गाजर घास के उन्मूलन के लिए उसका प्रबंधन      Publish Date : 16/08/2023

                                                                गाजर घास के उन्मूलन के लिए उसका प्रबंधन

                                                                                                                                          प्रोफेसर, आर. एस. सेंगर एंव अन्य

                                                          

गाजर घास जिसको पारथेनियम हिस्टोरोफोरस को अन्य स्थानीय नाम जैसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी और गंदी बूटी आदि के नामों से भी जाना जाता है। यह एसटीरेसी कमपोजिटी कुल का एक पौधा है। इस पौधे की मूल उत्पत्ति का स्थान मेक्सिको, अमेरिका, त्रिनिदाद एवं अर्जेंटीना माना जाता है। भारत में सर्वप्रथम गाजर घास, पुणे महाराष्ट्र में 1956 में दिखाई दी थी।

ऐसा माना जाता है कि हमारे देश में इसका प्रवेश 1955 में अमेरिका से आयात किए गए गेहूं के साथ हुआ था, परंतु अल्पकाल में ही गाजर घास हमारे पूरे देश में एक भीषण प्रकोप की तरह लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर फैल चुकी थी। विश्व में गाजर घास भारत के अलावा 38 अन्य देशों जैसे अमेरिका, मेक्सिको, वेस्टइंडीज, नेपाल, चीन, वियतनाम और आस्ट्रेलिया आदि देशों के विभिन्न विभागों में भी फैली हुई है।

कैसी होती है गाजर घास

                                                       

यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है जिसकी लंबाई लगभग 1.5 से 2.0 मीटर तक हो सकती है। इसका तना रोहिदास एवं अत्यधिक शाखाओं से युक्त होता है। इसकी पत्तियां गाजर की पत्ती की तरह नजर आती है,ं जिन पर सूक्ष्म रोएं उपस्थित रहते हैं। इसका प्रत्येक पौधा लगभग 5000 से 25,000 अत्यंत सूक्ष्म से बीज पैदा कर सकता है, इसके बीजों में सुस्त अवस्था के नहीं होने के कारण बीज जमीन में गिरने के बाद नमी पाकर पुनः अंकुरित हो जाते हैं। गाजर घास का पौधा लगभग 3 से 4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है। अतः इस प्रकार यह एक वर्ष में अपनी दो से तीन पीढ़ी पूरी कर लेता है, क्योंकि यह पौधा प्रकाश एवं तापक्रम के प्रति उदासीन होता है, अतः यह पूरे वर्ष भर उगता एवं फलता फूलता रहता है।

कहां होती है गाजर घास

गाजर घास का पौधा लगभग हर प्रकार के वातावरण में उगने की अभूतपूर्व क्षमता रखता है। इसके बीज प्रकाश अथवा अंधकार दोनों ही परिस्थितियों में समान रूप से अंकुरित होते हैं। प्रायः हर प्रकार की भूमि चाहे वह अम्लीय भूमि हो या क्षारीय में उत्पन्न हो सकता है, इसलिए गाजर घास के पौधे समुद्र तट के किनारे एवं मध्यम से कम वर्षा वाले क्षेत्रों के साथ-साथ जलवायु, धान एवं पथरीली क्षेत्रों की सूखी फसलों में भी देखने को मिलती हैं। इसके साथ ही समान रूप से गाजर घास के पौधे खाली स्थानों, अनुपयोगी भूमियों, औद्योगिक क्षेत्रों, सड़क के किनारों एवं रेलवे लाइनों आदि के आसपास प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा इसका प्रकोप विभिन्न प्रकार की खाद्यान्न, दलहनी, तिलहनी फसलों के साथ ही सब्जियों एवं उद्यानिकी की फसलों में भी प्रायः देखने को मिलता है।

कैसे फैलती है या गाजर घास

                                                        

भारत में गाजर घास का फैलाव संचित से अधिक असंचित भूमि में देखा गया है, गाजर घास का प्रसार फैलाव एवं वितरण मुख्यतया इसके अतिसूक्ष्म बीजों के द्वारा होता है। इसके बीज अत्यंत सूक्ष्म हल्के और पंखदार होते हैं। यह सड़क और रेल मार्गों पर होने वाली यातायात सम्बन्धी होने वाली सामान्य गतिविधियों के कारण अब यह संपूर्ण भारत में आसानी से फैल चुकी है। नदी, नालों और सिंचाई के पानी के माध्यम से भी गाजर घास के सूक्ष्म बीज एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुंच जाते हैं और यही कारण है कि गाजर घास पूरे देश में लगातार फैलती चली जा रही है और यह धीरे-धीरे एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में देश के सामने आ रही है।

गाजर घास से होने वाली हानियां

                                                            

इस गाजर घास के लगातार संपर्क में रहने से मनुष्यों में डर्मेटाइटिस, एग्जिमा, बुखार और दमा आदि जैसी बीमारियां हो जाती है, जबकि पशुओं के लिए भी गाजर घास अत्यंत विषाक्त होती है और इसके खाने से पशुओं में अनेक प्रकार के रोग पैदा हो जाते हैं। पशुओं के द्वारा गाजर घास का सेवन किए जाने से दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट के साथ-साथ दूध उत्पादन में भी कमी आने लगती है। इस खरपतवार द्वारा खाद्यान्न फसलों की पैदावार में लगभग 40 प्रतिशत तक की कमी आंकी गई है। गाजर घास पौधे के रासायनिक विश्लेषण से पता चलता है कि इसमें सेसकयूटरपिन लैक्ट्रोन नाम का एक विषाक्त पदार्थ पाया जाता है, जो फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

कैसे पाये इस पर नियंत्रण

चूँकि गाजर घास में हर ऋतु में अंकुरण करने की क्षमता होती है, अतः इसके नियंत्रण के लिए समन्वित तरीके अपनाकर ही इसका प्रबंधन किया जाए तो इस पर काबू किया जा सकता है।

खरपतवार के प्रसार एवं उसके फैलाव को रोकने हेतु अपने नगर एवं राज्य स्तर पर कानून बनाकर उचित दंड का प्रावधान कर इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। सभी राज्यों को गाजर घास को अधिनियम के अंतर्गत रखकर, उसके प्रबंधन की प्रक्रिया युद्ध स्तर पर करनी होगी, तभी इस पर नियंत्रण किया जा सकता है।

विभिन्न शाकनाशियों का प्रयोग करने से इस खरपतवार का नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है। इन शाकनाशियों में एला-क्लोर, डायग्राम, मेट्रिब्यूज़ीन, 2, 4-डी और ग्लाइकोसेट आदि प्रमुख है। जिन क्षेत्रों में खेती बाड़ी का काम कम होता है और जमीन बंजर पड़ी रहती है, उन क्षेत्रों में गाजर घास के साथ सभी प्रकार की वनस्पतियों को नष्ट करने के लिए ग्लाइकोसेट 1 से 1.5 प्रतिशत, अन्य घास कुल की वनस्पतियों को बचाते हुए केवल गाजर घास को नष्ट करने के लिए मेट्रिब्यूज़ीन 0.30 से 0.50 प्रतिशत या 2, 4-डी की 1 से 1.5 प्रतिशत तक मात्रा में इन शाकनासियों का उपयोग करना चाहिए।

                                                          

गाजर घास का नियंत्रण उनके प्राकृतिक शत्रु मुक्त-कीटों, रोग के जीवाणुओं एवं वनस्पतियों द्वारा किया जा सकता है। मैक्सिकन बीटल, जिसको जागो ग्रामर बाइक को लोरेटा नामक केवल गाजर घास को ही खाने वाले कीट को गाजर घास से ग्रसित स्थान पर छोड़ देना चाहिए। इस कीट के लारवा और वयस्क पत्तियों को चूसकर गाजर घास को सुखाकर मार देते हैं। इस किट के लगातार आक्रमण के कारण धीरे-धीरे गाजर घास कम हो जाती है और इससे उस स्थान पर उपलब्ध अन्य वनस्पतियों को पनपने का मौका मिल जाता है और यह कीट खरपतवार अनुसंधान निदेशालय से भी प्राप्त किया जा सकते हैं।

नम भूमि में इस खरपतवार को फूल आने से पहले ही हाथ से उखाड़ कर इकट्ठा करके जला देने अथवा इसका कंपोस्ट बनकर काफी हद तक इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसे उखाड़ते समय हाथ में दस्तानों तथा सुरक्षात्मक कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए, क्योंकि गाजर घास एक व्यक्ति की समस्या न होकर आम जनमानस की समस्या है। अतः पार्कों एवं कॉलोनी आदि में निवास करने वाले लोगों को एकसाथ मिलकर इसे उखाड़ कर अथवा अन्य विधियों के माध्यम से इसे नष्ट कर देना चाहिए।

    गाजर घास की प्रतिस्पर्धी वनस्पतियों जैसे चाकोड़ा गिफ्ट्स और जंगली चौलाई आदि से गाजर घास को आसानी से विस्थापित किया जा सकता है। अक्टूबर-नवंबर माह में चाकोड़ा के बीज इकट्ठा कर उनका अप्रैल में में गाजर घास से ग्रसित स्थान पर छिड़काव कर देना चाहिए वर्षा आने पर शीघ्र ही वहां चाकोड़ा होकर गाजर घास को धीरे-धीरे पूरी तरह से विस्थापित कर देता है।

गाजर घास के क्या है संभावित उपयोग

                                                     

गाजर घास के पौधे की लुगदी से हस्त निर्मित कागज, पार्टिकल बोर्ड एवं कंपोस्ट तैयार किए जा सकते हैं। बायोगैस का उत्पादन करने के दौरान इसको गोबर के साथ मिलाया जा सकता है। गरीब एवं झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोग, इसका प्रयोग एक ईंधन के रूप में भी करते हैं। किसान भाई इसका उपयोग कर एक बहुत अच्छा कंपोस्ट बनाने में भी कर सकते हैं।

इस प्रकार से तैयार कम्पोस्ट खाद में अनेक पौष्टिक तत्व जैसे नाइट्रोजन, पोटेशियम और फॉस्फोरस आदि गोबर की खाद से ज्यादा होते हैं, इसलिए जब भी कम्पोस्ट खाद बनाएं तो इसको एक गड्ढे में दबा दें और इसकी कंपोस्ट बनाने की कोशिश करें। यह कंपोस्ट फसल के लिए काफी लाभकारी साबित होगी और इसके बीज भी कंपोस्ट तैयार करते समय खत्म हो जाएंगे और वह खेत में जाकर अंकुरण नहीं कर सकते। इसलिए सबसे अच्छा तरीका है कि गाजर घास को उखाड़कर गड्ढों में दबाकर कंपोस्ट तैयार कर लेना चाहिए।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।

डिस्कलेमरः उपरोक्त विचार लेखक के अपने विचार हैं।