पर्यावरण समाचार: प्लास्टिक का उत्पादन कम नही हुआ तो बढ़ेगा तापमान

             प्लास्टिक का उत्पादन कम नही हुआ तो बढ़ेगा तापमान

प्लास्टिक का उत्पादन कम नही किया गया तो तापमान कहीं अधिक बढ़ सकता है। वास्तविकता तो यह ह कि प्लास्टिक के उत्पादन के चलते कार्बन उत्सर्जन की दर तीन गुना से अधिक होने की आशंका बढ़ गई है। पृथ्वी दिवस मनाने से पूर्व ही यह चिंताजनक पहलू एक रिपोर्ट के माध्यम से उजागर हुआ है। इव वर्ष मनाए जाने वाले पृथ्वी दिवस की थीम ‘‘प्लेनेट वर्सेस प्लास्टिक’’ निर्धारित की गई है।

                                                                        

इस थीम का उद्देश्य प्लास्टिक के माध्यम से उत्पन्न खतरे के प्रति आमजन को जागरूक करना है। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि आने वाले तीन दशकों में लगभग 1700 कोयला संयंत्रों के बराबर (6.78 गीगाटन) कार्बन उत्सर्जित होगा। इन परिस्थितियों में यदि प्लास्टिक की दर में कमी नही की गई तो धरती के तापमान का स्तर 1.5 डिग्री सेल्सियस तक की सीमा बनाए रखने की स्थिति प्रभावित होगी। अमेरिका की लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी के द्वारा यह अध्ययन किया गया है।

जारी की गई इस रिर्पोट के अनुसार, वर्ष 2019 में प्लास्टिक के उत्पादन से लगभग 2.24 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन हुआ, जो कि दुनिया के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 5.3 प्रतिशत रहा। इस समय दुनिया भर में 43 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है। इसमें से 79 प्रतिशत प्लास्टिक लैंडफिल या प्रकृति में संचित हो जाता है। 99 प्रतिशत से अधिक जीवाश्म ईंधन के माध्यम से उत्पन्न किया जाता है।

तेल उत्पादन का लगभग 4-8 प्रतिशत भाग का उपयोग प्लास्टिक बनाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार से देखें तो वर्ष 2050 तक यह आंकड़ा 20 प्रतिशत तक बढ़ जाने का अनुुमान है। ऐसे में यदि पेरिस समझौते के निर्धारित लक्ष्य को बचाना है तो प्लास्टिक के उत्पादन में 12 से लेकर 17 प्रतिशत तक की कमी लानी ही होगी।

भारत में है 34 लाख टन प्लास्टिक का कचरा

स्विस संस्था ईए- अर्थ एक्शन की प्लास्टिक ओवरशू टडे की रिर्पोट में कहा गया है कि वर्ष 2021 के बाद से दुनिया भर में प्लास्टिक अपशिष्ट के उत्पादन में 7.11 प्रतिशत की वृद्वि दर्ज की गई है। भारत अपने प्लास्टिक अपशिष्ट में व्यापक सुधार करते हुए अब 95वें स्थान पर पहुँच गया है, जबकि इससे पहले भारत इस सूचि में चौथे स्थान पर था। भारत में प्रतिवर्ष करीब 34 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है।

समुद्री जीवों पर 88 प्रतिशत होगा इसका प्रभाव

                                                                         

प्लास्टिक प्रदूषण से 88 प्रतिशत समुद्री जीव प्रभावित होते हैं। इससे पारिस्थितिक तंत्र का भी हनन होता है। प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण मानव जाति के स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक ही होता है। इसके चलते लोगों में फेफड़ें और रक्त कैंसर होने की आशंका काफी बढ़ जाती है। इसके साथ ही यह भी एक चिंताजनक स्थिति है कि मानव शरीर में भी घातक प्लास्टिक के कण मौजूद पाए गए हैं।