जलवायु परिवर्तन और प्रचंड़ गर्मी      Publish Date : 19/04/2024

                       जलवायु परिवर्तन और प्रचंड़ गर्मी

                                                                                                                                                                 प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

‘‘जलवायु परिवर्तन के चलते गर्मी का कहर बढ़़ा, प्रचंड लू की मार से जीवन पर भी पड़ता है असर’’

                                                                                 

देश में होने वाले लोकतंत्र के चुनाव जैसे-जैसे पास आते जा रहे हैं उसी हिसाब से सियासी तापमान भी बढ़ रहा है। इससके साथ ही पूरे देश में जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी का प्रकोप बढ़ता चला जा रहा है, जिसके कारण देश के कई हिस्से प्रचंड गर्मी के कारण प्रभावित हो रहे हैं। सभी पार्टियां अपने-अपने मुद्दों को लेकर लोगों के सामने आ रही हैं, लेकिन कोई भी जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य की चुनौतियों और उसके समाधान को लेकर लोगों से अपनी बात नहीं रख रहे हैं।

दुनिया में विकास के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के कारण भीषण गर्मी के साथ अनियमित और चरम मौसमी घटनाओं का प्रभाव जो पड़ता है इसके बारे में भी चर्चा की जानी चाहिए। तेज गर्मी और लू के कारण मजदूरों, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, मजदूर मजदूरी करने के लिए गर्मियों के दिनों में बाहर जाते हैं। किसान, श्रमिक, रेहड़ी और पटरी पर व्यापार करने वालों से लेकर डिलीवरी बॉय तक सभी गर्मी के कारण अधिक प्रभावित होते हैं और इसका सीधा प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था, कृषि, भोजन तथा पोषण आदि सब पर ही पड़ता है।

चाहे वह कोई भी राजनीतिक दल क्यों न हो वह चुनावी मौसम में गरीबों की बात तो करता है लेकिन कितने राजनेता सार्वजनिक रूप से मानते हैं कि गर्मी बेशक हर किसी को प्रभावित करती है लेकिन यह सबको समान रूप से प्रभावित नहीं करती। देश के लाखों गरीब, जो हमारी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा है, वह अनुकूलित घरों या पर्याप्त हरियाली वाले हरे भरे इलाकों में नहीं रहते हैं। वह घरों के अंदर नहीं रह सकते जैसी कि गर्मी के बढ़ने पर अक्सर सलाह दी जाती है कि लोग कम से कम बाहर निकले या फिर बर्फ वाला शीतल पानी नहीं पी सकते या लंबे समय तक छांह में नहीं रह सकते।

                                                                      

वह घरों के बाहर काम करते हैं इसलिए वह सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। गहरी असमानताओं वाले हमारे देश में अत्यधिक गर्मी का लोगों पर अलग-अलग प्रभाव देखा जाता है, लेकिन जिन्हें चिलचिलाती गर्मी में बाहर रहकर काम करना पड़ता है, उन गरीबों और श्रमिकों के लिए क्या किया जाएगा। इस पर राजनेताओं के बीच कोई चर्चा नहीं हो पा रही है और ना इसके बारे में कोई बात की जा रही है। केवल एक दूसरे पर मुख्य मुद्दों से हटकर बातें हो रही हैं जो की एक बहुत ही शर्मनाक बात है।

पिछले दिनों क्लाइमेट कंटेनर अविनाश चंचल ने इस पर कुछ कटु सच्चाइयों को उजागर किया था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरौ के द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में गर्मी के कारण 530 मौतें हुई। वर्ष 2021 में 374 मौतें हुई और वर्ष 2022 में 730 मौतें हुई। जैसा कि चंचल ने आगे बताया था फिर भी लू कोई राष्ट्रीय आपदा नहीं है। हालांकि हमारे देश में हीट एक्शन प्लान लागू किया जा चुका है लेकिन इससे जुड़ी सेवाओं के लिए केंद्र सरकार की ओर से कोई विशेष फंड जारी नहीं किया गया है।

माना जाता है कि देश में लू के कारण मरने वालों की संख्या इसमें बहुत ज्यादा हो सकती है क्योंकि बहुत सी ऐसी मौतों भी हैं जिनकी सूचना विभिन्न कारणवश दर्ज ही नहीं हो पाती है। सीआरबी ने प्राकृतिक कर्म से दुर्घटनाओं के तहत 860 मौतों की सूचना प्रकाशित की है, जिनमें से 35.8 प्रतिशत मौतें आकाशीय बिजली गिरने से 9.01 प्रतिशत मौतें लू या भीषण गर्मी से और 8.9 प्रतिशतः मौते ठंड के कारण बताई गई है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह दुर्घटनाओं के कारण होने वाली आकस्मिक मौतें हैं या फिर इन को टाली जा सकतां हैं, और क्या इन लोगों को बचाया जा सकता था। अत्यधिक गर्मी या लू से होने वाली मौतें महज अनायास ही नहीं है, यह वहीे वास्तविक लोग थे जिनका अपना परिवार था। यही नहीं गर्मी से संबंधित मौतें पूरी कहानी नहीं बतायी जाती है क्योंकि अत्यधिक गर्मी अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को भी अधिक जटिल बना देती हैं फिर चाहे भले ही उससे मौत ना हो। इस स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस साल भारतीय मौसम विभाग ने 1 अप्रैल को ही चेतावनी जारी कर दी थी।

                                                               

आईएमडी द्वारा जारी चेतावनी से इस बार गर्मी में बढ़ते तापमान का पता चलता है, जिससे कई इलाकों में घातक लू की स्थिति भी हो सकती है। हाल ही में आईएमडी ने हीट इंडेक्स लॉन्च किया है, जो उच्च तापमान पर आद्रता के प्रभाव के बारे में सूचना देता है और इस तरह से मनुष्य को ऐसे तापमान का एहसास कराता है जिसे मानव के लिए अशुद्ध के संकेत के रूप में देखा जाता है। यह काम करने के लिए अतिरिक्त देखभाल की जरूरत को रेखांकित है लेकिन यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि एक ही शहर के भीतर सभी क्षेत्रों में समान रूप से गर्मी महसूस नहीं की जाती है।

ऐसे में जिन इलाकों में बहुत से पेड़ और हरियाली होती है वहां पर वातावरण   अपेक्षाकृत ठंडा महसूस होता है। वनस्पतियां इन इलाकों से जहां पेड़ कम होते हैं और इमारतें ज्यादा होती हैं।

विभिन्न तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे बुजुर्ग और छोटे बच्चों के सीधे धूप के सर्म्पक में न जाने के बावजूद गर्मी पड़ने पर भी उनके बीमार पड़ने की आशंका ज्यादा होती है। यदि घरों में वेंटीलेशन नहीं है और घर की संरचना कमजोर है और स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता भी ठीक नहीं है तो ऐसे घरों के अंदर रहना भी हमेशा सुरक्षित नहीं होता है। जिन लोगों को लू लग जाती है उनके लिए यह जानना जरूरी है कि कौन सी चीज उन्हें असुरक्षित बनाती है और क्या होता है जब गर्मी की प्रतिक्रिया में शरीर को ठंडा रखने के लिए हृदय ज्यादा से ज्यादा रक्त पंप करने लगता है। लू लगने पर लोगों को पसीना अधिक आने लगता है और शरीर में तेजी से पानी की कमी होने लगती है और ऐसी स्थिति में हृदय, फेफड़े और किडनी आदि के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है।

ऐसे में सोचिए कि उन लोगों के साथ क्या होता होगा जो ऐसी जगह पर काम करते हैं जहां लंबे समय तक बिजली नहीं रहती। इन लोगों के पास बैकअप इनवर्टर भी नहीं होता और यह लोग एयर कंडीशनर का खर्च नहीं उठा सकते। आद्रता वाले इलाकों में एयर कूलर भी काम करता है भले ही किसी क्षेत्र में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से कम हो, लेकिन स्वास्थ्य के लिए खतरा वहां की आद्रता पर निर्भर करेगा। उच्च आद्रता पसीनो को निकालने नहीं देती और शरीर को ठंडा होने से रोकती है जबकि इससे कम आद्रता वाले स्थानों की तुलना में लू का खतरा ज्यादा हो सकता है।

                                                                            

भारत के कई शहरों और राज्यों के पास हीट एक्शन प्लान है। सबसे पहले वर्ष 2013 में अहमदाबाद नगर निगम और उसके साझेदारों ने वर्ष 2010 की विनाशकारी गर्मी के बाद इसकी पहल की थी। जिससे उस समय 1,344 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। उस समय से कई भारतीय शहरो ने अपना हीट एक्शन प्लान तैयार किया था जो एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य करता है। लेकिन अत्यधिक लू का सामना करने के लिए गरीबों को जरूरत पड़ने पर समर्थन एवं चिकित्सा बल की अधिक आवश्यकता है। ऐसे में केवल चेतावनी प्रणाली भर से ही काम नहीं चलने वाला नही है। इसलिए इस प्रचंड गर्मी से निपटने के लिए सही समय पर सही उपाय की जाने चाहिए, जिससे जो श्रमिक एवं किसान गर्मी के दिनों में अपने खेतों में कार्य करने के लिए मजबूर होते हैं उनको भी इस लू के कहर से बचाया जा सके।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।