है, जबकि यह अपने मैनुअल फेज में भी उपलब्ध है, जिसे एक डॉक्टर संचालित करता है। वहीं नैनो एआई रोबोटिक सर्जरी मशीन उक्त सर्जरी से जुड़े प्रोग्राम को अपलोड करने के बाद उक्त सर्जरी की जाती है।

                                                                      

एम्स-आईआईटी के सहयोग से तैयार एआई बेस रोबोटिक ग्लब्स बनाने वाले डॉ0 अमित मेहंदीरत्ता कहते हैं कि किसी भी एआई डिवाइस को बनाने से पूर्व उससे सम्बन्धित हजारों-लाखों की संख्या में डेटा का संग्रहण किया जाता है। इसके साथ ही मशीन की लर्निंग एल्गोरिदम भी तैयार किए जाते हैं।

एह ऐसे प्रोग्राम होते हैं जो दिए गऐ डेटा के पैट्रन को समझकर उसके आधार पर रिपोर्ट को तैयार कर सकने में सक्षम होते हैं। देश में अभी तक चिकित्सा के क्षेत्र में एआई केवल एक समर्थन करने वाला तत्व है, जिस पर लगातार शोधकार्य किए जा रहे हैं।

एआई एक मजबूत टूल है। दिल्ली आईआईटी से इंजीनियर जगमाल सिंह बताते हैं कि पिछले 15 वर्षों में एआई की दिशा में तेजी से विकास हुआ है। इसको तैयार करने के लिए पहले इस मशीन को बच्चो की तरह से ही सिखाया जाता है।

                                            भारत का प्राचीन जल विज्ञान आधुनिक सिद्धांतों पर खरा उतरता है

                                          

मौसम के पूर्वानुमान को आज उपग्रह व डॉप्लर रडार उपलब्ध है परन्तु भारत में प्राचीन काल में आकाश के रंग, बादल, बिजली, इंद्रधनुष, वायु की दिशा और जानवरों की गतिविधियों से इसका अनुमान लगाया जाता था। महाकवि घाघ की कविताएं विशेष रूप से काफी पॉपुलर थी जिसमें उन्होंने भारत का प्राचीन जल विज्ञान और उसके अनुमान के लिए विभिन्न कविताएं लिखी थी।

वर्षा को पहचानने के लिए बादलों की बनावट तीतर के पंख जैसी दिखने पर वर्षा होगी, इसका अनुमान गांव में बैठे लोग और किसान लगा लेते थे। सूर्य सुबह गर्म हो, दिन में उसका प्रकाश पीला हो और बादल ऊन जैसे या काले हो तो अच्छी वर्षा होगी।

तब गाय के खुर से बना गड्ढा वर्षा का सबसे छोटा मापक हुआ करता था, और इससे अनुमान लगाया जाता था कि कितनी वर्षा हुई है। भूजल का पता लगाने के लिए भौगोलिक विशेषताए दीमक के टीले, मिट्टी, वनस्पति, जीव, चट्टान व खनिज जैसे भूगर्भीय संकेत उपयोग किए जाते थे।

इस दौर में वर्षा के मापन के लिए विकसित यंत्रों के सिद्धांत आधुनिक जल विज्ञान के समान थे। मापन के लिए द्रोण, पल आदि के वजन का आधुनिक रैखिक माप की जगह यूज किया जाता था।

इसी प्राचीन ज्ञान को विश्व भर में पहुंचाने का प्रयास राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की द्वारा किया जा रहा है। प्राचीनतम सभ्यताओं की भिन्न-भिन्न जरूरतों की पूर्ति को जल एक विश्वसनीय स्रोत था। एनआईएचएच रुड़की के सतही जल विभाग के अनुसार वैदिक भारत से लेकर हड़प्पा सभ्यता तक के क्षेत्रों में जल संचयन, प्रबंधन, जलस्रोत को पलवित एवं पोषित करने के लिए मानवीय प्रयास रेखांकित करने का प्रयास किया गया है।

सही मायने में देखा जाए तो इस आधुनिक सिद्धांतों से दूर जो प्राचीन सिद्धांत थे। उनसे गांव के बुजुर्गों और किसानों को पता चल जाता था आगामी दिनों में कितनी बारिश होने वाली है। लेकिन जब से आधुनिक सिद्धांत आ गए हैं तो उससे और सहायता मिली है और पूर्वानुमान जो है वह अब सटीक नजर आता है। जिससे किसान अपनी पहले से ही तैयारी कर लेते हैं और अपने फसलों को भी सुरक्षित रखने में सफल हो जाते हैं।

                                                      

                                                  मोटापा भारत के लिए बन रहा है गंभीर खतरा

                                                 

भारत दो प्रमुख बीमारियों टाइप 2 डायबिटीज और और हाई ब्लड प्रेशर में वृद्धि से जूझ रहा है इस बीच मोटापे के बढ़ते मामलों ने चिंता बढ़ा दी है। मोटापे में वृद्धि ऐसे समय में हुई है जब लाखों भारतीय पारंपरिक आहार से वसायुक्त और परि खाद पदार्थों और अत्यधिक चीनी वाले पेय पदार्थों की ओर रुख कर रहे हैं।

मोटापा मध्यम और निम्न आय वाले देशों में भी प्रमुख चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इसका संबंध डायबिटीज ह्रदय रोग और कैंसर आदि है। लिसेंट गैस्ट्रोएंटरोलॉजी अपॉलॉजी में प्रकाशित आधुनिक अध्ययन के अनुसार, पिछले 2 दशकों के दौरान भारत में मोटापे का प्रसार दोगुनी गति हुआ है इससे गैर संचारी रोगों में वृद्धि हुई है।

मोटापा एक और महामारी शीर्षक वाले अध्ययन से पता चला है कि वैसे तो भारत ने प्राथमिक और निवारक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने में प्रगति है, लेकिन इसमें मोटापे को प्रमुख स्वास्थ्य चिंता नहीं समझा है।

इस पर कार्यवाही की जाने की आवश्यकता है और मोटापे को रोकने के लिए हर संभव कदम उठाने की जरूरत है।

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अहंकार त्याग ही सबसे बड़ी गुरु दक्षिणा

सात्विकता का भाव रोम-रोम में समाहित करते स्वतः ही योग्य गुरु से मिलन हो जाता है। सांसारिक लोभ में मन डूबा रहता है तो नकली गुरु से ही संबंध बन पाता है। बहुतेरे लोग गुरु के वेश में छल-कपट करने वालों का उल्लेख करते देखे जाते हैं। धर्म ग्रंथों में एकलव्य, राजा बलि तथा विन्ध्यपर्वत आदि का जिक्र आता है।

गुरु द्रोणाचार्य राजघराने के गुरु थे, इसलिए उन्होंने धनुर्विद्या सिखाने के लिए एकलव्य का गुरु बनने से इनकार किया। एकलव्य का संबंध भले ही राजघराने से नहीं था, लेकिन उनका मन सात्विक प्रवृत्तियों से सराबोर था। उनमें धनुर्विद्या की वही चाहत थी, जो कि अर्जुन में थी।

ऐसी स्थिति में एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास शुरू किया, और उन्हें अर्जुन से आगे निकलते देख गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अपनी गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य के दाहिने हाथ अंगूठा कटवा कर ले लिया।

अब जरा इसके निहितार्थ को समझना होगा, जहाँ अंगूठा अहंकार का प्रतीक है। अर्जुन को उत्तम धनुर्विद्या के ज्ञान के बावजूद, यदि अहंकार रहा होता तो महाभारत के महायुद्ध में श्रीकृष्ण को अपना विराट रूप ना दिखाना पड़ता। अर्जुन युद्ध में हतोत्साहित थे और हतोत्साहित मन से कोई निशाना नहीं लगाया जा सकता और न ही कोई लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

श्री कृष्ण ने जब अपना विराट रूप दिखाया तो अर्जुन को स्वयं ही कहना पड़ा कि मैंने अज्ञानतावश में यदि कुछ गलत कह दिया हो तो उसे क्षमा करिए, केशव।

गुरु के चरणों का महत्व राजा बलि को भी जब समझ में आया तो उन्हें लगा कि सात्विकता के चरण स्पर्श के बिना मन में विनम्रता नहीं आ सकती। बामन बने नारायण के चरण-स्पर्श से राजा बलि का अहंकार पाताल लोक में चला गया। ऐसी ही कथा विन्ध्यपर्वत की भी है।

अहंकार के चलते ज्ञान के सूर्य की गति जब बाधित हुई तो गुरु अगस्त के चरण स्पर्श से यह पर्वत वंदनीय बन गया। इन सभी कथाओं का आशय एक ही है कि सुपात्र बनते ही योग्य गुरु की कृपा स्वयं ही चल कर आ जाती है।

                                          धरती के गर्म होने के कारण बर्फबारी के स्थान पर बारिश

लॉरेन्स बर्कले प्रयोगशाला के अध्ययन में बताया गया, पानी की कमी से लेकर भयंकर बाढ़ तक का खतरा है आसन्न

                                                 

    वैशिवक तापमान के बढ़नें के कारण वर्तमान में पहाड़ो पर होने वाली बर्फबारी अब भारी में बदल चुकी है। इसके कारण लम्बे समय तक पानी की कमी होने के साथ ही खतरनाक बाढ़ दोनों के क्षतरे में व्द्वि हुई है। नेचर जर्नल में प्रकाशित लॉरेन्स बर्कले के द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह खुलासा किया गया है।

    इस अध्ययन के दौरान वैज्ञनिकों के द्वारा वर्ष 1950 से बारिश, बर्फ और जलवायु की कम्प्यूटरीकृत गणना कर अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन के मुख्य लेखक मोहम्मद ओम्बादी ने बताया कि इस अध्ययन में सामने आया कि एक डिग्री वेश्विक तापमान के बढ़ने से अत्याधिक ऊँचाई वाले स्थानों पर भारी वर्षा के होने की आशंका 15 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

    वैज्ञानिकों ने बताया कि पहाड़ों पर अधिक बर्फबारी की अपेक्षा भारी बारिश कहीं अधिक समस्याएं उत्पन्न कररती है। इससे बाढ़, भूस्खलन एवं भू-कटाव का खतरा बढ़ता है।

हिमालय के क्षेत्रों में बढ़ती बारिश

अध्ययन में उत्तरी गोलार्ध में गत छह दशकों के दौरान, प्रत्येक वर्ष भारी वर्षा देखी जा रही है। इससे ज्ञात होता है कि ऊँचाई के बढने के साथ ही बारिश की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी देखी गई है। बारिश में होने वाली यह बढ़ोत्तरी सबसे अधिक 10 हजार फीट अर्थात 3,000 मीटर पर देखी गई है।

प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति होगा प्रभावित

    शोधकर्ताओं ने बताया कि इस पृथ्वी पर प्रति चार व्यक्तियों में से एक व्यक्ति पहाड़ों के समीप रहता है, और ऐसे में उस व्यक्ति पर बारिश और बाढ़ का प्रभाव पड़ना तय है। वर्ष 2022 में, पहाड़ों से आने वाली बाढ़ से पाकिस्तान में 1,700 लोग मारे गए थे।

खाद्यान्न उत्पादन में भी हानि

      पर्वतों से आने वाली बाढ़ के परिणामस्वरूप धरती के खाद्यान्न उत्पादन में भी क्षति उठानी पड़ सकती है। ओम्बादी ने कैलिफोर्निया के कृषि विभाग के अनुमान की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस वर्ष की बारिश् से फसलों को भी व्यापक क्षति पहुँची है।

जुलाई के महीने में अच्छी बारिश की आशा

    एक ओर जून के महीने में जहाँ सामान्य से 10 प्रतिशत कम बारिश हुई है, वहीं मौसम विज्ञानियों के द्वारा जुलाई माह में अच्छी बारिश की सम्भावनाएं जताई हैं। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि जुलाई के महीने में सामान्य बारिश के सापेक्ष 94 से 106 प्रतिशत तक बारिश के होने का अनुमान है। जबकि जुलाई के महीने में सामान्य बारिश का मानक 280.4 मिमी का है।

    भातरीय मौसम विभाग के महानिदेशक डॉ0 मृत्युंजय महापात्र ने बताया कि जुलाई के महीने में मध्य भारत, र्पूोत्तर भारत, दक्षिणी भागों तक देश के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में सामान्य या सामान्य से अधिक वर्षा हो सकती है। जुलाई के महीने में देश के अधिकतर भागों में न्यूनतम और अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक बने रहने की सम्भावना है।

                                                      क्य सब कुछ बुरा ही हो रहा है?

    इंसान के दिमाग का नकारात्मक खबरों की ओर आवश्यकता से अधिक झुकाव होना अक्सर उसके अन्दर बेचैनी एवं अवसाद उत्पन्न करता है। 60 देशों के लोागें से जुड़े एक ताजे अध्ययन के अनुसार, अधिकतर लोगों का मानना है कि हम नैतिक रूप से नीचे गिर रहे हैं।

                                                        

इंसान के अन्दर दया, करूणा एवं ईमानदारी के मूल्य कम होते जा रहे हैं और यह सोच पिछले 70 वर्षों से चली आ रही है। जबकि यह भी एक सत्य है कि हम अपने आस-पास अच्छे लोगों को ही अधिक संख्या में पाते हैं।

    वहीं एक अन्य अध्ययन के अनुसार, अजनबियों एवं सामाजिक रूप से एक-दूसरे की मदद करने की भावना पहले से बेहतर हुई है। असल में, मानव मस्तिष्क नकारात्मक खबरों को प्राथमिकता प्रदान करता है। यह सही है कि भविष्य के खतरों का अनुमान लगाते हुए ही हमें अपनी योजनाएं बनानी चाहिए, परन्तु हमें निरंतर स्वयं को असुरक्षित अनुभव भी नही करना चाहिए। लगातार ऐसा सोचने से हम एंजाईटी या डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं।

    अतः वास्तविकता को देखना भी उतना ही आवश्यक है। साइकोलॉजी टुडे द्वारा प्रकाशित एक लेख में हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर स्टीवन पिंकर के अनुसार, इस पृथ्वी पर मानव का जीवन कभी भी पूरी तरह से सुरक्षित, स्वस्थ एवं सहयोगी नही रहा है।

    अगर आँकड़ों को देखा जाए तों वर्तमान में वैश्विक स्तर पर गरीबी की दर में कमी आई है, शिशु मृत्यु दर कम हुई है, लोग पहले की अपेक्षा अधिक शिक्षित और मानव अधिकारों के प्रति अधिक सजग एवं आजादीभरा जीवन जी रहे हैं।

    तनाव के स्तर को कम करने के लिए ध्यान दें कि आप किस प्रकार की खबरों को देखना अधिक पसंद करते हैं और यदि वे नकारात्मक अधिक है तो उन पर कंट्रोल करें। दूसरा, बाजार के पीछे चलने के स्थान पर सजगतापूर्वक अपना ध्यान आवश्यक लक्ष्यों की ओर लेकर जाएं, तीसरा और सबसे आवश्यक है कि सकारात्मक विषयों के बारे में अधिक से अधिक पढ़ने का प्रयास करें।