
अधिक तापमान को सहन करने वाली अरहर की प्रजाति Publish Date : 10/06/2025
अधिक तापमान को सहन करने वाली अरहर की प्रजाति
प्रोफेसर आ. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
दुनिया की पहली अत्यधिक गर्मी सहने वाली अरहर की प्रजाति को विकसित कर लिया गया है। अब 45 डिग्री तापमान में भी होगी अरहर की अच्छी पैदावार, दलहन के किसानों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। अंतर्राष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) के वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली गर्मी-सहिष्णु अरहर की किस्म ICPV 25444 विकसित की है, जो तेज गर्मी, यहां तक कि 45 डिग्री सेल्सियस में भी बेहतर उत्पादन प्रदान करती है और यह केवल 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
यह नई किस्म कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना में सफलतापूर्वक परीक्षणों में प्रति हेक्टेयर 2 टन उपज देने में सक्षम रही है। अब किसान अरहर को केवल खरीफ नहीं, बल्कि गर्मियों के मौसम में भी आसानी से उगा सकते हैं क्योंकि पहले बढ़ते हुए तापमान में यह संभव नहीं था।
अब अरहर सभी मौसमों की फसल
अब तक अरहर की खेती केवल एक निश्चित मौसम तक ही सीमित थी, क्योंकि यह दिन की लंबाई और तापमान के प्रति संवेदनशील हुआ करती थी। लेकिन अब अरहर की नई किस्मे ICPV 25444 ने इस धारणा को तोड़ दिया है। यह किस्म फोटो और थर्मा-संवेदनशील नहीं है, यानी यह दिन की लंबाई और तापमान से प्रभावित नहीं होती है।
गर्मी के मौसम में अरहर की खेती की यह उपलब्धि अब यह दर्शाती है कि जब विज्ञान उद्देश्यपूर्ण तरीके से काम करे, तो किसानों की मुश्किलें आसान हो सकती हैं। इसके सम्बन्ध में ICRISAT के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा, ‘‘यह किस्म देश में दालों की कमी को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकती है।’’
स्पीड ब्रीडिंग से 15 साल का काम 5 साल मेंICRISAT की स्पीड ब्रीडिंग तकनीक की मदद से इस किस्म को तैयार किया गया है, जो कि 2024 में विकसित की गई थी। इस तकनीक की सहायता से वैज्ञानिक साल में चार बार अरहर की फसल तैयार कर सकते है, जिससे किसी भी किस्म को विकसित करने का समय 15 वर्ष से कम होकर अब केवल 5 वर्ष ही रह गया है।
‘‘स्पीड ब्रीडिंग की वजह से हमने एक दशक का कार्यकाल कुछ ही वर्षों में पूरा किया,’’ यह कहना है डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड, डिप्टी डायरेक्टर जनरल (अनुसंधान एवं नवाचार), ICRISAT का।
डॉ. प्रकाश गंगाशेट्टी और उनकी टीम ने 4 इंच के गमलों में करीब 18,000 पौधे प्रति सीजन उगाए, जिससे सीमित जगह में अधिक बीज का उत्पादन संभव हो पाया। इसके साथ ही सीड-चिपिंग जीनोमिक तकनीक से गुणवत्तापूर्ण बीज का चयन भी तेज हुआ है।
भारत की दालों की कमी होगी पूरी
भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 3.5 मिलियन टन अरहर का उत्पादन होता है, जबकि इसकी मांग 5 मिलियन टन से अधिक है। मांग और आपूर्ति की इस कमी को पूरा करने के लिए देश को हर साल लगभग 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर मूल्य की दालें आयात करनी पड़ती हैं। ICPV 25444 के आने से दोहरी रणनीति से उत्पादन बढ़ाया जा सकता हैः
- खरीफ में ज्यादा उपज देने वाली किस्मों से उत्पादन में वृद्धि।
- रबी और गर्मियों में सिंचाई योग्य खेतों में विस्तार, जैसे कि धान के कटाव वाले खेत (Rice Fallows)A
पिछड़े सिंचाई क्षेत्रों (Tail-end command areas) जैसे स्थानों में, जहां आमतौर पर धान-धान या धान-मक्का जैसी फसलें ली जाती हैं, और दूसरी फसल में नमी की कमी होती है, वहां अरहर की इस किस्म से ₹20,000 प्रति हेक्टेयर तक का अतिरिक्त लाभ हो सकता है।
कर्नाटक के किसानों की राय
बागलकोट, कर्नाटक में हुए फील्ड ट्रायल्स में किसानों ने ICPV 25444 को गर्मियों में लगाया और इसे लेकर उत्साहजनक परिणाम मिले।
किसान हनुमंता मिरजी और बसवराज घंटी ने गाढ़ी बुआई (High-Density Planting) तकनीक अपनाई और फसल की अच्छी बढ़वार प्राप्त की।
‘‘अरहर की यह किस्म गर्मी में अरहर की खेती के लिए वरदान है। चार महीने में फसल तैयार हो जाती है, और किसी प्रकार की बीमारी या कीट नहीं दिखे। इससे हम अगली गर्मियों में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकेंगे।
‘‘बागलकोट में खरीफ के मौसम में ही अरहर खेती की जाती थी। लेकिन अब यह किस्म गर्मियों में भी सफल हो रही है।
भारत से वैश्विक स्तर तक विस्तार
ICRISAT अब 13,000 अरहर की किस्मों की जीन बैंक से वैश्विक विविधता पैनल तैयार कर रहा है। इसका उद्देश्य है कि भारत में बनी यह तकनीक अब एशिया, अफ्रीका, ब्राज़ील, इक्वाडोर और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी किसानों के लिए उपयोगी साबित हो।
“हम स्पीड ब्रीडिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से जलवायु-लचीली अरहर की नई पीढ़ी तैयार कर रहे हैं,” - डॉ. सीन मेयस, ग्लोबल रिसर्च प्रोग्राम डायरेक्टर, एक्सेलरेटेड क्रॉप इम्प्रूवमेंट, ICRISAT ।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।