मूंगफली का बीज उत्पादन      Publish Date : 06/05/2025

                       मूंगफली का बीज उत्पादन

                                                                                                       प्रोफेसर आ. एस. सेगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

मूंगफली खरीफ वर्षा ऋतु में उगाई जाने वाली एक प्रमुख तिलहनी फसल है, जिसका हमारी आहारशैली में मुख्य स्थान है। खाद्य तेल 20 ग्राम/व्यक्ति/दिन की उपलब्धता आवश्यक होती है जबकि वर्तमान में खाद्य तेल वास्तविक उपलब्धता काफी कम है। अतः दैनिक जीवन में तेल के महत्व को देखते हुए यह आवश्यक है कि मूंगफली की पैदावार बढ़ाई जाए। अच्छी पैदावार के लिए अच्छे व उन्नत बीजों का होना अति आवश्यक है। उन्नत बीजों की बुवाई करने से पैदावार 15-20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

मूंगफली एक स्वपरागित फसल है। यदि किसान उन्नत तरीकों को अपनाकर बीज उत्पादन करें तो बीजों पर बार-बार होने वाले खर्च से बचकर उत्पादन लागत में कटौती कर सकते हैं व आर्थिक लाभ भी कमा सकते हैं। इसके लिए उन्हें कुछ बातों का भी ध्यान रखना जरुरी है।

भूमि/खेत का चयनः मूंगफली के बीज उत्पादन के लिए उचित जल निकास वाली भुरभुरी बलुई दोमट या दोमट मिट्टी, जिसमें जैव पदार्थों की अच्छी मात्रा उपलब्ध हो, उपयुक्त होती है। अम्लीय या क्षारीय भूमि इसके लिए उपयोगी नहीं राहती। बहुधा, फसल खुदाई के समय काफी बीज खेत में गिर जाते हैं और इसमें से काफी बीज अगले मौसम में स्वैच्छिक तौर पर उग आता है। अतः बीज उत्पादन के लिए ऐसे खेतों का चयन करना चाहिए, जिनमें पिछले 2-3 मौसम में मूंगफली की फसल नहीं ली गई हो। इसका मुख्य कारण स्वैच्छिक पौधों से होने वाले संदूषण को रोकना है।

खेत भूमि जनित बीमारियों व कीड़ों से रहित तथा समतल होना चाहिए। खेत की अच्छी जुताई करनी चाहिए जिससे बीज अच्छी तरह से अंकुरित हो सके व खरपतवार नष्ट हो जा सके। किसानों को सिंचाई की सुविधा के समीप वाली जमीन का चयन करना चाहिए, जिससे सूखे की स्थिति होने पर भी बीज की गुणवत्ता एवं उत्पादन प्रभावित न होने पाएं।

किस्में:- मूंगफली को उसके आकार एवं दाने लगने के आधार पर दो भागों में बांटा जा सकता है। झुमका, अर्द्धविस्तारी एवं विस्तारी।

                                        

झुमका किस्में: भारी मिट्टी के लिए उपयुक्त इन किस्मों में फलियां मुख्य जड़ के पास लगती है तथा इनका दाना गुलाबी या लाल रंग का होता है। इनकी पैदावार फैलने वाली किस्मों की तुलना में कम होती है परंतु ये कम अवधि (110-130 दिन) वाली होती है। भारी मृदाओं के लिए उपयुक्त, फलियां मुख्य जड़ के पास लगती है।

वर्तमान में मूंगफली की प्रचलित झुमका किस्में इस प्रकार है- आरजी 141, टीजी 37 ए, जे एल 24, जी जी-2, एस वी-11 और टी ए जी 24 आदि। इन किस्मों में सुसुप्त अवस्था का अभाव रहता है। अतः पकने के तुरंत बाद इनकी फलियों को जमीन से खुदाई करके निकाल लेना चाहिए अन्यथा नमी की उपस्थिति में इनके बीज पुनः अंकुरित हो जाते हैं।

फैलने वाली किस्में: अर्द्ध विस्तारी एवं विस्तारी किस्में इस श्रेणी में आती है। रेतीली मृदाओं के लिए उपयुक्त इन किस्मों के पौधों की खेती की जाती है। इन किस्मों की शाखाएं फैल जाती हैं तथा मूंगफली दूर-दूर लगती हैं और इनका दाना हल्का होता है। ये किस्में लम्बी अवधि (120-150 दिन) वाली एवं अधिक पैदावार देने वाली तथा रेतीली मृदाओं के लिए अधिक उपयुक्त होती है। वर्तमान में मूंगफली की प्रचलित फैलने वाली किस्में इस प्रकार हैं- आरजी-382 (दुर्गा), एच.एन.जी.-10, एम-13, चन्द्रा, आर.एस.-138, एम.ए.-10 (चित्रा) आदि प्रमुख हैं।

शुरु में आधार बीज या प्रमाणित बीज राष्ट्रीय बीज प्राधिकरण, राज्य बीज प्राधिकरण, कृषि विश्वविद्यालयों या अन्य मान्यता प्राप्त संस्था से ही प्राप्त करें। मूंगफली के बीज का जमाव 70 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए। बीज में किसी भी प्रकार का अवांछनीय/अनैच्छिक खरपतवारों के बीज नहीं होना चाहिए। यदि बीज पहले उपचारित न किया गया हो तो बीज को उचित रसायन उपचारित करने के पश्चात बुवाई करनी चाहिए।

बीजोपचारः- अधिकतर बीज उपचारित ही प्राप्त होता है लेकिन यदि बीज उपचारित न हो तो बोने से पहले बीज को उपचारित कर लेना चाहिए। इससे बीजों की अंकुरण क्षमता अच्छी होती है। मूंगफली के बीजों को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 3 ग्राम थाइरम या 8 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना उचित रहता है। जिन खेतों में सफेद लट व दीमक का प्रकोप अधिक होता है। वहां पर बीज को क्लोरोपायरीफॉस या क्यूनॉलाफाँस 25 ईसी नामक दवा से 25 मिली. प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें या खेत तैयार करते समय फॉरेट 10 जी या कॉर्बोफ्यूरॉन 3 जी चूर्ण 25 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से कतारों में दें और इन्हीं कतारों में मूंफली की बुवाई करें।

यदि बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना हो तो बीजों को पहले फफूंदनाशक बाद में कीटनाशक दवा से उपचारित करना चाहिए एवं अंत में जीवाणु खाद (राइजोबियम एवं पीएसबी) से उपचारित करना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक के 3 पैकेट प्रति हैक्टेयर की दर से बीज को उपचारित करना चाहिए।

                                    

बीजों की बुवाई व बीजदरः अच्छी फसल व अधिक बीज उत्पादन के लिए मूंगफली की फसल का उचित समय पर बुवाई करने से इसके बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा पौधा स्वस्थ व हष्ट पुष्ट होता है। बीजों को उचित गहराई में उचित नमी वाले स्थान पर बोना चाहिए। बुवाई हमेशा पंक्तियों/लाइनों में करना चाहिए। सामान्यतः खरीफ फसलों की बुवाई मानसून आने के बाद की जाती है, परंतु जिन स्थानों पर या किसानों के पास सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध हो वहां पर पलेवा करके जून माह के अंत तक बुवाई करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है।

सामान्य फसल में बीज दर बीज वाली फसलों की तुलना में अपेक्षाकृत कम होती है। मूंगफली के लिए यह 75-80 किग्रा./हैक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिए, जिससे बाद में खरपतवार व दूसरी किस्मों के पौधे व दूसरी फसलों के पौधों को निकालने, रासायनिक उर्वरक का छिड़काव, फफूंदनाशक या कीटनाशक दवाओं का छिड़काव तथा फसल का परीक्षण करने में आसानी होती है।

बुवाई पूर्व बीजाई मशीन (सीड ड्रिल) को अच्छी तरह से साफ कर लें। झुमका किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सेमी. एवं पौधे की दूरी 10 सेमी. एवं अर्द्ध विस्तारी या विस्तारी किस्मों के लिए कतार 45 सेमी. अंतराल पर एवं पौधे 15 सेमी. अंतराल पर रखें।

खाद एवं उर्वरकः मूंगफली के लिए 20:60:00 किग्रा./है. की दर से एनःपीःके. उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। बुवाई से पूर्व या तंतु बनने से पूर्व जिप्सम 500 किग्रा./है. की दर से भूमि में मिलाना चाहिए, इससे मूंगफली में मौजूद कैल्शियम एवं गंधक विकसित हो रही कलियों एवं तंतुओं द्वारा ग्रहण किया जा सके।

पृथक्करण दूरीः मूंगफली एक स्वपरागित फसल है। स्वपरागित फसलों में पृथक्करण दूरी कम रखी जाती है। पृथक्करण दूरी वह दूरी होती है जिसमें दो खेतों के मध्य की वह न्यूनतम दूरी जिससे उसी फसल की समान किस्म या अन्य किस्म से उचित दूरी पर रखने से अनुवांशिक शुद्धता बनी रहे। उचित पृथक्करण दूरी अपनाकर हम फसल को हवा से फैलने वाली जातीय अशुद्धता से बचा सकते हैं, जिससे फसल के अनुवांशिक गुणों पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। मूंगफली की फसल के आधार बीज व प्रमाणित बीज उत्पादन के लिए पृथक्करण दूरी 3 मीटर निर्धारित की गई। फसल के चारों ओर सीमा पंक्ति की संख्या को बढ़ाकर या कम लंबाई के फसल के चारों और अधिक लंबाई की फसल लगाकर इस दूरी को कम किया जा सकता है।

                                      

बीज वाली फसल का परीक्षणः आधार बीज या प्रमाणित बीज उत्पादन करने के लिए बीज अधिकारियों से स्वपरागित फसलों में कम से कम दो परीक्षण करवाने चाहिए। प्रथम परीक्षण फूल खिलने के तुरंत पहले व दूसरी फसल कटाई के ठीक पहले। परीक्षण में अधिकारी यह देखते हैं कि आपने बीज उत्पादन के लिए निर्धारित मानदंडों को पूरा किया है या नहीं। इसमें बीज अधिकारी पृथक्करण दूरी, फसल में अवांछनीय खरपतवार, रोग-ग्रस्त या कीट ग्रस्त पौधे, उन्नत किस्म के मानक गुर्णाे से भिन्न पौधें तथा उसी फसल के अन्य किस्मों के पौधों आदि तथ्यों की जांच करते हैं। बीज वाली फसल सभी मानदंड पूरे करने पर ही उस फसल को मान्यता मिलती है। यदि आप स्वयं के लिए बीज उत्पादन करना चाहते हैं तो उपरोक्त प्रक्रिया की कोई आवश्यकता नहीं है।

अवांछित पौधों को निकालनाः- बीज की जातीय शुद्धता बनाये रखने के लिए फसल उगने के बाद से लेकर फसल कटाई तक बार-बार खेत में घूम फिर कर अवांछनीय खरपतवार वाले पौधे, अन्य फसलों के पौधे, रोग-ग्रस्त, कीट-ग्रस्त पौधे व उन्नत किस्म के मानक गुणों से भिन्न पौधों को खेत में देखते ही जड़ से उखाड़कर खेत के बाहर जला दें या मिट्टी में दबा देना चाहिए। फूल आते समय एवं फसल पकते समय सावधानी पूर्वक फसल का निरीक्षण करना चाहिए।

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रणः खरीफ के मौसम में खरपतवार अधिक उगते हैं। अतः शुरु में मूंगफली की फसल की 2-3 निराई-गुड़ाई खुरपी से करके खेत को सदैव खरपतवार मुक्त बनाए रखना चाहिए। यदि खेत में खरपतवार हो जायें तो बुवाई के 15-20 दिन बाद पहली एवं 30-35 दिन बाद दूसरी निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।